यान: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p id="1">(1) राजा के छ: गुणों में चौथा गुण-अपनी वृद्धि और शत्रु की हानि होने पर दोनों का शत्रु के प्रति किया गया उद्यम-शत्रु पर चढ़ाई करना । <span class="GRef"> महापुराण 68. 66, 70 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText">(1) राजा के छ: गुणों में चौथा गुण-अपनी वृद्धि और शत्रु की हानि होने पर दोनों का शत्रु के प्रति किया गया उद्यम-शत्रु पर चढ़ाई करना । <span class="GRef"> महापुराण 68. 66, 70 </span></p> | ||
<p id="2">(2) देवों का एक वाहन । <span class="GRef"> महापुराण 13. 214 </span></p> | <p id="2" class="HindiText">(2) देवों का एक वाहन । <span class="GRef"> महापुराण 13. 214 </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:20, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
धवला 14/5, 6, 41/38/8 समुद्दमज्झे विविहभंडेहिं आवूरिदा संता जे गमणक्खमा वोहित्ता ते जाणा णाम। = नाना प्रकार के भांडों से आपूरित होकर भी समुद्र में गमन करने में समर्थ जो जहाज होते हैं वे यान कहलाते हैं।
पुराणकोष से
(1) राजा के छ: गुणों में चौथा गुण-अपनी वृद्धि और शत्रु की हानि होने पर दोनों का शत्रु के प्रति किया गया उद्यम-शत्रु पर चढ़ाई करना । महापुराण 68. 66, 70
(2) देवों का एक वाहन । महापुराण 13. 214