यान
From जैनकोष
सिद्धांतकोष से
धवला 14/5, 6, 41/38/8 समुद्दमज्झे विविहभंडेहिं आवूरिदा संता जे गमणक्खमा वोहित्ता ते जाणा णाम। = नाना प्रकार के भांडों से आपूरित होकर भी समुद्र में गमन करने में समर्थ जो जहाज होते हैं वे यान कहलाते हैं।
पुराणकोष से
(1) राजा के छ: गुणों में चौथा गुण-अपनी वृद्धि और शत्रु की हानि होने पर दोनों का शत्रु के प्रति किया गया उद्यम-शत्रु पर चढ़ाई करना । महापुराण 68. 66, 70
(2) देवों का एक वाहन । महापुराण 13. 214