वसु: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p id="1"> (1) विनीता नगरी के इक्ष्वाकुवंशी राजा ययाति और रानी सुरकांता का पुत्र । यह क्षीरकदंबक गुरु का शिष्य और पर्वत तथा नारद का गुरु भाई था । सत्यवादी होते हुए भी इसने गुरु की पत्नी के कहने से उसके पुत्र पर्वत का पक्ष पुष्ट करने को ‘‘अजैर्यष्टव्यम्’’ शब्द का अर्थ ‘‘बकरे’’ से यज्ञ करना बताया था । इसके परिणामस्वरूप यह मरकर सातवें नरक में उत्पन्न हुआ । महापुराण में इसे भरतक्षेत्र में धवल देश की स्वास्तिकावती नगरी के राजा विश्वावसु और रानी श्रीमती का पुत्र बताया है । हरिवंशपुराण के अनुसार इसके पिता चेदि राष्ट्र के संस्थापक तथा शुक्तिमती नगरी के राजा अभिचंद्र तथा मां उनकी रानी वसुमती थी । राजा अभिचंद्र ने इसे राज्य सौंपकर दीक्षा ले ली थी । यह सभा में आकाश-स्फटिक स्तंभ के ऊपर स्थित सिंहासन पर बैठता था । इसकी दो रानियां थीं― एक इक्ष्वाकुवंश की और दूसरी कुरुवंश की । इन दोनों रानियों से इसके दस पुत्र हुए थे । वे हैं― वृहद्वसु, चित्रवसु, वासव, अर्क, महावसु, विश्वावतु, रवि, सूर्य, सुवसु और बृहध्वज । इन दोनों पुराणों में भी ‘‘अजैर्यष्टव्यं’’ की कथा थोड़े अंतर के साथ आयी है । दोनों ही जगह इस कथा के परिणामस्वरूप वसु का पतन हुआ है । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_67#256|पद्मपुराण - 67.256-257]], 413-439, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_11#13|पद्मपुराण - 11.13-14]], 68-72, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 17.37, 53-59, 149-152 </span> </p> | <div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText"> (1) विनीता नगरी के इक्ष्वाकुवंशी राजा ययाति और रानी सुरकांता का पुत्र । यह क्षीरकदंबक गुरु का शिष्य और पर्वत तथा नारद का गुरु भाई था । सत्यवादी होते हुए भी इसने गुरु की पत्नी के कहने से उसके पुत्र पर्वत का पक्ष पुष्ट करने को ‘‘अजैर्यष्टव्यम्’’ शब्द का अर्थ ‘‘बकरे’’ से यज्ञ करना बताया था । इसके परिणामस्वरूप यह मरकर सातवें नरक में उत्पन्न हुआ । महापुराण में इसे भरतक्षेत्र में धवल देश की स्वास्तिकावती नगरी के राजा विश्वावसु और रानी श्रीमती का पुत्र बताया है । हरिवंशपुराण के अनुसार इसके पिता चेदि राष्ट्र के संस्थापक तथा शुक्तिमती नगरी के राजा अभिचंद्र तथा मां उनकी रानी वसुमती थी । राजा अभिचंद्र ने इसे राज्य सौंपकर दीक्षा ले ली थी । यह सभा में आकाश-स्फटिक स्तंभ के ऊपर स्थित सिंहासन पर बैठता था । इसकी दो रानियां थीं― एक इक्ष्वाकुवंश की और दूसरी कुरुवंश की । इन दोनों रानियों से इसके दस पुत्र हुए थे । वे हैं― वृहद्वसु, चित्रवसु, वासव, अर्क, महावसु, विश्वावतु, रवि, सूर्य, सुवसु और बृहध्वज । इन दोनों पुराणों में भी ‘‘अजैर्यष्टव्यं’’ की कथा थोड़े अंतर के साथ आयी है । दोनों ही जगह इस कथा के परिणामस्वरूप वसु का पतन हुआ है । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_67#256|पद्मपुराण - 67.256-257]], 413-439, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_11#13|पद्मपुराण - 11.13-14]], 68-72, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_17#37|हरिवंशपुराण - 17.37]],[[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_17#53|हरिवंशपुराण - 17.53]]-59, 149-152 </span> </p> | ||
<p id="2">(2) एक राजा । यह महावीर-निर्वाण के दो सौ पचासी वर्ष पश्चात् हुआ था । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 6.489 </span></p> | <p id="2" class="HindiText">(2) एक राजा । यह महावीर-निर्वाण के दो सौ पचासी वर्ष पश्चात् हुआ था । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_6#489|हरिवंशपुराण - 6.489]] </span></p> | ||
<p id="3">(3) कुरुवंशी एक राजा । यह राजा वासव का पुत्र और सुवसु इसका पुत्र था । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 45.26 </span></p> | <p id="3" class="HindiText">(3) कुरुवंशी एक राजा । यह राजा वासव का पुत्र और सुवसु इसका पुत्र था । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_45#26|हरिवंशपुराण - 45.26]] </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:21, 27 November 2023
सिद्धांतकोष से
- लौकांतिक देवों का एक भेद - देखें लौकांतिक_देव ।
- एक अज्ञानवादी - देखें अज्ञानवाद ।
- पद्मपुराण/11/श्लोक सं. - इक्ष्वाकु कुल के राजा ययाति का पुत्र ।13। क्षरिकदंब गुरु का शिष्य था ।14। सत्यवादी होते हुए भी गुरुमाता के कहने से उसके पुत्र पर्वत के पक्ष को पुष्ट करने के लिए, ‘अजैर्जष्टव्यम्’ शब्द का अर्थ तिसाला जौ न करके ‘बकरे से यज्ञ करना चाहिए’ ऐसा कर दिया।62। फलस्वरूप सातवें नरक में गया।73। ( महापुराण/67/256-281, 413-439 )।
- चंदेरी का राजा था। महाभारत से पूर्ववर्ती है। ‘‘इन्होंने इंद्र व पर्वत दोनों का इकट्ठे ही हव्य ग्रहण किया था’’ ऐसा कथन आता है। समय- ई.पू.2000 ( ऋग्वेद मंडल सूक्त 53)।
पुराणकोष से
(1) विनीता नगरी के इक्ष्वाकुवंशी राजा ययाति और रानी सुरकांता का पुत्र । यह क्षीरकदंबक गुरु का शिष्य और पर्वत तथा नारद का गुरु भाई था । सत्यवादी होते हुए भी इसने गुरु की पत्नी के कहने से उसके पुत्र पर्वत का पक्ष पुष्ट करने को ‘‘अजैर्यष्टव्यम्’’ शब्द का अर्थ ‘‘बकरे’’ से यज्ञ करना बताया था । इसके परिणामस्वरूप यह मरकर सातवें नरक में उत्पन्न हुआ । महापुराण में इसे भरतक्षेत्र में धवल देश की स्वास्तिकावती नगरी के राजा विश्वावसु और रानी श्रीमती का पुत्र बताया है । हरिवंशपुराण के अनुसार इसके पिता चेदि राष्ट्र के संस्थापक तथा शुक्तिमती नगरी के राजा अभिचंद्र तथा मां उनकी रानी वसुमती थी । राजा अभिचंद्र ने इसे राज्य सौंपकर दीक्षा ले ली थी । यह सभा में आकाश-स्फटिक स्तंभ के ऊपर स्थित सिंहासन पर बैठता था । इसकी दो रानियां थीं― एक इक्ष्वाकुवंश की और दूसरी कुरुवंश की । इन दोनों रानियों से इसके दस पुत्र हुए थे । वे हैं― वृहद्वसु, चित्रवसु, वासव, अर्क, महावसु, विश्वावतु, रवि, सूर्य, सुवसु और बृहध्वज । इन दोनों पुराणों में भी ‘‘अजैर्यष्टव्यं’’ की कथा थोड़े अंतर के साथ आयी है । दोनों ही जगह इस कथा के परिणामस्वरूप वसु का पतन हुआ है । पद्मपुराण - 67.256-257, 413-439, पद्मपुराण - 11.13-14, 68-72, हरिवंशपुराण - 17.37,हरिवंशपुराण - 17.53-59, 149-152
(2) एक राजा । यह महावीर-निर्वाण के दो सौ पचासी वर्ष पश्चात् हुआ था । हरिवंशपुराण - 6.489
(3) कुरुवंशी एक राजा । यह राजा वासव का पुत्र और सुवसु इसका पुत्र था । हरिवंशपुराण - 45.26