श्रीभूति: Difference between revisions
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<p id="2">(2) भरतक्षेत्र के शकट देश में सिंहपुर नगर के राजा सिंहसेन का पुरोहित । इसका दूसरा नाम सत्यघोष था । पद्मखंड नगर का सुमित्रदत्त वणिक् इसके यहाँ पाँच रत्न रखकर प्रवास में चला गया था, लौटकर रत्न माँगने पर इसने रत्न नहीं दिये । सुमित्रदत्त का रुदन सुनकर रामदत्ता ने जुए में इसे पराजित किया तथा बुद्धि कौशलपूर्वक इसके घर से सुमित्रदत्त के रत्न मँगवाकर उसे दिला दिये । राजा ने इसका समस्त धन छीनकर इसे मल्लों के मुक्कों से पिटवाया । अंत में आर्तध्यान से मरकर यह राजा के भंडार में अगंधन नाम का सर्प हुआ । <span class="GRef"> महापुराण 27.20-42, 59.146-177 </span>देखें [[ श्रीदत्ता#1 | श्रीदत्ता - 1]]</p> | <p id="2" class="HindiText">(2) भरतक्षेत्र के शकट देश में सिंहपुर नगर के राजा सिंहसेन का पुरोहित । इसका दूसरा नाम सत्यघोष था । पद्मखंड नगर का सुमित्रदत्त वणिक् इसके यहाँ पाँच रत्न रखकर प्रवास में चला गया था, लौटकर रत्न माँगने पर इसने रत्न नहीं दिये । सुमित्रदत्त का रुदन सुनकर रामदत्ता ने जुए में इसे पराजित किया तथा बुद्धि कौशलपूर्वक इसके घर से सुमित्रदत्त के रत्न मँगवाकर उसे दिला दिये । राजा ने इसका समस्त धन छीनकर इसे मल्लों के मुक्कों से पिटवाया । अंत में आर्तध्यान से मरकर यह राजा के भंडार में अगंधन नाम का सर्प हुआ । <span class="GRef"> महापुराण 27.20-42, 59.146-177 </span>देखें [[ श्रीदत्ता#1 | श्रीदत्ता - 1]]</p> | ||
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<p id="3">(3) भरतक्षेत्र के मृणालकुंड नगर के राजा शंभु का पुरोहित । सरस्वती इसकी स्त्री तथा वेदवती पुत्री थी । राजा शंभु ने वेदवती को पाने के लिए इसे मार डाला था । धर्म के प्रभाव से यह देव हुआ । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_106#133|पद्मपुराण - 106.133-135]], 141-145 </span></p> | <p id="3" class="HindiText">(3) भरतक्षेत्र के मृणालकुंड नगर के राजा शंभु का पुरोहित । सरस्वती इसकी स्त्री तथा वेदवती पुत्री थी । राजा शंभु ने वेदवती को पाने के लिए इसे मार डाला था । धर्म के प्रभाव से यह देव हुआ । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_106#133|पद्मपुराण - 106.133-135]], 141-145 </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:25, 27 November 2023
(1) आगामी छठा चक्रवर्ती । महापुराण 76.483, हरिवंशपुराण - 60.564
(2) भरतक्षेत्र के शकट देश में सिंहपुर नगर के राजा सिंहसेन का पुरोहित । इसका दूसरा नाम सत्यघोष था । पद्मखंड नगर का सुमित्रदत्त वणिक् इसके यहाँ पाँच रत्न रखकर प्रवास में चला गया था, लौटकर रत्न माँगने पर इसने रत्न नहीं दिये । सुमित्रदत्त का रुदन सुनकर रामदत्ता ने जुए में इसे पराजित किया तथा बुद्धि कौशलपूर्वक इसके घर से सुमित्रदत्त के रत्न मँगवाकर उसे दिला दिये । राजा ने इसका समस्त धन छीनकर इसे मल्लों के मुक्कों से पिटवाया । अंत में आर्तध्यान से मरकर यह राजा के भंडार में अगंधन नाम का सर्प हुआ । महापुराण 27.20-42, 59.146-177 देखें श्रीदत्ता - 1
(2) महोदधि विद्याधर का दूत । महोदधि ने हनुमान के पास इसी से समाचार भिजवाये थे । पद्मपुराण - 48.249
(3) भरतक्षेत्र के मृणालकुंड नगर के राजा शंभु का पुरोहित । सरस्वती इसकी स्त्री तथा वेदवती पुत्री थी । राजा शंभु ने वेदवती को पाने के लिए इसे मार डाला था । धर्म के प्रभाव से यह देव हुआ । पद्मपुराण - 106.133-135, 141-145