सर्वार्थसिद्धि: Difference between revisions
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<div class="HindiText"> <p id="1"> (1) पाँच अनुत्तर विमानों में विद्यमान एक इंद्रक विमान । यह अनुत्तर विमानों के बीच में होता है । इसकी पूर्व आदि चार दिशाओं में विजय, वैजयंत, जयंत और अपराजित ये चार विमान स्थित है । यह नौ ग्रैवेयक विमानों के ऊपर रहता है । यहाँ देवों की ऊँचाई एक हाथ की होती है । वे प्रवीचार रहित होते हैं । यह विमान लोक के अंत भाग से बारह योजन नीचा है । इसकी लंबाई, चौड़ाई और गोलाई जंबूद्वीप के बराबर है । यह स्वर्ग के त्रेमठ पटलों के अंत में स्थित है । इस विमान में उत्पन्न होनेवाले जीवों के सब मनोरथ अनायास ही सिद्ध हो जाते हैं । <span class="GRef"> महापुराण 11. 112-114, 61.12, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_105#170|पद्मपुराण - 105.170-171]] </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 4.69, 6. 54, 65 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText"> (1) पाँच अनुत्तर विमानों में विद्यमान एक इंद्रक विमान । यह अनुत्तर विमानों के बीच में होता है । इसकी पूर्व आदि चार दिशाओं में विजय, वैजयंत, जयंत और अपराजित ये चार विमान स्थित है । यह नौ ग्रैवेयक विमानों के ऊपर रहता है । यहाँ देवों की ऊँचाई एक हाथ की होती है । वे प्रवीचार रहित होते हैं । यह विमान लोक के अंत भाग से बारह योजन नीचा है । इसकी लंबाई, चौड़ाई और गोलाई जंबूद्वीप के बराबर है । यह स्वर्ग के त्रेमठ पटलों के अंत में स्थित है । इस विमान में उत्पन्न होनेवाले जीवों के सब मनोरथ अनायास ही सिद्ध हो जाते हैं । <span class="GRef"> महापुराण 11. 112-114, 61.12, </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:पद्मपुराण_-_पर्व_105#170|पद्मपुराण - 105.170-171]] </span><span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_4#69|हरिवंशपुराण - 4.69]], 6. 54, 65 </span></p> | ||
<p id="2">(2) एक पालकी । तीर्थंकर शांतिनाथ इसी में बैठकर संयम धारने करने सहस्राम्र वन गये थे । <span class="GRef"> महापुराण 63.470 </span></p> | <p id="2" class="HindiText">(2) एक पालकी । तीर्थंकर शांतिनाथ इसी में बैठकर संयम धारने करने सहस्राम्र वन गये थे । <span class="GRef"> महापुराण 63.470 </span></p> | ||
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Latest revision as of 15:30, 27 November 2023
(1) पाँच अनुत्तर विमानों में विद्यमान एक इंद्रक विमान । यह अनुत्तर विमानों के बीच में होता है । इसकी पूर्व आदि चार दिशाओं में विजय, वैजयंत, जयंत और अपराजित ये चार विमान स्थित है । यह नौ ग्रैवेयक विमानों के ऊपर रहता है । यहाँ देवों की ऊँचाई एक हाथ की होती है । वे प्रवीचार रहित होते हैं । यह विमान लोक के अंत भाग से बारह योजन नीचा है । इसकी लंबाई, चौड़ाई और गोलाई जंबूद्वीप के बराबर है । यह स्वर्ग के त्रेमठ पटलों के अंत में स्थित है । इस विमान में उत्पन्न होनेवाले जीवों के सब मनोरथ अनायास ही सिद्ध हो जाते हैं । महापुराण 11. 112-114, 61.12, पद्मपुराण - 105.170-171 हरिवंशपुराण - 4.69, 6. 54, 65
(2) एक पालकी । तीर्थंकर शांतिनाथ इसी में बैठकर संयम धारने करने सहस्राम्र वन गये थे । महापुराण 63.470