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| == पुराणकोष से == | | == पुराणकोष से == |
| <div class="HindiText"> <p id="1">(1) अग्रायणीयपूर्व की पंचम वस्तु के कर्मप्रकृति चौथे प्राभृत का तीसरा योगद्वार । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 10.82, </span>देखें [[ अग्रायणीयपूर्व ]]</p> | | <div class="HindiText"> <p id="1" class="HindiText">(1) अग्रायणीयपूर्व की पंचम वस्तु के कर्मप्रकृति चौथे प्राभृत का तीसरा योगद्वार । <span class="GRef"> [[ग्रन्थ:हरिवंश पुराण_-_सर्ग_10#82|हरिवंशपुराण - 10.82]], </span>देखें [[ अग्रायणीयपूर्व ]]</p> |
| <p id="2">(2) सम्यग्दर्शन से संबद्ध आस्तिक्य गुण की पर्याय । <span class="GRef"> महापुराण 9. 123 </span></p> | | <p id="2" class="HindiText">(2) सम्यग्दर्शन से संबद्ध आस्तिक्य गुण की पर्याय । <span class="GRef"> महापुराण 9. 123 </span></p> |
| <p id="3">(3) स्पर्शन इंद्रिय का विषय । यह आठ प्रकार का होता है—कर्कश, मृदु, गुरु, लघु, स्निग्ध, रूक्ष, शीत और उष्ण । <span class="GRef"> महापुराण 75. 621 </span></p> | | <p id="3" class="HindiText">(3) स्पर्शन इंद्रिय का विषय । यह आठ प्रकार का होता है—कर्कश, मृदु, गुरु, लघु, स्निग्ध, रूक्ष, शीत और उष्ण । <span class="GRef"> महापुराण 75. 621 </span></p> |
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सिद्धांतकोष से
स्पर्शन का अर्थ स्पर्श करना या छूना है। यहाँ इस स्पर्शानुयोग द्वार में जीवों के स्पर्श का वर्णन किया गया है अर्थात् कौन-कौन मार्गणा स्थानगत पर्याप्त या अपर्याप्त जीव किस-किस गुणस्थान में कितने आकाश क्षेत्र को स्पर्श करता है।
- भेद व लक्षण
- स्पर्श गुण का लक्षण।
- स्पर्श नाम कर्म का लक्षण।
- स्पर्शनानुयोग द्वार का लक्षण।
- स्पर्श के भेद
- स्पर्श गुण व स्पर्श नामकर्म के भेद।
- निक्षेपों की अपेक्षा भेद दृष्टि नं.1 व दृष्टि नं.2।
- निक्षेप रूप भेदों के लक्षण।
- अग्नि आदि सभी में स्पर्श गुण।-देखें पुद्गल - 10।
- स्पर्शन नामकर्म का स्पर्श हेतुत्व।-देखें वर्ण - 4।
- स्पर्श नामकर्म की बंध उदय सत्त्व प्ररूपणाएँ।-देखें वह वह नाम ।
- स्पर्श सामान्य निर्देश
- परमाणुओं में परस्पर एकदेश व सर्वदेश स्पर्श।-देखें परमाणु - 3।
- अमूर्त से मूर्त का स्पर्श कैसे संभव है।
- क्षेत्र व काल का अंतर्भाव द्रव्य स्पर्श में क्यों नहीं होता।
- क्षेत्र व स्पर्श में अंतर।-देखें क्षेत्र - 2.2।
- स्पर्श विषयक प्ररूपणाएँ
- सारणियों में प्रयुक्त संकेत सूची।
- जीवों के वर्तमान काल स्पर्श की ओघ प्ररूपणा।
- जीवों के अतीत कालीन स्पर्श की ओघ प्ररूपणा।
- जीवों के अतीत कालीन स्पर्श की आदेश प्ररूपणा।
- गति मार्गणा
- इन्द्रिय मार्गणा
- काय मार्गणा
- योग मार्गणा
- वेद मार्गणा
- कषाय मार्गणा
- ज्ञान मार्गणा
- संयम मार्गणा
- दर्शन मार्गणा
- लेश्या मार्गणा
- भव्य मार्गणा
- सम्यक्त्व मार्गणा
- संज्ञी मार्गणा
- आहारक मार्गणा
- अष्ट कर्मों के चतुबंधकों की ओघ आदेश प्ररूपणा।
- मोहनीय सत्कार्मिक बंधकों की ओघ आदेश प्ररूपणा।
- अन्य प्ररूपणाओं की सूची।
भेद व लक्षण
1. स्पर्श गुण का लक्षण
सर्वार्थसिद्धि/5/23/293/11 स्पृश्यते स्पर्शनमात्रं वा स्पर्श:।
सर्वार्थसिद्धि/2/20/178/9 स्पृश्यत इति स्पर्श:। ...पर्यायप्राधान्यविवक्षायां भावनिर्देश:। स्पर्शनं स्पर्श:। =1. जो स्पर्शन किया जाता है उसे या स्पर्शनमात्र को स्पर्श कहते हैं। 2. द्रव्य की अपेक्षा होने पर कर्म निर्देश होता है। जैसे-जो स्पर्श किया जाता है सो स्पर्श है। ...तथा जहाँ पर्याय की विवक्षा प्रधान रहती है तब भाव निर्देश होता है जैसे स्पर्शन स्पर्श है। (राजवार्तिक/2/20/1/132/31)
धवला 1/1,1,33/237/8 यदा वस्तुप्राधान्येन विवक्षितं तदा इंद्रियेण वस्त्वेव विषयीकृतं भवेद् वस्तुव्यतिरिक्तस्पर्शाद्यभावात् । एतस्यां विवक्षायां स्पृश्यत इति स्पर्शो वस्तु। यदा तु पर्याय: प्राधान्येन विवक्षितस्तदा तस्य ततो भेदोपपत्तेरौदासीन्यावस्थितभावकथनाद्भावसाधनत्वमप्यविरुद्धम् । यथा स्पर्श इति। =जिस समय द्रव्यार्थिक नय की अपेक्षा प्रधानता से वस्तु ही विवक्षित होती है, उस समय इंद्रिय के द्वारा वस्तु का ही ग्रहण होता है, क्योंकि वस्तु को छोड़कर स्पर्शादि धर्म पाये नहीं जाते हैं इसलिए इस विवक्षा में जो स्पर्श किया जाता है उसे स्पर्श कहते हैं, और वह स्पर्श वस्तु रूप ही पड़ता है। तथा जिस समय पर्यायार्थिक नय की प्रधानता से पर्याय विवक्षित होती है, उस समय पर्याय का द्रव्य से भेद होने के कारण उदासीन रूप से अवस्थित भाव का कथन किया जाता है। इसलिए स्पर्श में भाव साधन भी बन जाता है। जैसे स्पर्शन ही स्पर्श है।
2. स्पर्श नामकर्म का लक्षण
सर्वार्थसिद्धि/8/11/390/8 यस्योदयात्स्पर्शप्रादुर्भावस्तत्स्पर्शनाम। =जिसके उदय से स्पर्श की उत्पत्ति होती है वह स्पर्श नामकर्म है। (राजवार्तिक/811/10/577/14); (धवला 1/5,5,101/364/8); गोम्मटसार कर्मकांड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/33/29/15)
धवला 6/1,9-1,28/55/9 जस्स कम्मक्खंधस्स उदएण जीवसरीरे जाइपडिणियदो पासो उप्पज्जदि तस्स कम्मक्खंधस्स पाससण्णा कारणे कज्जुवयारादो। =जिस कर्मस्कंध के उदय से जीव के शरीर में जाति प्रतिनियत स्पर्श उत्पन्न होता है, उस कर्म स्कंध की कारण में कार्य के उपचार से स्पर्श यह संज्ञा है।
3. स्पर्शनानुयोग द्वार का लक्षण
सर्वार्थसिद्धि/1/8/29/7 तदेव स्पर्शनं त्रिकालगोचरम् । =त्रिकाल विषयक निवास को स्पर्श कहते हैं। (राजवार्तिक/1/8/5/41/30)
धवला 1/1,1,7/गाथा/102/158 अत्थित्तं पुण संतं अत्थित्तस्स य तहेव परिमाणं। पच्चुप्पण्णं खेत्तं अदीद-पदुप्पण्णणं फुसणं।102।
धवला 1/1,1,7/158/5 तेहिंदो वलद्ध-संत-पमाण खेत्ताणं अदीद-काल-विसिट्ठफासं परूवेदि फोसणाणुगमो। =1. अस्तित्व का प्रतिपादन करने वाली प्ररूपणा को सत्प्ररूपणा कहते हैं। जिन पदार्थों के अस्तित्व का ज्ञान हो गया है ऐसे पदार्थों के परिमाण का कथन करने वाली संख्या प्ररूपणा है, वर्तमान क्षेत्र का वर्णन करने वाली क्षेत्र प्ररूपणा है। अतीत स्पर्श और वर्तमान स्पर्श का वर्णन करने वाली स्पर्शन प्ररूपणा है।102। 2. उक्त तीनों अनुयोगों के द्वारा जाने हुए सत् संख्या और क्षेत्ररूप द्रव्यों के अतीतकाल विशिष्ट वर्तमान स्पर्श का स्पर्शनानुयोग वर्णन करता है।
धवला 4/1,4,1/144/8 अस्पर्शि स्पृश्यत इति स्पर्शनम् । =जो भूतकाल में स्पर्श किया है और वर्तमान में स्पर्श किया जा रहा है वह स्पर्शन कहलाता है।
4. स्पर्श के भेद
1. स्पर्श गुण व स्पर्श नामकर्म के भेद
षट्खंडागम 6/1,9,1/सूत्र 40/75 जं तं पासणामकम्मं तं अट्ठविहं, कक्खडणामं मउवणामं गुरुअणामं लहुअणामं णिद्धणामं लुक्खणामं सीदणाम उसुणणामं चेदि।40। =जो स्पर्श नामकर्म है वह आठ प्रकार का है-कर्कशनामकर्म, मृदुकनामकर्म, गुरुकनामकर्म, लघुकनामकर्म, स्निग्धनामकर्म, रूक्षनामकर्म, शीतनामकर्म और उष्णनामकर्म। (षट्खंडागम 13/5,5/सूत्र 113/370); (सर्वार्थसिद्धि/8/11/390/8); (पंचसंग्रह/प्राकृत/2/4/टीका/48/2); (राजवार्तिक/8/11/10/577/14); (गोम्मटसार कर्मकांड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/33/29/15)
सर्वार्थसिद्धि/5/23/293/11 सोऽष्टविध:; मृदुकठिनगुरुलघुशीतोष्णस्निग्धरूक्षभेदात् ।=कोमल, कठोर, भारी, हलका, गरम, ठंडा, स्निग्ध और रूक्ष के भेद से वह स्पर्श आठ प्रकार का है। (राजवार्तिक 5/23/7/484); (गोम्मटसार जीवकांड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/885/1); (द्रव्यसंग्रह टीका/7/19); (परमात्मप्रकाश टीका/1/19)
2. निक्षेपों की अपेक्षा भेद दृष्टि नं.1
नोट-(नाम, स्थापना आदि भेद=देखें निक्षेप )।
धवला 4/1,4,1/143/2 मिस्सयदव्वफोसणं छण्हं दव्वाणं संजोएण एगूणसट्ठिभेयभिण्णं। =मिश्र द्रव्य स्पर्शन चेतन अचेतन स्वरूप छहों द्रव्यों के संयोग से उनसठ भेदवाला होता है।
विशेषार्थ-मिश्र तद्वयतिरिक्त नोआगम द्रव्य स्पर्श के सचित्त व अचित्त रूप छह द्रव्यों के 65 संयोगी भंग निम्न प्रकार हैं।
एक संयोगी भंग = छह द्रव्यों का पृथक्-पृथक् ग्रहण करने से |
= 6 |
द्विसंयोगी भंग = (6x5) ÷ (1x2)=30/2 |
= 15 |
त्रिसंयोगी भंग = (6x5x4) ÷ (1x2x3)=120/6 |
= 20 |
चतुसंयोगी भंग = (6x5x4x3) ÷ (1x2x3x4)= 360/24 |
= 15 |
पंचसंयोगी भंग = (6x5x4x3x2) ÷ (1x2x3x4x5)= 720/120 |
= 6 |
छह संयोगी भंग = (6x5x4x3x2x1) ÷ (1x2x3x4x5x6)= 720/720 |
= 1 |
जीव के साथ जीव के स्पर्श रूप बंध का भंग |
=1 |
पुद्गल के साथ पुद्गल के स्पर्श रूप बंध का भंग |
=1 |
(गोम्मटसार कर्मकांड/800)। कुल भंग |
=65 |
3. निक्षेपों की अपेक्षा भेद दृष्टि नं.2
षट्खंडागम 13/5,3/सूत्र 4-33/पृष्ठ 3-36
चार्ट
धवला 13/5,3,24/25/2 एत्थ केवि आइरिया कक्खडादिफासाणं पहाणीकयाणं एगादिसंजोगेहि फासभंगे उप्पायंति, तण्ण घडदे; गुणाणं णिस्सहावणं गुणेहि फासाभावादो। ...अधवा सुत्तस्स देसामासियत्ते... सगंतोक्खित्तासेसविसेसंतराणमट्ठण्णं फासाणं संजोएण दुसद-पंच-वंचासभंगा उप्पाएयव्वा। =यहाँ कितने ही आचार्य प्रधानता को प्राप्त हुए ककर्श आदि स्पर्शों के एक आदि संयोगों द्वारा स्पर्श भंग उत्पन्न कराते हैं; परंतु वे बनते नहीं; क्योंकि गुण निस्वभाव होते हैं, इसलिए उनका अन्य गुणों के साथ स्पर्श नहीं बन सकता।...अथवा सूत्रदेशामर्शक होता है।...अतएव अपने भीतर जितने विशेष प्राप्त होते हैं, उन सबके साथ आठ स्पर्शों के संयोग से दो सौ पचपन भंग उत्पन्न कराने चाहिए।
5. निक्षेप रूप भेदों के लक्षण
षट्खंडागम व धवला टीका/13/5,3/सूत्र नं./पृष्ठ नं.
'जं दव्वं दव्वेण पुसदि सो सव्वो दव्वफासो णाम। (12/11)' 'जं दव्वमेयक्खेत्तेण पुसदि सो सव्वो एयक्खेत्तफासो णाम (14/16)' एक्कम्हि आगासपदेसे ट्ठिद अणंताणं तपोग्गलक्खंधाणसमवाएण संजोएण वा जो फासो सो एयक्खेत्तफासो णाम। बहुआणं दव्वाणं अक्कमेण एयक्खेत्तपुसणदुवारेण वा एयक्खेत्तफासो वत्तव्वो। -'जं दव्वमणंतरक्खेत्तेण पुसदि सो सव्वो अणंतरक्खेत्तफासो णाम (16/17)' दुपदेसट्ठिददव्वाणमण्णेहि दोआगासपदेसट्ठि दव्वेहि जो फासो सो अणंतरक्खेत्तफासो णाम।...एवं संते समाणोगाहणखंधाणं जो फासो सो एयक्खेत्तफासो णाम। असमाणोगाहणखंधाणं जो फासो सो अणंतरखेत्तफासो णाम। कधमणंतरत्तं। समाणासमाणक्खेत्ताणमंतरे खेत्तंतराभावादो। एवमणंतरखेत्तफासपरूवणा गदा।-'जं दव्वदेसं देसेण पुसदि सो सव्वो देसफासो णाम (18/18)' एगस्स दव्वरस देसं अवयवं जदि [देसेण] अण्णदव्वदेसेण अप्पणो अवयवेण पुसदि तो देसफासो त्ति दट्ठव्वो। -जं दव्वं तयं वा णोतयं वा पुसदि सो सव्वो तयफासो णाम (20/19)' एसो तयफासो दव्वफासे अंतब्भावं किण्ण गच्छदे। ण, तय-णोतयाणं खंधम्हि समवेदाणं पुध दव्वत्ताभावादो। खंध-तय-णोतयाणं समूहो दव्वं। ण च एक्कम्हि दव्वे दव्वफासो अत्थि, विरोहादो। ...तयफासो देसफासे किण्ण पविसदि। ण, णाणदव्वविसए देसफासे एगदव्वविसयस्स तयफासस्स पवेसविरोहादो। -जं दव्वं सव्वं सव्वेण फुसदि, तहा परमाणुदव्वमिदि, सो सव्वो सव्वफासो णाम। (22/21)' 'सो अट्ठविहो-कक्खडफासो मउवफासो-गरुवफासो लहुवफासो णिद्धफासो लुक्खफासो सीदफासो उण्हफासो। सो सव्वो फासफासो णाम (24/24)' स्पृश्यत इति स्पर्श: कर्कशादि:। स्पृश्यत्यनेनेति स्पर्शस्त्वगिंद्रियं। तयोर्द्वयो: स्पर्शयो: स्पर्श: स्पर्शस्पर्श:। -'सो अट्ठविहो-णाणावरणीय-दंसणावरणीय-वेयणीय-मोहणीय-आउअ-णामा-गोद-अंतराइय-कम्मफासो। सो सव्वो कम्मफासो णाम (26/26)' अट्ठकम्माणं जीवेण विस्सासोवचएहि य णोकम्मेहि य जो फासो सो दव्वफासे पददि त्ति एत्थ ण वुच्चदे, कम्माणं कम्मेहि जो फासो सो कम्मफासो एत्थं घेत्तव्वो।-'सो पंचविहो-ओरालियसरीरबंधफासो एवं वेउव्वियआहार-तेया कम्मइयसरीरबंधफासो। सो सव्वो बंधफासो णाम। (28/30)' बध्नातीति बंध:। औदारिकशरीरमेव बंध: औदारिकशरीरबंध:। तस्स बंधस्स फासो ओरालियसरीरबंधफासो णाम। एवं सव्वसरीरबंधफासणं पि वत्तव्वं। -'जहा विस कूड-जंत-पंजर-कंदय-वग्गुरादीणि कत्तारो समोद्दियारो य भवियो फुसणदाए णो य पुण ताव तं फुसदि सो सव्वो भवियफासो णाम (30/34)' 'उवजुत्तो पाहुडजाणओ सो सव्वो भावफासो णाम (32/35)
- एक द्रव्य दूसरे द्रव्य से स्पर्श को प्राप्त होता है वह सब द्रव्य स्पर्श है।12।
- जो द्रव्य एक क्षेत्र के साथ स्पर्श करता है वह सब एक क्षेत्र स्पर्श है।14। एक आकाश प्रदेश में स्थित अनंतानंत पुद्गल स्कंधों का समवाय संबंध या संयोग संबंध द्वारा जो स्पर्श होता है वह एक क्षेत्र स्पर्श कहलाता है। अथवा बहुत द्रव्यों का युगपत् एक क्षेत्र के स्पर्शन द्वारा एक क्षेत्र स्पर्श कहना चाहिए।
- जो द्रव्य अनंतर द्रव्य के साथ स्पर्श करता है वह सब अनंतर क्षेत्र स्पर्श है।16। दो प्रदेशों में स्थित द्रव्यों का दो आकाश के प्रदेशों में स्थित अन्य द्रव्यों के साथ जो स्पर्श होता है वह अनंतर क्षेत्र स्पर्श है।...इस स्थिति में (एक शब्द संख्यावाची नहीं समानवाची है) समान अवगाहना वाले स्कंधों का जो स्पर्श होता है वह एक क्षेत्र स्पर्श है और असमान अवगाहना वाले स्कंधों का जो स्पर्श होता है वह अनंतर क्षेत्र है। क्योंकि समान और असमान क्षेत्रों के मध्य में अन्य क्षेत्र नहीं उपलब्ध होता, इसलिए इसे अनंतरपना प्राप्त है।
- जो द्रव्य एकदेश एकदेश के साथ स्पर्श करता है वह सब देश स्पर्श है।18। एक द्रव्य का देश अर्थात् अवयव यदि अन्य द्रव्य के देश अर्थात् उसके अवयव के साथ स्पर्श करता है तो वह देश स्पर्श जानना चाहिए। (दो परमाणुओं का दो प्रदेशावगाही स्कंध बनने में जो स्पर्श होता है वही देश स्पर्श है।)
- जो द्रव्य त्वचा या नोत्वचा को स्पर्श करता है वह सब त्वक्स्पर्श है।20।
प्रश्न-यह त्वक् स्पर्श द्रव्य स्पर्श में क्यों नहीं अंतर्भाव को प्राप्त होता ?
उत्तर-नहीं, क्योंकि त्वचा और नोत्वचा स्कंध में समवेत है, अत: उन्हें पृथक् द्रव्य नहीं माना जा सकता। स्कंध, त्वचा और नोत्वचा का समुदाय द्रव्य है। पर एक द्रव्य में द्रव्य स्पर्श नहीं बनता, क्योंकि ऐसा मानने में विरोध आता है।
प्रश्न-त्वक् स्पर्श देशस्पर्श में क्यों नहीं अंतर्भूत होता है ?
उत्तर-नहीं, क्योंकि नाना द्रव्यों को विषय करने वाले देश स्पर्श में एक द्रव्य को विषय करने वाले त्वक् स्पर्श का अंतर्भाव मानने में विरोध आता है।
- जो द्रव्य सबका सब सर्वात्मना स्पर्श करता है, यथा परमाणु द्रव्य, वह सब सर्वस्पर्श है।22।
- स्पर्शस्पर्श आठ प्रकार का है-कर्कशस्पर्श, मृदुस्पर्श, गुरुस्पर्श, लघुस्पर्श, स्निग्धस्पर्श, रूक्षस्पर्श, शीतस्पर्श और उष्णस्पर्श है वह सब स्पर्शस्पर्श है।24। जो स्पर्श किया जाता है वह स्पर्श है, यथा कर्कश आदि। जिसके द्वारा स्पर्श किया जाय वह स्पर्श है, यथा त्वचा इंद्रिय। इन दोनों स्पर्शों का स्पर्श स्पर्शस्पर्श कहलाता है।
- वह आठ प्रकार का है-ज्ञानावरणीय कर्मस्पर्श, दर्शनावरणीय कर्मस्पर्श, वेदनीय कर्मस्पर्श, मोहनीय कर्मस्पर्श, आयुकर्मस्पर्श, गोत्र कर्मस्पर्श और अंतराय कर्मस्पर्श। वह सब कर्मस्पर्श है।26। आठ कर्मों का जीव के साथ, विस्रसोपचयों के साथ और नोकर्मों के साथ जो स्पर्श होता है वह सब द्रव्य स्पर्श में अंतर्भूत होता है; इसलिए वह यहाँ नहीं कहा गया है। किंतु कर्मों का कर्मों के साथ जो स्पर्श होता है वह कर्मस्पर्श है ऐसा यहाँ ग्रहण करना चाहिए।
- वह पाँच प्रकार का है-औदारिक शरीर बंधस्पर्श। इसी प्रकार वैक्रियक, आहारक, तैजस और कार्मण शरीर बंधस्पर्श। वह सब बंधस्पर्श है।28। जो बाँधता है वह बंध है, उस बंध का स्पर्श औदारिक शरीर बंध स्पर्श है। इसी प्रकार सर्व शरीर बंध स्पर्शों का भी कथन करना चाहिए।
- विष, कूट, यंत्र, पिंजरा, कंदक और पशु को बाँधने का जाल आदि तथा इनके करने वाले और इन्हें इच्छित स्थानों में रखने वाले स्पर्शन के योग्य होंगे परंतु अभी उन्हें स्पर्श नहीं करते; वह सब भव्य स्पर्श है।30।
- जो स्पर्श प्राभृत का ज्ञाता उसमें उपयुक्त है वह सब भाव स्पर्श है।32।
धवला 4/1,4,1/143-144/3,2
सेसदव्वाणमागासेण सह संजोओ खेत्तफोसणं/143/3/कालदव्वस्स अण्णदव्वेहि जो संजोओ सो कालफोसणं णाम।
- शेष द्रव्यों का आकाश द्रव्य के साथ जो संयोग है, वह क्षेत्र स्पर्शन कहलाता है।
- कालद्रव्य का जो अन्य द्रव्यों के साथ संयोग है उसका नाम कालस्पर्शन है।
स्पर्श सामान्य निर्देश
1. अमूर्त से मूर्त का स्पर्श कैसे संभव है
धवला 4/1,4,1/143/3 अमुत्तेण आगासेण सह सेसदव्वाणं मुत्ताणममुत्ताणं वा कधं पोसो। ण एस दोसो, अवगेज्झावगाहभावस्सेव उवयारेण फासववएसादो, सत्त-पमेयत्तादिणा अण्णोण्णसमाणत्तणेण वा।... अमुत्तेण कालदव्वेण सेसदव्वाणं जदि वि पासो णत्थि, परिणामिज्जमाणाणि सेसदव्वाणि परिणत्तेण कालेण पुसिदाणि त्ति उवयारेण कालफोसणं वुच्चदे। =प्रश्न-अमूर्तआकाश के साथ शेष अमूर्त और मूर्त द्रव्यों का स्पर्श कैसे संभव है ?
उत्तर-यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि अवगाह्य अवगाहक भाव को ही उपचार से स्पर्श संज्ञा प्राप्त है, अथवा सत्त्व प्रमेयत्व आदि के द्वारा मूर्त द्रव्य के साथ अमूर्त द्रव्य की परस्पर समानता होने से भी स्पर्श का व्यवहार बन जाता है।...यद्यपि अमूर्त काल द्रव्य के साथ शेष द्रव्यों का स्पर्शन नहीं है, तथापि परिणमित होने वाले शेष द्रव्य परिणामत्व की अपेक्षा काल से स्पर्शित हैं, इस प्रकार से उपचार से काल स्पर्शन कहा जाता है।
2. क्षेत्र व काल स्पर्श का अंतर्भाव द्रव्य स्पर्श में क्यों नहीं
धवला 4/1,4,1/144/4 खेत्तकालपोसणाणिदव्वफोसणम्हि किण्ण पदंति त्ति वुत्ते ण पदंति, दव्वादो दव्वेगदेसस्स कधंचि भेदुवलंभादो। =प्रश्न-क्षेत्र स्पर्शन और काल स्पर्शन ये दोनों स्पर्शन, द्रव्य स्पर्शन में क्यों नहीं अंतर्भूत होते हैं ?
उत्तर-अंतर्भूत नहीं होते हैं, क्योंकि, द्रव्य से द्रव्य के एकदेश का कथंचिद् भेद पाया जाता है।
स्पर्श विषयक प्ररूपणाएँ
1. सारणी में प्रयुक्त संकेत सूची
/ |
भाग |
÷ |
भाग |
x |
गुणा |
ऽ |
किंचिदूण |
8/14/लोक. |
लोक का /14 भाग |
अप. |
अपर्याप्त |
असं. |
असंख्यात |
च. |
चतुलोक (मनुष्य लोक रहित सर्व लोक) |
ज.प्र. |
जगत्प्रतर |
ति. |
तिर्यक् लोक |
त्रि. |
त्रिलोक या सर्व लोक |
द्वि. |
ऊर्ध्व व अधो ये दो लोक |
प. |
पर्याप्त |
पृ. |
पृथिवी |
बा. |
बादर |
म. |
मनुष्य लोक (अढाई द्वीप) |
व. |
वनस्पति |
सर्व. |
सर्व लोक (343 घन राजू) |
सं. |
संख्यात |
सं.घ. |
संख्यात घनांगुल |
सा. |
सामान्य |
2. जीवों के वर्तमान काल स्पर्श की ओघ प्ररूपणा- (धवला 4/1,4,2-10/145-173)
प्रमाण |
गुणस्थान |
गुणस्थान |
स्वस्थान स्वस्थान |
विहारवत् स्वस्थान |
वेदना कषाय समुद्घात |
वैक्रियिक समुद्घात |
मारणांतिक समुद्घात |
उपपाद |
तैजस, आहारक व केवली समुद्घात |
ध.4/पृ. |
148 |
मिथ्यादृष्टि |
1 |
सर्व |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
सर्व |
त्रि./असं.,ति./स.म/असं. |
सर्व |
मारणांतिकवत् |
... |
149 |
सासादन |
2 |
च./असं.,म.×असं. |
च./असं.,म.×असं. |
च./असं.,म.×असं. |
च./असं.,म.×असं. |
च./असं.,म.×असं. |
मारणांतिकवत् |
... |
166 |
सम्यग्मिथ्यादृष्टि |
3 |
च./असं.,म.×असं. |
च./असं.,म.×असं. |
च./असं.,म.×असं. |
च./असं.,म.×असं. |
... |
... |
... |
166 |
असंयत सम्यग्दृष्टि |
4 |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
मारणांतिकवत् |
... |
167 |
संयतासंयत |
5 |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
... |
... |
170 |
प्रमत्त संयत |
6 |
च./असं.,म.×सं. |
च./असं.,म.×सं. |
च./असं.,म.×सं. |
च./असं.,म.×सं. |
च./असं.,म.×असं. |
...तैजस=च./असं.,म.×सं.आहारक=च./असं.,म.×सं. |
170 |
अप्रमत्त संयत |
7 |
च./असं.,म.×सं. |
च./असं.,म.×सं. |
... |
... |
च./असं.,म.×असं. |
... |
... |
170 |
उपशामक |
8-11 |
च./असं.,म.×सं. |
... |
... |
... |
च./असं.,म.×असं. |
... |
... |
170 |
क्षपक |
8-12 |
च./असं.,म.×सं. |
... |
... |
... |
... |
... |
... |
172 |
सयोगकेवली |
13 |
च./असं.,म.×सं. |
च./असं.,म.×सं. |
... |
... |
... |
...दंड=च./असं.,म.×असं.कपाट-कायोत्सर्ग=4500,000यो./1 ज.प्र. उपविष्ट=9000,000यो.×1ज.प्र.प्रतर=वातवलयरहित सर्व लोकपूरण=सर्व |
172 |
अयोगकेवली |
14 |
च./असं.,म.×सं. |
... |
... |
... |
... |
... |
... |
3. जीवों के अतीत कालीन स्पर्श की ओघ प्ररूपणा- (धवला 4/1,4,2-10/145-173)
प्रमाण |
गुणस्थान |
गुणस्थान |
स्वस्थान स्वस्थान |
विहारवत् स्वस्थान |
वेदना कषाय समुद्घात |
वैक्रियिक समुद्घात |
मारणांतिक समुद्घात |
उपपाद |
तैजस, आहारक व केवली समुद्घात |
धवला 4/ पृ. |
148 |
मिथ्यादृष्टि |
1 |
सर्व |
ऽ लोक |
सर्व |
ऽ लोक |
सर्व |
मारणांतिकवत् |
... |
149, 162-165 |
सासादन |
2 |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
... |
166-167 |
सम्यग्मिथ्यादृष्टि |
3 |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
... |
... |
... |
167 |
असंयत सम्यग्दृष्टि |
4 |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
... |
168 |
संयतासंयत |
5 |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं., ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं., ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं., ति./सं.,म.×असं. |
ऽ लोक |
... |
... |
171 |
प्रमत्त संयत |
6 |
च./असं.,म./सं. |
च./असं.,म./सं. |
च./असं.,म.×सं. |
सर्व मनुष्य लोक |
च./असं.,म.×असं. |
...तैजस= च./असं., म.×असं.आहारक = च./असं., म.×असं. |
171 |
अप्रमत्त संयत |
7 |
च./असं.,म./सं. |
च./असं.,म./सं. |
... |
... |
च./असं.,म.×असं. |
...तैजस= च./असं., म.×असं. |
171 |
उपशामक |
8-11 |
च./असं.,म./सं. |
... |
... |
... |
च./असं.,म.×असं. |
... |
... |
171 |
क्षपक |
8-12 |
च./असं.,म./सं. |
... |
... |
... |
... |
... |
... |
172 |
सयोग केवली |
13 |
च./असं.,म./सं. |
च./असं.,म.×सं. |
... |
... |
... |
...दंड = च./असं.,म.×असं. कपाट- ... कायोत्सर्ग=4500,000यो.×1ज.प्र.उपविष्ट=9000,000यो.×1ज.प्र.प्रतर=वातवलय रहित सर्व लोकपूरण=सर्व |
172 |
अयोग केवली |
14 |
च./असं.,म./सं. |
... |
... |
... |
... |
... |
... |
4. जीवों की अतीत कालीन स्पर्श की आदेश प्ररूपणा 1= (षट्खंडागम 4/1,4, सूत्र 11-185/173-309); 2= (षट्खंडागम/7/2,7, सूत्र 1-279/367-461)
प्रमाण |
मार्गणा |
गुणस्थान |
स्वस्थान स्वस्थान |
विहारवत् स्वस्थान |
वेदना कषाय समुद्घात |
वैक्रियिक समुद्घात |
मारणांतिक समुद्घात |
उपपाद |
तैजस, आहारक व केवली समुद्घात |
नं.1पृ. |
नं.2पृ. |
1.गति मार्गणा- |
1.नरक गति- |
|
368 |
सामान्य |
|
च./असं.; म×असं. |
च./असं.; म×असं. |
च./असं.,म×असं. |
च./असं.,म×असं. |
संख्यात सहस्र-6/14 योजन |
मारणांतिकवत् |
... |
|
370 |
प्रथम पृथिवी |
|
च./असं.,म×असं. |
च./असं.,म×असं. |
च./असं., म×असं. |
च./असं., म×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म×असं. |
मारणांतिकवत् |
... |
|
373 |
2-7 पृथिवी |
|
च./असं., म.×असं. |
च./असं., म.×असं. |
च./असं.; म×असं. |
च/असं.; म×असं. |
(कुछ कम ,,,,, लोक) |
मारणांतिकवत् |
... |
171 |
|
सामान्य |
1 |
च./असं., म.×असं. |
च./असं., म.×असं. |
च./असं., म.×असं. |
च./असं., म.×असं. |
ऽ लोक |
मारणांतिकवत् |
... |
177 |
|
|
2 |
च./असं., म.×असं. |
च./असं., म.×असं. |
च./असं., म.×असं. |
च./असं., म.×असं. |
लोक |
... |
... |
179 |
|
|
3 |
च./असं., म.×असं. |
च./असं., म.×असं. |
च./असं., म.×असं. |
च./असं., म.×असं. |
... |
... |
... |
179 |
|
|
4 |
च./असं., म.×असं. |
च./असं., म.×असं. |
च./असं., म.×असं. |
च./असं., म.×असं. |
च./असं., म.×असं |
मारणांतिकवत् |
... |
182 |
|
प्रथम पृथिवी |
1 |
च./असं., म.×असं. |
च./असं., म.×असं. |
च./असं., म.×असं. |
च./असं., म.×असं. |
त्रि./असं., ति./सं.,म.×असं. |
च./असं., म./असं. |
... |
186 |
|
|
2 |
च./असं., म.×असं. |
च./असं., म.×असं. |
च./असं., म.×असं. |
च./असं., म.×असं. |
त्रि./असं., ति./सं.,म.×असं. |
|
... |
187 |
|
|
3 |
च./असं., म.×असं. |
च./असं., म.×असं. |
च./असं., म.×असं. |
च./असं., म.×असं. |
... |
... |
... |
187 |
|
|
4 |
च./असं., म.×असं. |
च./असं., म.×असं. |
च./असं., म.×असं. |
च./असं., म./असं. |
च./असं., म.×असं. |
मारणांतिकवत् |
... |
188 |
|
2-6 पृथिवी |
1 |
च./असं., म.×असं. |
च./असं., म.×असं. |
च./असं., म.×असं. |
च./असं., म.×असं. |
क्रमेण,,,, लोक |
मारणांतिकवत् |
... |
188 |
|
|
2 |
च./असं., म.×असं. |
च./असं., म.×असं. |
च./असं., म.×असं. |
च./असं., म.×असं. |
क्रमेण,,,, लोक |
... |
... |
189 |
|
|
3 |
च./असं., म.×असं. |
च./असं., म.×असं. |
च./असं., म.×असं. |
च./असं., म.×असं. |
... |
... |
... |
189 |
|
|
4 |
च./असं., म.×असं. |
च./असं., म.×असं. |
च./असं., म.×असं. |
च./असं., म.×असं. |
च./असं., म.×असं |
... |
... |
190 |
|
7वीं पृथिवी |
1 |
च./असं., म.×असं. |
च./असं., म.×असं. |
च./असं., म.×असं. |
च./असं., म.×असं. |
ऽ लोक |
मारणांतिकवत् |
... |
191 |
|
|
2-4 |
च./असं., म.×असं. |
च./असं., म.×असं. |
च./असं., म.×असं. |
च./असं., म.×असं. |
× |
... |
... |
2.तिर्यंच गति- |
|
375 |
सामान्य |
|
सर्व |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
सर्व |
त्रि./सं., द्वि.×असं. |
सर्व |
मारणांतिकवत् |
... |
|
376 |
पंचेंद्रिय तिर्य.; पंचें. पर्याप्त; पंचें.योनिमति |
|
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
सर्व |
मारणांतिकवत् |
... |
|
378 |
पंचें.तिर्य.अप. |
|
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
× |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
|
सर्व |
मारणांतिकवत् |
... |
192 |
|
सामान्य |
1 |
सर्व |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
सर्व |
त्रि./सं., ति.×असं., म.×असं. |
सर्व |
मारणांतिकवत् |
... |
193 |
|
|
2 |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं., ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं., ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं., ति./सं.,म.×असं. |
ऽ लोक (पृ.204) |
लोक (पृ.205) |
... |
विहारवत् स्वस्थान
प्रमाण |
मार्गणा |
गुणस्थान |
स्वस्थान स्वस्थान |
|
वेदना कषाय समुद्घात |
वैक्रियिक समुद्घात |
मारणांतिक समुद्घात |
उपपाद |
तैजस, आहारक व केवली समुद्घात |
नं.1पृ. |
नं.2 पृ. |
206 |
|
सामान्य तिर्यंच |
3 |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
... |
... |
... |
207 |
|
|
4 |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
ऽ लोक |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
... |
207 |
|
|
5 |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
ऽ लोक |
... |
... |
211 |
|
पंचेंद्रिय तिर्यंच पर्याप्त |
1 |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
सर्व |
मारणांतिकवत् |
... |
213 |
|
|
2 |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
ऽ लोक |
लोक |
... |
213 |
|
|
3 |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
... |
... |
... |
213 |
|
|
4 |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
ऽ लोक |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
... |
213 |
|
|
5 |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
ऽ लोक |
... |
... |
211 |
|
पंचें.तिर्य.योनिमति |
1-3 |
- - |
- - |
-- पंचेंद्रिय तिर्यंच पर्याप्तवत् |
-- |
- |
... |
213 |
|
|
4-5 |
- - |
- - |
-- |
पंचेंद्रिय तिर्यंच पर्याप्तवत् |
-- |
... |
... |
213 |
|
पंचें.तिर्य.अप. |
1 |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
... |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
... |
सर्व(पृ.216) |
सर्व(पृ.216) |
... |
3. मनुष्य गति- |
|
380 |
सामान्य व पर्याप्त |
|
च./असं.,म./सं. |
च./असं., कुछ कम मनुष्य लोक |
कुछ कम मनुष्य लोक |
कुछ कम मनुष्य लोक |
सर्व |
मारणांतिकवत् |
मूलओघवत् |
|
380 |
मनुष्यणी |
|
च./असं.,म./सं. |
च./असं., कुछ कम मनुष्य लोक |
कुछ कम मनुष्य लोक |
कुछ कम मनुष्य लोक |
सर्व |
मारणांतिकवत् |
... |
213 |
381 |
मनुष्य अपर्याप्त |
|
च./असं.,म./सं. |
... |
च./असं., म./सं. |
... |
सर्व |
मारणांतिकवत् |
... |
216 |
|
सामान्य व पर्याप्त |
1 |
च./असं.,म./सं. |
च./असं.,म./सं. |
च./असं.,म./सं. |
च./असं.,म./सं. |
सर्व |
मारणांतिकवत् |
... |
217 |
|
|
2 |
च./असं.,म./सं. |
च./असं.,म./सं. |
च./असं.,म./सं. |
च./असं.,म./सं. |
ऽ लोक |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
... |
220 |
|
|
3 |
च./असं.,म./सं. |
च./असं.,म./सं. |
च./असं.,म./सं. |
च./असं.,म./सं.. |
... |
... |
... |
221 |
|
|
4 |
च./असं.,म./सं. |
च./असं.,म./सं. |
च./असं.,म./सं. |
च./असं. म./सं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
मारणांतिकवत् |
... |
222 |
|
|
5 |
च./असं.,म./सं. |
च./असं.,म./सं. |
च./असं.,म./सं. |
च./असं.,म./सं. |
च./असं.,म.×असं. |
... |
... |
223 |
|
|
6-14 |
- - |
- - |
-- |
मूलोघवत् |
-- |
- |
- |
216 |
|
मनुष्यणी |
1-3 |
- - |
- - |
-- |
मनुष्य पर्याप्तवत् |
-- |
- |
- |
221 |
|
|
4-6 |
- - |
- - |
-- |
मनुष्य पर्याप्तवत् |
-- |
... |
... |
223 |
|
|
7-14 |
- - |
- - |
-- |
मूलोघवत् |
-- |
- |
- |
223 |
|
मनुष्य अप. |
1 |
च./असं.,म./सं. |
... |
च./असं.,म./सं. |
... |
सर्व |
सर्व |
... |
प्रमाण |
मार्गणा |
गुणस्थान |
स्वस्थान स्वस्थान |
विहारवत् स्वस्थान |
वेदना कषाय समुद्घात |
वैक्रियिक समुद्घात |
मारणांतिक समुद्घात |
उपपाद |
तैजस, आहारक व केवली समुद्घात |
स.1पृ. |
स.2पृ. |
4. देवगति- |
|
382 |
सामान्य |
|
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
... |
|
385 |
भवनवासी |
|
च./असं., म.×असं. |
स्वनिमित्तक ऽ लोक परनिमित्तक=ऽ लोक |
स्वनिमि. ऽ लोक परनिमि.=ऽ लोक |
स्वनिमि. ऽ लोक परनिमि.=ऽ लोक |
ऽ लोक |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
... |
|
385 |
व्यंतर, ज्योतिषी |
|
त्रि/असं., ति./सं.,म.×असं. |
स्वनिमित्तक ऽ लोक परनिमित्तक=ऽ लोक |
स्वनिमि. ऽ लोक परनिमि.=ऽ लोक |
स्वनिमि. ऽ लोक परनिमि.=ऽ लोक |
ऽ लोक |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
... |
|
388 |
सौधर्म ईशान |
|
च./असं., म.×असं. |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
... |
|
389 |
सनत्कुमार-सहस्रार पाँच युगलों में प्रत्येक |
|
च./असं., म.×असं. |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
क्रमेण: ऽ, , ,, लोक |
... |
|
391 |
आनत-अच्युत (2 युगलों में प्रत्येक) |
|
च./असं., म.×असं. |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
क्रमेण: ऽ , लोक |
... |
|
392 |
नवग्रैवेयक-अपराजित |
|
च./असं., म.×असं. |
च./असं., म.×असं. |
च./असं., म.×असं. |
च./असं., म.×असं. |
च./असं., म.×असं. |
च./असं., म.×असं. |
... |
|
392 |
सर्वार्थसिद्धि |
|
च./असं., म./सं. |
च./असं., म./सं. |
च./असं., म./सं. |
च./असं., म./सं. |
च./असं., म.×असं. |
च./असं., म.×असं. |
... |
224 |
|
सामान्य |
1 |
त्रि./असं., ति./सं., म.×असं. |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
... |
227 |
|
|
2 |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
... |
227 |
|
|
3 |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
... |
... |
... |
227 |
|
|
4 |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
... |
प्रमाण |
मार्गणा |
गुणस्थान |
स्वस्थान स्वस्थान |
विहारवत् स्वस्थान |
वेदना कषाय समुद्घात |
वैक्रियिक समुद्घात |
मारणांतिक समुद्घात |
उपपाद |
तैजस, आहारक व केवली समुद्घात |
स.1पृ. |
स.2पृ. |
228 |
|
भवनवासी |
1 |
त्रि/असं., ति./सं., म.×असं. |
स्वनिमि. ऽ लोक परनिमि.=ऽ लोक |
स्वनिमि. ऽ लोक परनिमि.=ऽ लोक |
स्वनिमि. ऽ लोक परनिमि.=ऽ लोक |
ऽ लोक |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
... |
228 |
|
|
2 |
त्रि/असं.,ति./सं., म.×असं. |
स्वनिमित्तक ऽ लोक परनिमित्तक=ऽ लोक |
स्वनिमि. ऽ लोक परनिमि.=ऽ लोक |
स्वनिमि. ऽ लोक परनिमि.=ऽ लोक |
ऽ लोक |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
... |
233 |
|
|
3 |
च./असं., म.×असं. |
स्वनिमित्तक ऽ लोक परनिमित्तक=ऽ लोक |
स्वनिमि. ऽ लोक परनिमि.=ऽ लोक |
स्वनिमि. ऽ लोक परनिमि.=ऽ लोक |
... |
... |
... |
233 |
|
|
4 |
च./असं., म.×असं. |
स्वनिमित्तक ऽ लोक परनिमित्तक=ऽ लोक |
स्वनिमि. ऽ लोक परनिमि.=ऽ लोक |
स्वनिमि. ऽ लोक परनिमि.=ऽ लोक |
दोनों अपेक्षा वैक्रियवत् |
... |
... |
228 |
|
व्यंतर, ज्योतिषी |
1 |
त्रि/असं., ति/सं., म×असं. |
स्वनिमित्तक ऽ लोक परनिमित्तक=ऽ लोक |
स्वनिमि. ऽ लोक परनिमि.=ऽ लोक |
स्वनिमि. ऽ लोक परनिमि.=ऽ लोक |
ऽ लोक |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
... |
228 |
|
|
2 |
त्रि/असं.,ति/सं., म.×असं. |
स्वनिमित्तक ऽ लोक परनिमित्तक=ऽ लोक |
स्वनिमि. ऽ लोक परनिमि.=ऽ लोक |
स्वनिमि. ऽ लोक परनिमि.=ऽ लोक |
ऽ लोक |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं |
... |
233 |
|
|
3 |
त्रि/असं.,ति/सं., म.×असं. |
स्वनिमित्तक ऽ लोक परनिमित्तक=ऽ लोक |
स्वनिमि. ऽ लोक परनिमि.=ऽ लोक |
स्वनिमि. ऽ लोक परनिमि.=ऽ लोक |
... |
... |
... |
233 |
|
|
4 |
त्रि/असं.,ति/सं., म.×असं. |
स्वनिमित्तक ऽ लोक परनिमित्तक=ऽ लोक |
स्वनिमि. ऽ लोक परनिमि.=ऽ लोक |
स्वनिमि. ऽ लोक परनिमि.=ऽ लोक |
दोनों अपेक्षा वैक्रियवत् |
... |
... |
234 |
|
सौधर्म ईशान |
1 |
च./असं., म.×असं. |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
... |
234 |
|
|
2 |
च./असं., म.×असं. |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
... |
234 |
|
|
3 |
च./असं., म.×असं. |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
... |
... |
... |
234 |
|
|
4 |
च./असं., म.×असं. |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
... |
237 |
|
सनत्कुमार-सहस्रार |
1,2,4 |
- ←--- स्व ओघवत् --- - |
237 |
|
|
3 |
- |
←--- |
स्व ओघवत् |
--- |
- |
- |
- |
238 |
|
आरण-अच्युत |
1-2 |
च./असं., म.×असं. |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
च./असं., म./असं. |
... |
239 |
|
|
3 |
च./असं., म.×असं. |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
... |
... |
... |
239 |
|
|
4 |
च./असं., म.×असं. |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
क्रमेण: ऽ , ऽ लोक |
... |
239 |
|
नव ग्रैवेयक |
1-2 |
च/असं., म.×असं. |
च/असं., म.×असं. |
च/असं., म.×असं. |
च/असं., म.×असं. |
च/असं., म.×असं.. |
च/असं., म.×असं. |
... |
239 |
|
|
3 |
च/असं., म.×असं. |
च/असं., म.×असं. |
च/असं., म.×असं. |
च/असं., म.×असं. |
... |
... |
... |
239 |
|
|
4 |
च/असं., म.×असं. |
च/असं., म.×असं. |
च/असं., म.×असं. |
च/असं., म.×असं. |
च/असं., म.×असं.. |
च/असं., म.×असं. |
... |
240 |
|
अनुदिश से अपराजित |
4 |
च./असं., म.×असं. |
च./असं., म.×असं. |
च./असं., म.×असं. |
च./असं., म.×असं. |
च./असं., म.×असं. |
च./असं., म.×असं. |
... |
240 |
|
सर्वार्थ सिद्धि |
4 |
म./सं. |
म./सं. |
म./सं. |
म./सं. |
च/असं., म.×असं. |
च/असं., म.×असं. |
... |
प्रमाण |
मार्गणा |
गुणस्थान |
स्वस्थान स्वस्थान |
विहारवत् स्वस्थान |
वेदना कषाय समुद्घात |
वैक्रियिक समुद्घात |
मारणांतिक समुद्घात |
उपपाद |
तैजस, आहारक व केवली समुद्घात |
स.1पृ. |
स.2पृ. |
2. इंद्रिय मार्गणा- |
|
393 |
एकेंद्रिय सा., प., अप. |
|
सर्व |
... |
सर्व |
त्रि/सं. |
सर्व |
सर्व |
... |
|
393 |
एके.सू., प., अप. |
|
सर्व |
... |
सर्व |
... |
सर्व |
सर्व |
... |
|
393 |
एके.बा., प., अप. |
|
त्रि./सं., ति.× असं., म.×असं. |
... |
त्रि./सं., ति.× असं.,म.×असं. |
त्रि./सं., ति.×असं., म.×असं. |
सर्व |
सर्व |
... |
|
395 |
विकलेंद्रिय सा., प., अप. |
|
त्रि./असं., ति./सं., म.×असं. |
त्रि./असं., ति./सं., म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
... |
सर्व |
सर्व |
... |
|
396 |
पंचे.सा., प. |
|
त्रि./असं., ति./सं., म.×असं. |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
सर्व |
सर्व |
मूलोघवत् |
|
399 |
पंचे.अप. |
|
त्रि./असं., ति./सं., म.×असं. |
... |
त्रि./असं., ति./सं., म.×असं. |
... |
सर्व |
सर्व |
... |
240 242 |
|
एके.सर्व विकल्प |
1 |
- |
←--- |
स्व ओघवत् |
--- |
- |
- |
- |
242 243 |
|
विकलेंद्रिय सर्व विकल्प |
1 |
- |
--- |
स्व ओघवत् |
--- |
- |
- |
- |
244 245 |
|
पंचे.सा.प. |
12-14 |
-- |
------ |
स्व ओघवत्मूलोघवत् |
------ |
- - |
- - |
- - |
246 |
|
पंचे.अप. |
1 |
- |
--- |
स्व ओघवत् |
--- |
- |
- |
- |
3. काय मार्गणा- |
|
401 |
पृ.अप.वायु.सा.व सू.प.अप.तेज.सू.अप. |
|
सर्व |
... |
सर्व |
... |
सर्व |
सर्व |
... |
|
401 |
तैज.सा.व सू.प. |
|
सर्व |
... |
सर्व |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
सर्व |
सर्व |
... |
|
404 |
पृ.अप.तैज. वन.प्र. बा.सा., प., अप. |
|
त्रि./असं., ति.×सं., म.×असं. |
... |
त्रि/असं.,ति×सं.,म.×असं. |
त्रि/असं., ति/सं.,म.×असं. |
सर्व |
सर्व |
... |
|
406 |
वायु बा.प.अप. |
|
त्रि./असं., ति./सं., म.×असं. |
... |
त्रि./असं., ति./सं., म.×असं. |
त्रि./असं., ति./सं., म.×असं. |
सर्व |
सर्व |
... |
|
410 |
वन.निगोद सा.सू.प.अप. |
|
सर्व |
... |
... |
... |
सर्व |
सर्व |
... |
|
410 |
वन.निगोद बा.प.अप. |
|
त्रि./असं., ति.×सं., म.×असं. |
... |
त्रि./असं., ति.×सं., म.×असं. |
... |
सर्व |
सर्व |
... |
|
410 |
वन.अप्रतिष्ठित प.अप. |
|
त्रि./असं., ति.×सं., म.×असं. |
... |
त्रि./असं.,ति.×सं.,म.×असं. |
... |
सर्व |
सर्व |
... |
|
401 |
वायु.सा.,प., अप., सू., सू.प., सू.अ. |
|
सर्व |
... |
सर्व |
त्रि./सं., ति.×सं., म.×असं. |
सर्व |
सर्व |
... |
प्रमाण |
मार्गणा |
गुणस्थान |
स्वस्थान स्वस्थान |
विहारवत् स्वस्थान |
वेदना कषाय समुद्घात |
वैक्रियिक समुद्घात |
मारणांतिक समुद्घात |
उपपाद |
तैजस, आहारक व केवली समुद्घात |
स.1पृ. |
स.2पृ. |
|
411 |
त्रसकाय प.अप. |
... |
- |
--- |
पंचेंद्रियवत् |
--- |
- |
- |
- |
247 |
|
पृ.अप.सा.सू.प.अप. |
1 |
सर्व |
... |
सर्व |
... |
सर्व |
सर्व |
... |
250 |
|
वायु अप.सा.सू.प.अप. |
1 |
सर्व |
... |
सर्व |
... |
सर्व |
सर्व |
... |
250 |
|
तेज अप.सा.सू.प.अप. |
1 |
सर्व |
... |
सर्व |
... |
सर्व |
सर्व |
... |
247 |
|
पृ.अप.बा.अप. |
1 |
त्रि./असं.,ति.×सं.,म.×असं. |
... |
त्रि./असं.,ति.×सं.,म.×असं. |
... |
सर्व |
सर्व |
... |
249 |
|
वायु बा.अप. |
1 |
त्रि./सं.,ति.×असं.,म.×असं. |
... |
त्रि./सं.,ति.×असं.,म.×असं. |
... |
सर्व |
सर्व |
... |
247 |
|
तेज बा.अप. |
1 |
त्रि./असं.,ति.×सं.,म.×असं. |
... |
त्रि./असं.,ति.×सं.,म.×असं. |
... |
सर्व |
सर्व |
... |
250 |
|
पृ.अप.बा.प. |
1 |
त्रि./असं.,ति.×सं.,म.×असं. |
... |
त्रि./असं.,ति.×सं.,म.×असं. |
... |
सर्व |
सर्व |
... |
250 |
|
तेज बा.प. |
1 |
त्रि./असं.,ति.×सं.,म.×असं. |
... |
त्रि./असं.,ति.×सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
सर्व |
सर्व |
... |
253 |
|
वायु बा.प. |
1 |
त्रि./सं., ति.×असं., म.×असं. |
... |
त्रि./सं.,ति.×असं.,म.×असं. |
त्रि./सं.,ति.×सं.,म.×असं. |
सर्व |
सर्व |
... |
253 |
|
वन.निगोद सू.अप. |
1 |
सर्व |
... |
सर्व |
... |
सर्व |
सर्व |
... |
253 |
|
वन.निगोद सू.प. |
1 |
सर्व |
... |
सर्व |
... |
सर्व |
सर्व |
... |
247 |
|
वन.निगोद बा.अप. |
1 |
त्रि./असं., ति.×सं., म.×असं. |
... |
त्रि./असं., ति.×सं., म.×असं. |
... |
सर्व |
सर्व |
... |
257 |
|
वन.निगोद बा.प. |
1 |
त्रि./असं., ति.×सं., म.×असं. |
... |
त्रि./असं., ति.×सं., म.×असं. |
... |
सर्व |
सर्व |
... |
257 |
|
वन.अप्रति.प्रत्येक अप. |
1 |
त्रि./असं., ति.×सं., म.×असं. |
... |
त्रि./असं., ति.×सं., म.×असं. |
... |
सर्व |
सर्व |
... |
251 |
|
वन.अप्रति.प्रत्येक प. |
1 |
त्रि./असं., ति.×सं., म.×असं. |
... |
त्रि./असं., ति.×सं., म.×असं. |
... |
सर्व |
सर्व |
... |
247 |
|
बादर वन.सप्र., प., अप. |
1 |
त्रि./असं., ति./सं., म.×असं. |
× |
त्रि./असं., ति./सं., म.×असं. |
× |
सर्व |
सर्व |
... |
254 |
|
त्रस अपर्याप्त |
1 |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
... |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
... |
सर्व |
सर्व |
... |
254 |
|
त्रस पर्याप्त |
1 |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
सर्व |
सर्व |
... |
254 |
|
|
2-14 |
- |
--- |
मूलोघवत् |
--- |
- |
- |
- |
प्रमाण |
मार्गणा |
गुणस्थान |
स्वस्थान स्वस्थान |
विहारवत् स्वस्थान |
वेदना कषाय समुद्घात |
वैक्रियिक समुद्घात |
मारणांतिक समुद्घात |
उपपाद |
तैजस, आहारक व केवली समुद्घात |
स.1पृ. |
स.2पृ. |
4. योग मार्गणा- |
|
412 |
पाँचों मनयोगी, वचनयोगी |
|
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
सर्व |
... |
केवल तै., आ.मूलोघवत् |
|
413 |
काय योग सामान्य |
|
सर्व |
ऽ लोक |
सर्व |
ऽ लोक |
सर्व |
सर्व |
मूलोघवत् |
|
414 |
औदारिक काय योग |
|
सर्व |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
सर्व |
त्रि./सं., ति.×असं., म.×असं. |
सर्व |
... |
... |
|
413 |
औदारिक मिश्र योग |
|
सर्व |
... |
सर्व |
... |
सर्व |
सर्व |
केवल कपाट समु.मूलोघवत् |
|
415 |
वैक्रियक काय योग |
|
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
... |
... |
|
417 |
वैक्रियक मिश्र योग |
|
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
... |
स्वस्थानवत् (नारकियों में) |
... |
... |
... |
... |
|
418 |
आहारक काय योग |
|
च./असं./,म./सं. |
च./असं./,म./सं. |
च./असं./,म./सं. |
... |
च./असं./, म.×असं. |
... |
च./असं./,म./सं. |
|
419 |
आहारक मिश्र योग |
|
च./असं./,म./सं. |
... |
... |
... |
... |
... |
... |
|
420 |
कार्माण काय योग |
|
सर्व |
सर्व |
... |
... |
... |
... |
प्रतर, लोकपूरण समुद्घात |
255 |
|
पाँचों मन वचन योग |
1 |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
सर्व |
... |
... |
256 |
|
|
2,4,5 |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
... |
... |
256 |
|
|
3 |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
... |
... |
... |
257 |
|
|
6-13 |
- |
---- |
मूलोघवत् |
---- |
- |
- |
- |
258 |
|
काय योग सामान्य |
1 |
सर्व |
ऽ लोक |
सर्व |
ऽ लोक |
सर्व |
सर्व |
... |
258 |
|
|
2-13 |
- |
---- |
मूलोघवत् |
---- |
- |
- |
- |
259 |
|
औदारिक काययोग |
1 |
सर्व |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
सर्व |
त्रि./सं.,ति.×असं.,म.×असं. |
सर्व |
... |
... |
260 |
|
|
2 |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
ऽ लोक |
... |
... |
261 |
|
|
3 |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
... |
... |
... |
262 |
|
|
4-5 |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
ऽ लोक |
... |
... |
262 |
|
|
6-13 |
- |
---- |
मूलोघवत् |
---- |
- |
- |
... |
प्रमाण |
मार्गणा |
गुणस्थान |
स्वस्थान स्वस्थान |
विहारवत् स्वस्थान |
वेदना कषाय समुद्घात |
वैक्रियिक समुद्घात |
मारणांतिक समुद्घात |
उपपाद |
तैजस, आहारक व केवली समुद्घात |
स.1 पृ. |
स.2 पृ. |
263 |
|
औदारिक मिश्रयोग |
1 |
सर्व |
... |
सर्व |
... |
सर्व |
सर्व |
... |
264264 |
|
|
2 |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
... |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
... |
... |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
... |
264 |
|
|
4 |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
... |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
... |
... |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
... |
265 |
|
|
13 |
... |
... |
.... |
... |
... |
... |
केवली समु.मुलोघवत् |
266 |
|
वैक्रियिक काययोग |
1 |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
... |
... |
267 |
|
|
2 |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
... |
... |
267 |
|
|
3 |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
... |
... |
... |
267 |
|
|
4 |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
... |
... |
268 |
|
वैक्रियिक मिश्रयोग |
1-2 |
त्रि./असं., ति./सं., म.×असं. |
... |
त्रि./असं., ति./सं., म.×असं. |
... |
... |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
... |
268 |
|
|
4 |
च./असं., म.×असं. |
... |
च./असं., म.×असं. |
... |
... |
च./असं., म.×असं. |
... |
269 |
|
आहारक काययोग |
6 |
च./असं., म./सं. |
च./असं., म./सं. |
च./असं.,म./सं. |
... |
च./असं.,म.×असं. |
... |
... |
269 |
|
आहारक मिश्र योग |
6 |
च./असं.,म./सं. |
... |
च./असं.,म./सं. |
... |
... |
... |
... |
270 |
|
कार्माण काययोग |
1 |
सर्व |
... |
सर्व |
... |
... |
सर्व |
... |
270 |
|
|
2 |
... |
... |
... |
... |
... |
ऽ लोक |
... |
270 |
|
|
4 |
... |
... |
... |
... |
... |
ऽ लोक |
... |
271 |
|
|
13 |
... |
... |
... |
... |
... |
... |
प्रतर व लोकपूरण मूलोघवत् |
प्रमाण |
मार्गणा |
गुणस्थान |
स्वस्थान स्वस्थान |
विहारवत् स्वस्थान |
वेदना कषाय समुद्घात |
वैक्रियिक समुद्घात |
मारणांतिक समुद्घात |
उपपाद |
तैजस, आहारक व केवली समुद्घात |
स.1पृ. |
स.2पृ. |
5. वेद मार्गणा- |
|
420 |
स्त्रीवेद (देवीप्रधान) |
|
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
सर्व या लोक |
सर्व या त्रि./असं., ति./सं., लोक |
... |
|
420 |
पुरुषवेद (देवप्रधान) |
|
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
सर्व या लोक |
सर्व या त्रि./असं., ति./सं., लोक |
तै. व आ.मूलोघवत् |
|
423 |
नपुंसक वेद |
|
सर्व |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
सर्व |
त्रि./सं., ति.×असं., म.×असं. |
सर्व |
सर्व |
... |
|
424 |
अपगत वेद |
|
त्रि./असं.,म./सं. |
त्रि./असं.,म.×सं. |
... |
... |
च./असं.,म.×असं. |
... |
केवली समुद्घात ओघवत् |
271 |
|
स्त्री वेद |
1 |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
लोक |
लोक |
लोक |
सर्व |
सर्व |
... |
272 |
|
|
2 |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
... |
274 |
|
|
3 |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
... |
... |
... |
274 |
|
|
4 |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
... |
275 |
|
|
5 |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
ऽ लोक |
... |
... |
275 |
|
|
6-9 |
च/असं.,म/सं. |
च/असं.,म/सं. |
च/असं.,म/सं. |
च/असं.,म/सं. |
च/असं.,म×असं. |
... |
... |
271 |
275 |
पुरुष वेद |
1-5 |
- |
---- |
स्त्रीवेद वत् |
---- |
- |
- |
- |
275 |
|
|
6 |
- |
---- |
स्त्रीवेद वत् |
---- |
- |
- |
तैजस व आहा.ओघवत् |
275 |
|
|
7-9 |
- |
---- |
स्त्रीवेद वत् |
---- |
- |
- |
- |
276 |
|
नपुंसक वेद |
1 |
सर्व |
त्रि./असं., ति./सं., म.×असं. |
सर्व |
लोक |
सर्व |
सर्व |
... |
277 |
|
|
2 |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
लोक |
ऽ लोक |
... |
277 |
|
|
3 |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
... |
... |
.... |
278 |
|
|
4 |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
ऽ लोक |
च/असं.,म×असं. |
... |
278 |
|
|
5 |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
ऽ लोक |
... |
.... |
प्रमाण |
मार्गणा |
गुणस्थान |
स्वस्थान स्वस्थान |
विहारवत् स्वस्थान |
वेदना कषाय समुद्घात |
वैक्रियिक समुद्घात |
मारणांतिक समुद्घात |
उपपाद |
तैजस, आहारक व केवली समुद्घात |
स.1पृ. |
स.2पृ. |
278 |
411 |
|
6-9 |
च./असं.,म./सं. |
म./सं. |
म./सं. |
म./सं. |
च./असं.,म.×असं. |
... |
... |
279 |
|
अपगत वेद |
10-14 |
- ------------- मूलोघवत् ---------- - |
6.कषाय मार्गणा- |
|
425 |
चारों कषाय |
|
सर्व |
ऽ लोक |
सर्व |
ऽ लोक |
सर्व |
सर्व |
तै.व आ. ओघवत् |
|
425 |
अकषाय |
|
- |
------------- |
अपगतवेदीवत् |
---------- |
- |
280 |
|
क्रोध, मान, माया कषाय |
1-9 |
- |
------------- |
मूलोघवत् |
---------- |
- |
280 |
|
लोभ कषाय |
1-10 |
- |
------------- |
मूलोघवत् |
---------- |
- |
280 |
|
अकषाय |
11-14 |
- |
------------- |
मूलोघवत् |
---------- |
- |
7. ज्ञान मार्गणा- |
|
426 |
मतिश्रुत अज्ञान |
|
सर्व |
लोक |
सर्व |
लोक |
सर्व |
सर्व |
... |
|
427 |
विभंग ज्ञान |
|
त्रि./असं., ति./सं., म.×असं. |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
देव, नारकी लोक; तिर्यंच, मनुष्य=सर्व |
... |
... |
|
429 |
मति,श्रुत, अवधिज्ञान |
|
त्रि./असं., ति./सं., म.×असं. |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
तै.आ.ओघवत् |
|
430 |
मन:पर्यय ज्ञान |
|
च./असं., म.×असं. |
च./असं., म.×असं. |
च./असं.,म.×असं. |
च./असं.,म.×असं. |
च./असं.,म.×असं. |
... |
तै.आ.ओघवत् |
|
431 |
केवलज्ञान |
|
च./असं., म./सं. |
च./असं., म./सं. |
... |
अपगत वेदवत् |
... |
... |
केवली समुद्घात |
281 |
|
मतिश्रुत अज्ञान |
1 |
सर्व |
लोक |
सर्व |
लोक |
सर्व |
सर्व |
... |
282 |
|
|
2 |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
लोक |
लोक |
लोक |
लोक |
लोक |
... |
282 |
|
विभंग ज्ञान |
1 |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
सर्व |
... |
... |
283 |
|
|
2 |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
... |
... |
284 |
|
मति, श्रुत अवधि |
4-12 |
- |
------------- |
मूलोघवत् |
---------- |
- |
284 |
|
मन:पर्यय ज्ञान |
6 |
- |
------------- |
मूलोघवत् |
---------- |
- |
284 |
|
केवल ज्ञान |
13-14 |
- |
------------- |
मूलोघवत् |
---------- |
- |
प्रमाण |
मार्गणा |
गुणस्थान |
स्वस्थान स्वस्थान |
विहारवत् स्वस्थान |
वेदना कषाय समुद्घात |
वैक्रियिक समुद्घात |
मारणांतिक समुद्घात |
उपपाद |
तैजस, आहारक व केवली समुद्घात |
स.1पृ. |
स.2पृ. |
8. संयम मार्गणा- |
|
431 |
संयम सामान्य |
|
च./असं., म./स. |
च./असं., म./स. |
च./असं., म./स. |
च./असं., म./स. |
च./असं., म.×अस. |
... |
मूलोघवत् |
|
431 |
सामायिक छेदो. |
|
च./असं.,म./सं. |
च./असं.,म./सं. |
च./असं.,म./सं. |
च./असं.,म./सं. |
च./असं., म.×असं. |
... |
तै.आ.मूलोघवत् |
|
431 |
परिहार विशुद्धि |
|
च./असं.,म./सं. |
च./असं.,म./सं. |
च./असं.,म./सं. |
च./असं.,म./सं. |
च./असं.,म.×असं. |
... |
... |
|
431 |
सूक्ष्म सांपराय |
|
च./असं.,म./सं. |
च./असं.,म./सं. |
... |
... |
च./असं.,म.×असं. |
... |
... |
|
431 |
यथाख्यात |
|
च./असं.,म./सं. |
च./असं.,म./सं. |
... |
... |
च./असं.,म.×असं. |
... |
मात्र केवली समुद्घात |
|
432 |
संयतासंयत |
|
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
ऽ लोक |
... |
... |
|
434 |
असंयत |
|
---- नपुंसक वेदवत् (विहारवत् स्वस्थान ऽ लोक है) --- |
285 |
|
संयम सामान्य |
6-14 |
- |
--- |
मूलोघवत् |
--- |
- |
... |
... |
286 |
|
सामायिक छेदोप. |
6-9 |
- |
--- |
मूलोघवत् |
--- |
- |
... |
... |
286 |
|
परिहार विशुद्धि |
6,7 |
- |
--- |
स्व ओघवत् |
--- |
- |
... |
... |
287 |
|
सूक्ष्म सांपराय |
10 |
- |
--- |
मूलोघवत् |
--- |
- |
... |
... |
287 |
|
यथाख्यात |
11-14 |
- |
--- |
मूलोघवत् |
--- |
- |
... |
... |
287 |
|
संयतासंयत |
5 |
- |
--- |
मूलोघवत् |
--- |
- |
- |
... |
288 |
|
असंयत |
1-4 |
- |
--- |
मूलोघवत् |
--- |
- |
... |
... |
प्रमाण |
मार्गणा |
गुणस्थान |
स्वस्थान स्वस्थान |
विहारवत् स्वस्थान |
वेदना कषाय समुद्घात |
वैक्रियिक समुद्घात |
मारणांतिक समुद्घात |
उपपाद |
तैजस, आहारक व केवली समुद्घात |
स.1पृ. |
स.2पृ. |
9. दर्शन मार्गणा- |
|
434 |
चक्षु दर्शन |
|
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
सर्व |
(लब्धि की अपेक्षा) लोक व सर्व |
तैजस व आहारक ओघवत् |
|
437 |
अचक्षु दर्शन |
|
- --- असंयतवत् (तैजस व आहारक समुद्घात भी पाये जाते हैं।) ---- |
|
438 |
अवधि दर्शन |
|
- |
--- |
अवधि ज्ञानवत् |
--- |
- |
- |
- |
|
438 |
केवल दर्शन |
|
- |
--- |
केवल ज्ञानवत् |
--- |
- |
- |
- |
288 |
|
चक्षु दर्शन |
1 |
- |
--- |
स्व ओघवत् |
--- |
- |
- |
- |
289 |
|
|
2-12 |
- |
--- |
मूलोघवत् |
--- |
- |
- |
- |
289 |
|
अचक्षु दर्शन |
1-12 |
- |
--- |
मूलोघवत् |
--- |
- |
- |
- |
289 |
|
अवधि दर्शन |
4-12 |
- |
--- |
अवधि ज्ञानवत् |
--- |
- |
- |
- |
290 |
|
केवल दर्शन |
13-14 |
- |
--- |
केवल ज्ञानवत् |
--- |
- |
- |
- |
10. लेश्या मार्गणा- |
|
436 |
कृष्ण नील कापोत |
|
- |
--- |
नपुंसक वेदवत् |
--- |
- |
- |
- |
|
439 |
तेज |
|
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
ऽ लोक |
लोक |
लोक |
लोक |
ऽ लोक |
... |
|
441 |
पद्म |
|
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
... |
|
443 |
शुक्ल |
|
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
लोक |
मूलोघवत् |
290 |
|
कृष्ण नील कापोत |
1 |
सर्व |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
सर्व |
लोक |
सर्व |
सर्व |
... |
291 |
|
|
2 |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
क्रमश: ऽ ,,लोक |
मारणांतिकवत् |
... |
294 |
|
|
3 |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
... |
... |
... |
294 |
|
कृष्ण |
4 |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
च./असं.,म.×असं. |
मारणांतिकवत् |
... |
294 |
|
नील |
4 |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
च./असं.,म.×असं. |
मारणांतिकवत् |
... |
प्रमाण |
मार्गणा |
गुणस्थान |
स्वस्थान स्वस्थान |
विहारवत् स्वस्थान |
वेदना कषाय समुद्घात |
वैक्रियिक समुद्घात |
मारणांतिक समुद्घात |
उपपाद |
तैजस, आहारक व केवली समुद्घात |
स.1पृ. |
स.2पृ. |
|
|
कापोत |
4 |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
... |
295 |
|
तेज |
1-2 |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
लोक |
लोक |
लोक |
लोक |
ऽ लोक |
... |
295 |
|
|
3 |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
... |
... |
... |
295 |
|
|
4 |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
... |
296 |
|
|
5 |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
ऽ लोक |
... |
... |
297 |
|
|
6-7 |
- |
--- |
मूलोघवत् |
--- |
- |
- |
- |
297 |
|
पद्म |
1-2 |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
... |
297 |
|
|
3 |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
... |
... |
... |
297 |
|
|
4 |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
... |
298 |
|
|
5 |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
ऽ लोक |
... |
... |
298 |
|
|
6-7 |
- |
--- |
मूलोघवत् |
--- |
- |
- |
- |
299 |
|
शुक्ल |
1-2 |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
च./असं.,म./असं. |
... |
299 |
|
|
3 |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
ऽ लोक |
|
ऽ लोक |
... |
... |
... |
299 |
|
|
4 |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
मारणांतिकवत् |
... |
300 |
|
|
5 |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
लोक |
... |
... |
300 |
|
|
6-14 |
- |
--- |
मूलोघवत् |
--- |
- |
- |
- |
प्रमाण |
मार्गणा |
गुणस्थान |
स्वस्थान स्वस्थान |
विहारवत् स्वस्थान |
वेदना कषाय समुद्घात |
वैक्रियिक समुद्घात |
मारणांतिक समुद्घात |
उपपाद |
तैजस, आहारक व केवली समुद्घात |
स.1पृ. |
स.2पृ. |
11. भव्य मार्गणा- |
|
445 |
भव्य |
... |
सर्व |
लोक |
सर्व |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
सर्व |
सर्व |
मूलोघवत् |
|
445 |
अभव्य |
... |
सर्व |
लोक |
सर्व |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
सर्व |
सर्व |
... |
301 |
|
भव्य |
1-14 |
- |
--- |
मूलोघवत् |
--- |
- |
- |
- |
301 |
|
अभव्य |
1 |
सर्व |
लोक |
सर्व |
लोक |
सर्व |
सर्व |
... |
12. सम्यक्त्व मार्गणा- |
|
446 |
सामान्य (देवापेक्षया) |
... |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
च./असं.,म.×असं.अथवा ति/सं. |
... |
|
447 |
सामान्य (मन.ति.अपेक्षा) |
... |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
ऽ लोक |
मारणांतिकवत् |
मूलोघवत् |
|
450 |
क्षायिक (देव नारकी) |
|
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
... |
|
449 |
क्षायिक (मनु.तिर्य.) |
|
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
मारणांतिकवत् |
मूलोघवत् |
|
452 |
वेदक |
|
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
नारकी-च./असं., म.×असं.देव-त्रि/असं., ति/सं., म×असं.मनुष्य, तिर्यंच- ऽ लोक |
तैजस व आहारक ओघवत् |
|
453 |
उपशम |
|
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
च./असं., म.×असं. |
च./असं.,म.×असं |
... |
|
455 |
सासादन |
|
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
लोक |
तिर्यंच में उत्पन्न नारकी ; तिर्यंचों में उत्पन्न देव ; कुल ऽ लोक |
... |
|
458 |
सम्यग्मिथ्यात्व |
|
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
ऽ लोक |
इन स्थानों की प्रधानता नहीं |
... |
... |
... |
|
458 |
मिथ्यादृष्टि |
|
- |
--- |
असंयतवत् |
--- |
- |
- |
- |
302 |
|
सामान्य |
4-14 |
- |
--- |
मूलोघवत् |
--- |
- |
- |
- |
302 |
|
क्षायिक |
4 |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
लोक |
लोक |
लोक |
लोक |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
... |
303 |
|
|
5 |
च./असं.,म./सं. |
च./असं.,म./सं. बहुभाग |
च./असं.,म./सं. बहुभाग |
च./असं.,म./सं. बहुभाग |
च./असं.,म.×सं. |
... |
... |
303 |
|
|
6-14 |
- |
--- |
मूलोघवत् |
--- |
- |
- |
- |
304 |
|
वेदक |
4-7 |
- |
--- |
मूलोघवत् |
--- |
- |
- |
- |
प्रमाण |
मार्गणा |
गुणस्थान |
स्वस्थान स्वस्थान |
विहारवत् स्वस्थान |
वेदना कषाय समुद्घात |
वैक्रियिक समुद्घात |
मारणांतिक समुद्घात |
उपपाद |
तैजस, आहारक व केवली समुद्घात |
स.1पृ. |
स.2पृ. |
304 |
|
उपशम |
4 |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
च./असं.,म.×असं. |
मारणांतिकवत् |
... |
305 |
|
|
5 |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
ति./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
च./असं.,म.×असं. |
... |
... |
305 |
|
|
6-11 |
- |
--- |
मूलोघवत् |
--- |
- |
- |
- |
306 |
|
सासादन |
2 |
- |
--- |
मूलोघवत् |
--- |
- |
- |
- |
306 |
|
सम्यग्मिथ्यात्व |
3 |
- |
--- |
मूलोघवत् |
--- |
- |
- |
- |
306 |
|
मिथ्यादर्शन |
1 |
- |
--- |
मूलोघवत् |
--- |
- |
- |
- |
13. संज्ञी मार्गणा- |
|
459 |
संज्ञी |
... |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
लोक |
लोक |
लोक |
संज्ञी से संज्ञी= ऽ लोक; संज्ञी से असंज्ञी = सर्व |
मारणांतिकवत् |
मूलोघवत् |
|
461 |
असंज्ञी |
... |
- |
--- |
नपुंसकवेदवत् |
--- |
- |
- |
- |
306 |
|
संज्ञी |
1 |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
लोक |
लोक |
लोक |
सर्व |
सर्व |
- |
307 |
|
|
2-12 |
- |
--- |
मूलोघवत् |
--- |
- |
- |
- |
307 |
|
असंज्ञी |
1 |
सर्व |
ति./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
सर्व |
लोक |
सर्व |
सर्व |
... |
14. आहारक मार्गणा- |
|
461 |
आहारक |
... |
सर्व |
ऽ लोक |
सर्व |
लोक |
सर्व |
सर्व |
मूलोघवत् |
|
461 |
अनाहारक |
... |
सर्व |
... |
... |
... |
... |
सर्व |
केवली=मूलोघवत् |
309 |
|
आहारक |
1 |
- |
--- |
मूलोघवत् |
--- |
- |
- |
- |
309 |
|
|
2 |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक व ऽ लोक |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
... |
309 |
|
|
3 |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
... |
... |
... |
309 |
|
|
4 |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ लोक |
ऽ व ऽ लोक |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
... |
309 |
|
|
5 |
ति./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
त्रि./असं.,ति./सं.,म.×असं. |
ऽ लोक |
... |
... |
309 |
|
|
6-13 |
- |
--- |
मूलोघवत् |
--- |
- |
- |
- |
309 |
|
अनाहारक |
1 |
सर्व |
... |
सर्व |
... |
... |
सर्व |
... |
309 |
|
|
2 |
... |
... |
... |
... |
... |
लोक |
... |
309 |
|
|
4 |
... |
... |
... |
... |
... |
लोक |
प्रतर व लोकपूरण |
309 |
|
|
13 |
... |
... |
... |
... |
... |
... |
मूलोघवत् |
309 |
|
|
14 |
च./असं.,म./सं. |
... |
... |
... |
... |
... |
... |
5. अष्टकर्मों के चतु.बंधकों की ओघ प्ररूपणा-( महाबंध/पुस्तक/.../पृष्ठ... )
सं. |
पद विशेष |
प्रकृति |
स्थिति |
अनुभाग |
प्रदेश |
|
|
मूल प्रकृति |
उत्तर प्रकृति |
मूल प्रकृति |
उत्तर प्रकृति |
मूल प्रकृति |
उत्तर प्रकृति |
मूल प्रकृति |
उत्तर प्रकृति |
1 |
ज.उ.पद |
|
1/292-331/191-235 |
2/170-186/101-110 |
3/478-521/217-243 |
4/208-239/91-109 |
5/348-404/151-211 |
|
|
2 |
भुजगारादि पद |
|
|
2/310-317/163-166 |
3/775-794/367-379 |
4/290-297/134-137 |
5/513-536/286-309 |
6/133-136/71-73 |
|
3 |
वृद्धि हानि |
|
|
2/391-400/198-201 |
3/933-956/455-473 |
4/164/165 |
5/621/365-366 |
136/71-73 |
|
6. मोहनीय सत्कर्मिक बंधकों की ओघ आदेश प्ररूपणा-( कषायपाहुड़/ पु./.../पृ....) |
1 |
दोष व पेज्ज |
1/384-389/399-404 |
|
|
|
|
|
|
|
2 |
24,28 आदि स्थान |
|
2/262-369/326-334 |
|
|
|
|
|
|
|
सत्ता असत्ता के- |
3. |
ज.उ.पद |
2/81-88/60-71 |
2/176-182/165-171 |
3/119-141/68-80 |
3/622-647/368-387 |
5/103-121/65-77 |
5/359-367/227-232 |
|
|
|
भुजगारादि पद |
|
2/454-459/409-414 |
3/206-212/117-120 |
4/118-125/60-67 |
5/156/103-104 |
5/497-500/291-293 |
|
|
|
वृद्धि हानि |
|
2/518-524/465-470 |
3/308-318/169-175 |
4/375-400/232-250 |
5/181/121-122 |
5/554-557/321-324 |
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7. अन्य प्ररूपणाओं की सूची- |
1 2 3 |
पाँच शरीर के योग्य पुद्गल स्कंधों की ज.उ.संघातन परिशातन कृति के स्वामियों की अपेक्षा-दे. धवला 9/370-380 ।
पाँच शरीर के स्वामियों के 2,3,4 आदि भंगों की अपेक्षा-दे. धवला 14/256-267 ।
23 प्रकार वर्गणाओं का जघन्य स्पर्श-दे. धवला 14/149/20 ।
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पुराणकोष से
(1) अग्रायणीयपूर्व की पंचम वस्तु के कर्मप्रकृति चौथे प्राभृत का तीसरा योगद्वार । हरिवंशपुराण - 10.82, देखें अग्रायणीयपूर्व
(2) सम्यग्दर्शन से संबद्ध आस्तिक्य गुण की पर्याय । महापुराण 9. 123
(3) स्पर्शन इंद्रिय का विषय । यह आठ प्रकार का होता है—कर्कश, मृदु, गुरु, लघु, स्निग्ध, रूक्ष, शीत और उष्ण । महापुराण 75. 621
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