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जैन शब्दों का अर्थ जानने के लिए किसी भी शब्द को नीचे दिए गए स्थान पर हिंदी में लिखें एवं सर्च करें

स्पर्श

From जैनकोष

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सिद्धांतकोष से

स्पर्शन का अर्थ स्पर्श करना या छूना है। यहाँ इस स्पर्शानुयोग द्वार में जीवों के स्पर्श का वर्णन किया गया है अर्थात् कौन-कौन मार्गणा स्थानगत पर्याप्त या अपर्याप्त जीव किस-किस गुणस्थान में कितने आकाश क्षेत्र को स्पर्श करता है।

  1. भेद व लक्षण
    1. स्पर्श गुण का लक्षण।
    2. स्पर्श नाम कर्म का लक्षण।
    3. स्पर्शनानुयोग द्वार का लक्षण।
    4. स्पर्श के भेद
      1. स्पर्श गुण व स्पर्श नामकर्म के भेद।
      2. निक्षेपों की अपेक्षा भेद दृष्टि नं.1 व दृष्टि नं.2।
    5. निक्षेप रूप भेदों के लक्षण।
    • अग्नि आदि सभी में स्पर्श गुण।-देखें पुद्गल - 10।
    • स्पर्शन नामकर्म का स्पर्श हेतुत्व।-देखें वर्ण - 4।
    • स्पर्श नामकर्म की बंध उदय सत्त्व प्ररूपणाएँ।-देखें वह वह नाम ।
  2. स्पर्श सामान्य निर्देश
    • परमाणुओं में परस्पर एकदेश व सर्वदेश स्पर्श।-देखें परमाणु - 3।
    1. अमूर्त से मूर्त का स्पर्श कैसे संभव है।
    2. क्षेत्र व काल का अंतर्भाव द्रव्य स्पर्श में क्यों नहीं होता।
    • क्षेत्र व स्पर्श में अंतर।-देखें क्षेत्र - 2.2।
  3. स्पर्श विषयक प्ररूपणाएँ
    • स्पर्शन प्ररूपणा संबंधी नियम।-देखें क्षेत्र - 3।
    1. सारणियों में प्रयुक्त संकेत सूची।
    2. जीवों के वर्तमान काल स्पर्श की ओघ प्ररूपणा।
    3. जीवों के अतीत कालीन स्पर्श की ओघ प्ररूपणा।
    4. जीवों के अतीत कालीन स्पर्श की आदेश प्ररूपणा।
    5. अष्ट कर्मों के चतुबंधकों की ओघ आदेश प्ररूपणा।
    6. मोहनीय सत्कार्मिक बंधकों की ओघ आदेश प्ररूपणा।
    7. अन्य प्ररूपणाओं की सूची।


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पुराणकोष से

(1) अग्रायणीयपूर्व की पंचम वस्तु के कर्मप्रकृति चौथे प्राभृत का तीसरा योगद्वार । हरिवंशपुराण 10.82, देखें अग्रायणीयपूर्व

(2) सम्यग्दर्शन से संबद्ध आस्तिक्य गुण की पर्याय । महापुराण 9. 123

(3) स्पर्शन इंद्रिय का विषय । यह आठ प्रकार का होता है—कर्कश, मृदु, गुरु, लघु, स्निग्ध, रूक्ष, शीत और उष्ण । महापुराण 75. 621


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