किंनर: Difference between revisions
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<span class="GRef"> राजवार्तिक/4/11/4/217/22 </span><span class="SanskritText">किंपुरुषान् कामयंत इति किंपुरुषा:, ....तन्न, किं कारणम्। उक्तत्वात्। उक्तमेतत्–अवर्णवाद एष देवानामुपरीति। कथम् । न हि ते शुचिवैक्रियकदेहा अशुच्यौदारिकशरीरान् नरान् कामयंते।</span> =<span class="HindiText"><strong>प्रश्न</strong>—खोटे मनुष्यों को चाहने के कारण से किंनर....यह संज्ञा क्यों नहीं मानते? <strong>उत्तर−</strong>यह सब देवों का अवर्णवाद है। ये पवित्र वैक्रियक शरीर के धारक होते हैं, वे कभी भी अशुचि औदारिक शरीरवाले मनुष्य आदि की कामना नहीं करते।</span></li> | <span class="GRef"> राजवार्तिक/4/11/4/217/22 </span><span class="SanskritText">किंपुरुषान् कामयंत इति किंपुरुषा:, ....तन्न, किं कारणम्। उक्तत्वात्। उक्तमेतत्–अवर्णवाद एष देवानामुपरीति। कथम् । न हि ते शुचिवैक्रियकदेहा अशुच्यौदारिकशरीरान् नरान् कामयंते।</span> =<span class="HindiText"><strong>प्रश्न</strong>—खोटे मनुष्यों को चाहने के कारण से किंनर....यह संज्ञा क्यों नहीं मानते? <strong>उत्तर−</strong>यह सब देवों का अवर्णवाद है। ये पवित्र वैक्रियक शरीर के धारक होते हैं, वे कभी भी अशुचि औदारिक शरीरवाले मनुष्य आदि की कामना नहीं करते।</span></li> | ||
<li class="HindiText">अनंतनाथ भगवान् का शासक यक्ष–देखें [[ तीर्थंकर#5.3 | तीर्थंकर - 5.3]]।</span></li> | <li class="HindiText">अनंतनाथ भगवान् का शासक यक्ष–देखें [[ तीर्थंकर#5.3 | तीर्थंकर - 5.3]]।</span></li> |
Revision as of 22:46, 13 December 2023
- किन्नरदेव का लक्षण
धवला 13/5,5,140/391/8 गीतरतय: किन्नर:। =गान में रति करने वाले किन्नर कहलाते हैं।
- व्यंतर देवों का एक भेद है—देखें व्यंतर - 1.2।
- किन्नर देव के भेद
तिलोयपण्णत्ति/6/34 ते किंपुरिसा किंणरहिदयंगमरुवपालिकिंणरया। किंणरणिंदिदणामा मणरम्मा किंणरुत्तमया।34। रतिपियजेट्ठा। =किंपुरुष, किन्नर, ह्रदयंगम, रूपपाली, किन्नरकिन्नर, अनिंदित, मनोरम, किन्नरोत्तम, रतिप्रिय और ज्येष्ठ, ये दश प्रकार के किन्नर जाति के देव होते हैं। (तिलोकसार/257−258)
- किन्नर देवों के वर्ण परिवार व अवस्थानादि–देखें व्यंतर - 2.1।
- किंनर व्यपदेश संबंधी शंका समाधान
राजवार्तिक/4/11/4/217/22 किंपुरुषान् कामयंत इति किंपुरुषा:, ....तन्न, किं कारणम्। उक्तत्वात्। उक्तमेतत्–अवर्णवाद एष देवानामुपरीति। कथम् । न हि ते शुचिवैक्रियकदेहा अशुच्यौदारिकशरीरान् नरान् कामयंते। =प्रश्न—खोटे मनुष्यों को चाहने के कारण से किंनर....यह संज्ञा क्यों नहीं मानते? उत्तर−यह सब देवों का अवर्णवाद है। ये पवित्र वैक्रियक शरीर के धारक होते हैं, वे कभी भी अशुचि औदारिक शरीरवाले मनुष्य आदि की कामना नहीं करते। - अनंतनाथ भगवान् का शासक यक्ष–देखें तीर्थंकर - 5.3।