विराग: Difference between revisions
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<p><span class="GRef"> राजवार्तिक/7/12/4/539/12 </span><span class="SanskritText">रागकारणाभाव्रात् विषयेभ्यो विरंजनं विरागः। </span>= <span class="HindiText">राग के कारणों का अर्थात् चारित्रमोह के उदय का अभाव हो जाने से पंचेंद्रिय के विषयों से विरक्त होने का नाम विराग है। </span><br /> | <p><span class="GRef"> राजवार्तिक/7/12/4/539/12 </span><span class="SanskritText">रागकारणाभाव्रात् विषयेभ्यो विरंजनं विरागः। </span>= <span class="HindiText">राग के कारणों का अर्थात् चारित्रमोह के उदय का अभाव हो जाने से पंचेंद्रिय के विषयों से विरक्त होने का नाम विराग है। </span><br /> | ||
<span class="GRef"> प्रवचनसार / तात्पर्यवृत्ति/239/ | <span class="GRef"> प्रवचनसार / तात्पर्यवृत्ति/239/प्रक्षेपक गाथा 1 टीका/332/12 </span><span class="SanskritText">पंचेंद्रियसुखाभिलाषत्यागो विषयविरागाः।</span> <span class="HindiText">पाँचों इंद्रियों के सुख की अभिलाषा का त्याग विषयविराग है। </span></p> | ||
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Latest revision as of 23:12, 16 February 2024
राजवार्तिक/7/12/4/539/12 रागकारणाभाव्रात् विषयेभ्यो विरंजनं विरागः। = राग के कारणों का अर्थात् चारित्रमोह के उदय का अभाव हो जाने से पंचेंद्रिय के विषयों से विरक्त होने का नाम विराग है।
प्रवचनसार / तात्पर्यवृत्ति/239/प्रक्षेपक गाथा 1 टीका/332/12 पंचेंद्रियसुखाभिलाषत्यागो विषयविरागाः। पाँचों इंद्रियों के सुख की अभिलाषा का त्याग विषयविराग है।