विराग
From जैनकोष
राजवार्तिक/7/12/4/539/12 रागकारणाभाव्रात् विषयेभ्यो विरंजनं विरागः। = राग के कारणों का अर्थात् चारित्रमोह के उदय का अभाव हो जाने से पंचेंद्रिय के विषयों से विरक्त होने का नाम विराग है।
प्रवचनसार / तात्पर्यवृत्ति/239/प्रक्षेपक गाथा 1 टीका/332/12 पंचेंद्रियसुखाभिलाषत्यागो विषयविरागाः। पाँचों इंद्रियों के सुख की अभिलाषा का त्याग विषयविराग है।