आतम अनुभव आवै जब निज: Difference between revisions
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गोष्ठी कथा कुतुहल विघटै, पुद्गलप्रीति नसावै ।।२ ।।<br> | गोष्ठी कथा कुतुहल विघटै, पुद्गलप्रीति नसावै ।।२ ।।<br> | ||
राग-दोष जुग चपल पक्षजुत, मन पक्षी मर जावै ।।३ ।।<br> | राग-दोष जुग चपल पक्षजुत, मन पक्षी मर जावै ।।३ ।।<br> | ||
ज्ञानानन्द सुधारस, उधमै, | ज्ञानानन्द सुधारस, उधमै, घट अंतर न समावे ।।४ ।।<br> | ||
`भागचन्द' ऐसे अनुभव के, हाथ जोरि सिर नावै ।।५ ।।<br> | `भागचन्द' ऐसे अनुभव के, हाथ जोरि सिर नावै ।।५ ।।<br> | ||
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Latest revision as of 22:31, 13 September 2024
(राग गौरी)
आतम अनुभव आवै जब निज, आतम अनुभव आवै ।
और कछू न सुहावै, जब निज आतम आतम अनुभव आवै ।।टेक ।।
रस नीरस हो जात ततच्छिन, अक्ष विषय नहीं भावै ।।१ ।।
गोष्ठी कथा कुतुहल विघटै, पुद्गलप्रीति नसावै ।।२ ।।
राग-दोष जुग चपल पक्षजुत, मन पक्षी मर जावै ।।३ ।।
ज्ञानानन्द सुधारस, उधमै, घट अंतर न समावे ।।४ ।।
`भागचन्द' ऐसे अनुभव के, हाथ जोरि सिर नावै ।।५ ।।