रुद्र: Difference between revisions
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<li class="HindiText"> एक | <li class="HindiText"> एक ग्रह−देखें - [[ ग्रह | ग्रह। ]]</li> | ||
<li class="HindiText"> असुरकुमार (भवनवासी देव) | <li class="HindiText"> असुरकुमार (भवनवासी देव)−देखें - [[ असुर | असुर। ]]</li> | ||
<li class="HindiText"> ग्यारह रुद्र | <li class="HindiText"> ग्यारह रुद्र परिचय− देखें - [[ शलाका पुरुष#7 | शलाका पुरुष / ७ ]]। </li> | ||
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<p>ति. प./४/५२१<span class="PrakritText"> रुद्दा रउद्दकम्मा अहम्मवावारसंलग्गा ! </span>=<span class="HindiText"> (जो) अधर्मपूर्ण व्यापार में संलग्न होकर रौद्रकर्म किया करते हैं (वे रुद्र कहलाते हैं)। </span><br /> | <p>ति. प./४/५२१<span class="PrakritText"> रुद्दा रउद्दकम्मा अहम्मवावारसंलग्गा ! </span>=<span class="HindiText"> (जो) अधर्मपूर्ण व्यापार में संलग्न होकर रौद्रकर्म किया करते हैं (वे रुद्र कहलाते हैं)। </span><br /> |
Revision as of 15:25, 6 October 2014
- एक ग्रह−देखें - ग्रह।
- असुरकुमार (भवनवासी देव)−देखें - असुर।
- ग्यारह रुद्र परिचय− देखें - शलाका पुरुष / ७ ।
ति. प./४/५२१ रुद्दा रउद्दकम्मा अहम्मवावारसंलग्गा ! = (जो) अधर्मपूर्ण व्यापार में संलग्न होकर रौद्रकर्म किया करते हैं (वे रुद्र कहलाते हैं)।
रा. वा./९/२८/२/६२७/२८ रोदयतीति रुद्रः क्रूर इत्यर्थः। = रुलाने वाले को रुद्र - क्रूर कहते हैं।
पं. प्र./टी./१/४२ पश्चात् पूर्वकृत चारित्रमोहोदयेन विषयासक्तो भूत्वा रुद्रो भवति। = उसके बाद (जिनदीक्षा लेकर पुण्यबंध करने के बाद) पूर्वकृत चारित्र मोह के उदय से विषयों में लीन हुआ रुद्र कहलाता है।
त्रि. सा./८४१ विज्जणुवादपढणे दिट्ठफला णट्ठसंजमा भव्वा। कदिचि भवे सिज्झंति हु गहिदुज्झियसम्ममहिमादो।८४१। = ये रुद्र विद्यानुवाद पूर्व के पढ़ने से इस लोक सम्बन्धी फल के भोक्ता हुए। तथा जिनका संयम नष्ट हो गया है, जो भव्य हैं और जो ग्रहण कर छोड़े हुए सम्यक्त्व के माहात्म्य से कुछ ही भवों में मुक्ति पायेंगे ऐसे वे रुद्र होते हैं।