उत्कर्ष समा: Difference between revisions
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Revision as of 21:38, 5 July 2020
न्याय सू/5-1/4 साध्यदृष्टान्तयोर्द्धर्म विकल्पादुभयसाध्यत्वाच्चोत्कर्षसमा ।4।
न्या.सू./भाष्य 5-1/4 दृष्टान्तधर्म साध्ये समाञ्जन् उत्कर्षसमः। यदि क्रियाहेतुगुणयोगाल्लीष्टवत् क्रियावानात्मा लोष्टवदेव स्पर्शवानपि प्राप्नोति। अथ न स्पर्शवान् लोष्टवत् क्रियावानपि न प्राप्नोति विपर्यये वा विशेषो वक्तव्य इति।
= दृष्टान्तधर्मको साध्यके साथ मिलानेवालेको `उत्कर्षसमा' कहते हैं। जैसे-आत्मा यदि डेलके समान क्रियावान है तो डेलके समान ही स्पर्शवान भी हो जाओ। अब वादी यदि आत्मा डेलके समान स्पर्शवान् नहीं मानना चाहेगा तब तो वह आत्मा उसी प्रकार कियावान् भी नहीं हो सकेगा।
( श्लोकवार्तिक पुस्तक 4/न्या. 340/474-475/1)