उत्कर्षण
From जैनकोष
धवला पुस्तक 10/4,2,4,21/52/4
कम्मप्सदेसट्ठिदिवट्ठावणमुक्कड्डणा।
= कर्म प्रदेशों की स्थिति (व अनुभाग) को बढ़ाना उत्कर्षण कहलाता है।
गोम्मट्टसार कर्मकांड / जीव तत्त्व प्रदीपिका टीका गाथा 438/591/14
स्थित्यनुभागयोर्वृद्धि उत्कर्षणं।
= स्थित और अनुभाग की वृद्धि को उत्कर्षण कहते हैं।
गोम्मटसार जीवकांड/ भाषा 258/566/17
नीचले निषेकनिका परमाणू ऊपरिके निषेकनिविषै मिलावना सो उत्कर्षण है।
(लब्धिसार / भाषा 55/87/4)
2. उत्कर्षण योग्य प्रकृतियाँ
गोम्मट्टसार कर्मकांड / मूल गाथा 444/595
बंधुक्कट्टकरणं सगसगबंधोत्ति होदि णियमेण।
= बंधकरण और उत्कर्ष करण में दोनों, जिस-जिस प्रकृति की जहाँ बंध व्युच्छित्ति भई, तिस-तिस प्रकृति का (बंध व उत्कर्षण भी) तहाँ ही पर्यंत नियमकरि जानने।
3. उत्कर्षण संबंधी कुछ नियम
क्षपणासार / मूल या टीका गाथा 402
संकामेदुक्कट्टदि जे अंसेते अवट्टिदा होंति। आवलियं से काले तेण परं होंति भजियव्वं ।402। नियम नं.-1 संक्रमणविषै जे प्रकृतिके परमाणू उत्कर्षणरूप करिए है, ते अपने कालविषै आवलिकाल पर्यंत तौ अवस्थित ही रहैं। तातै परै भजनीय हो है, अवस्थित भी रहें और स्थिति आदिकी वृद्धि हानि आदि रूप भी होंइ।
कषायपाहुड़ पुस्तक 5/4-22/$572, 336/339
उक्कडिदे अणुभागट्ठाणाविभागपडिच्छेदाणं बुड्ढीए अभावादो.....बंधेण विणा तदुक्कड्डणाणुवत्तीदो।336-1। परमाणूणं बहुत्तमप्पत्तं वा अणुभागवड्ढिहाणीणं ण कारणमिदि बहुसो परूविदत्तादी ।339-12।
नियम नं. 2-उत्कर्षण के होने पर अनुभाग स्थान के अविभागी प्रतिच्छेदों की वृद्धि नहीं होती है, क्योंकि बंध के बिना उसका उत्कर्षण नहीं बन सकता। नियम नं. 3-परमाणुओं का बहुतपना या अल्पपना, अनुभाग की वृद्धि और हानि का कारण नहीं है, अर्थात् यदि परमाणु बहुत हों तो अनुभाग भी बहुत हो और यदि परमाणु कम हों तो अनुभाग भी कम हो, ऐसा नहीं है, यह अनेक बार कहा जा चुका है।
धवला पुस्तक 10/4,2,4,11/43/5
बंधाणुसारिणीए उक्कड्डणाएयुधपदेसविण्णासाणुववत्तीदो।
धवला पुस्तक 10/4,2,4,14/49/6
जस्स समयपबद्धस्स सत्तिट्ठिदी वट्टमाणबंधट्ठिदिसमाणा सो समयपबद्धो वट्टमाणबंधचरियट्ठिदि त्ति उक्कड्डिज्जदि।
धवला पुस्तक 10/4,2,4,21/52/5
उदयावलियट्ठिदिपदेसा ण उक्कड्डिज्जंति।......उदयावलियबाहिरट्ठिदीओ सव्वाओ [ण] उक्कड्डिज्जंति। किंतु चरिमट्ठिदी आवलियाए असंखेज्जदिभागमइच्छिदूण आवलियाए असंखेज्जदिभागे उक्कड्डिज्जदि, उवरि ट्ठिदिबंधाभावादो। अइच्छा वणाणिक्खेवाभावा णत्थि उक्कड्डणा हेट्ठा।
= नियम नं. 4-उत्कर्षण बंध का अनुसरण करने वाला होता है, इसलिए उसमें दूसरे प्रकार से प्रदेशों की रचना नहीं बन सकती। नियम नं.5-जिस समयप्रबद्ध की शक्ति स्थिति वर्तमान में बाँधे हुए कर्म की अंतिम स्थिति के समान है उस समय प्रबद्ध का वर्तमान में बँधे हुए कर्म की अंतिम स्थिति तक उत्कर्षण किया जाता है। नियम नं. 6-उदयावली की स्थिति के प्रदेशों का उत्कर्षण नहीं किया जाता है। नियम नं.7-उदयावली के बाहर की सभी स्थितियों का (भी) उत्कर्षण (नहीं) किया जाता है। किंतु चरम स्थिति के आवली के असंख्यातवें भाग को अतिस्थापना रूप से स्थापित करके आवलि के असंख्यात बहुभाग का उत्कर्षण होता है। क्योंकि इससे ऊपर स्थितिबंध का अभाव है। अतिस्थापना और निक्षेप का अभाव होने से नीचे उत्कर्षण नहीं होता है।
कषायपाहुड़ पुस्तक 7/5-22/$431/244 विशेषार्थ
"यह पहले बतला आये हैं कि उत्कर्षण सब कर्म परमाणुओं का न होकर कुछ का होता है और कुछ का नहीं। जिनका नहीं होता उनका संक्षेप से ब्योरा इस प्रकार है - 1. उदयावली के भीतर स्थित कर्म परमाणुओं का उत्कर्षण नहीं होता। 2. उदयावली के बाहर भी सत्ता में स्थित जिन कर्म परमाणुओंकी कर्मस्थिति (स्थिति) उत्कर्षणके समय बँधने वाले कर्मों की आबाधा के बराबर या उससे कम शेष रही है, उनका भी उत्कर्षण नहीं होता। 3. निर्व्याघात दशा में उत्कर्षण को प्राप्त होने वाले कर्मपरमाणुओं की अतिस्थापना कम से कम एक आवली प्रमाण बतलायी है, इसलिए अतिस्थापनारूप द्रव्य में उत्कर्षित द्रव्यका निक्षेप नहीं होता। 4. व्याघात दशा में कम से कम आवलि के असंख्यातवें भाग प्रमाण अतिस्थापना और इतना ही निक्षेप प्राप्त होनेपर उत्कर्षण होता है। अन्यथा नहीं होता।
नोट-इस विषय का विस्तार - दे.
(कषायपाहुड़ पुस्तक 6/22/सूत्र 4-47/पृष्ठ 214-219); (कषायपाहुड़ पुस्तक 7/5-22/$426-474/पृ. 242-273)
4. व्याघात व अव्य घात उत्कर्षण निर्देश
कषायपाहुड़ पुस्तक 7/5-22/$431/245/5 विशेषार्थ
- "जहाँ अति स्थापना एक आवली और निक्षेप आवली का - असंख्यातवाँ भाग आदि बन जाता है वहाँ निर्व्याघात् दशा होती है। और जहाँ अतिस्थापना के एक आवली प्रमाण होने में बाधा आती है वहाँ व्याघात दशा होती है। जब प्राचीन सत्ता में स्थित कर्म परमाणुओं की स्थिति से नूतनबंध अधिक हो, पर इस अधिक का प्रमाण एक आवली और एक आवलि के असंख्यातवें भाग के भीतर ही प्राप्त हो, तब यह व्याघात दशा होती है। इसके सिवा उत्कर्षणमें सर्वत्र निर्व्याघात दशा ही जानना।"
5. स्थिति बन्धोत्सरण निर्देश
लब्धिसार / भाषा 314/399/3 जैसे स्थिति बन्धापसरण करके (देखें अपकर्षण - 3) चढ़ते हुए स्थितिबन्ध घटाकर एक-एक अन्तर्मुहूर्त में समान बन्ध करता था, वैसे ही यहाँ स्थितिबन्धोत्सरणकार स्थिति बन्ध बँधाकर एक-एक अन्तर्मुहूर्त में समान बन्ध करता है।
6. उत्कर्षण विधान तथा जघन्य उत्कृष्ट अतिस्थापना व निक्षेप
1. दृष्टि नं. 1
लब्धिसार / मूल या टीका गाथा 61-64
सत्तग्गाट्ठिदिबंधो अदिठिदुक्कट्टणे जहण्णेण। आवलिअसंखभागं तेत्तियमेत्तेव णिक्खिवदि ।61। तत्तोदित्थावणगं वड्ढदि जावावली तदुक्कस्सं। उवरीदो णिक्खेओ वरं तु बंधिय ठिदि जेट्ठं ।62। बोलिय बंधावलियं उक्कट्ठिय उदयदो दु णिक्खिविय। उवरिमसमये विदियावलिपढमुक्कट्टणे जादो ।63। तक्कालवज्जमाणे वारट्ठिदीए अदित्थियावाहं। समयजुदावलीयाबाहूणो उक्कस्सठिदिबंधो ।64।
= मूल भाषाकार कृत विस्तार-अव्याघात विषै स्थिति का उत्कर्षण होतै विधान कहिए है। पूर्वै जे सत्ता रूप निषेक थे तिनिविषै जो अंत का निषेक था ताका द्रव्य को उत्कर्षण करने का समय विषै बंध्या जो समयप्रबद्ध, तीहिं विषै जो पूर्व सत्ता का अंत निषेक जिस समय उदय आवने योग्य है तिसविषै उदय आवने योग्य बंध्या समयप्रबद्ध का निषेक, तिस निषेक के उपरिवर्ती आवली का असंख्यात भागमात्र निषेक को अतिस्थापना रूप राखि तिनिके उपरिवर्ती जे तितने ही आवली के असंख्यात भाग मात्र निषेक तिनि विषै तिस सत्ता का अंत निषेक का द्रव्य को निक्षेपण करिए है। यहु उत्कर्षण विषै जघन्य अतिस्थापना और जघन्य निक्षेप जानना। संदृष्टि-कल्पना करो कि पूर्व सत्ताका अंतिम निषेक जिस समय उदय होगा उस समयमें वर्तमान समयप्रबद्धका 50 वाँ निषेक उदय होना है तहाँ तिस 50 वें से ऊपर 51 आदि आ. 50/असंनिषेक अर्थात् 16/4 = 4 निषेक अर्थात् 51-54 निषेकोंको अतिस्थापना रूप रखकर तिनके ऊपरवाले आवलीके असंख्यातभागमात्र (54-58) निषेकोंमें निक्षेपण करता है। तहाँ 51-54 तो आ./असं. मात्र निषेक अतिस्थापना रूप है और (54-58) आ./असं मात्र निषेक ही निक्षेप रूप हैं। यह जघन्य अतिस्थापना व जघन्य निक्षेप है। - देखें आगे यंत्र । तिस पूर्व सत्त्वके अंत निषेकते लगाय ते नीचेके (सत्ताके उपात्तादि) निषेक तिनिका (पूर्वोक्त ही विधानके अनुसार) उत्कर्षण होते, निक्षेप तौ पूर्वोक्त प्रमाण ही रहै अर अतिस्थापना क्रमतै एक-एक समय बँधता होइ सो यावत् आवली मात्र उत्कृष्ट अतिस्थापना होइ तावत् यहू क्रम जानना। (यहाँ अतिस्थापना तो 39-54 और निक्षेप 55-58 हो जाती है यथा-संदृष्टि-अंक संदृष्टि करि सत्ताके अंत निषेकको उपांत निषेक जिस समय विषै उदय होगा तिस समय हाल बंध्या समयप्रबद्धका 49वाँ निषेक उदय होगा। सो तिस उपांत निषेकका द्रव्य उत्कर्षण करि ताको 50वाँ आदि (50-54) पाँच निषेकनिको अतिस्थापना रूप राखि ऊपरि 55वाँ आदि (55-58) चार निषेकनिविषै निक्षेपण करिए। बहुरि ऐसे ही उपांत निषेकतै निचले निषेकनिका द्रव्य उत्कर्षण करते, बंध्या समय प्रबद्धका क्रमतै 49वाँ, 48वाँ आदितै लगाइ छः, सात, आठ आदि एक-एक बँधते निषेक अतिस्थापना रूप राखि 55 वाँ आदि (पूर्वोक्त ही 55-58) निषेकनिविषै निक्षेपण करिए है। तहाँ हाल बंध्या समय प्रबद्धका 38वाँ निषेक जिस समयविषै उदय होगा तिस समय विषै उदय आवने योग्य जो पूर्व सत्ताका निषेक ताका द्रव्यको उत्कर्षण करतै हालबंध्या समयप्रबद्धका 39 वाँ आदि 16 निषेकनिकौ (अर्थात् आवली प्रमाण निषेकनिकौ) अतिस्थापनारूप राखे है। सो यहू उत्कृष्ट अतिस्थापना है। इहाँ पर्यंत (पूर्वोक्त ही) 55 आदि (55-58) चार निषेकनिविषै निक्षेपण जानना।
बहुरि आवलीमात्र अतिस्थापना भये पीछे, ताके नीचे-नीचेके निषेकनिका उत्कर्षण करते अतिस्थापना तौ आवलीमात्र ही रहै अर निक्षेप क्रमते एक-एक निषेककरि बँधता हो है। अंक संदृष्टि करि जैसे हाल बंध्या समयप्रबद्धका 37वाँ निषेक जिस समय उदय होगा तिस समय विषै उदय आवने योग्य सत्ताके निषेकको उत्कर्षण होतै (पश्चादानुपूर्वीसे) 38वाँ आदि 16 निषेक (38-53) अतिंस्थापना रूप हो हैं, 54 वाँ आदि पाँच निषेक (54-58) निक्षेप रूप हो हैं। बहुरि ताके नीचेके निषेकका उत्कर्षण होतै 37वाँ आदि (37-52) 16 निषेक अति स्थापना रूप हो हैं। 53वाँ आदि (53-58) छः निषेक निक्षेप रूप हो हैं? ऐसै अतिस्थापना तौ तितना ही अर निक्षेप क्रमतै बँधता जानना। उत्कृष्ट निक्षेप कहाँ होइ सो कहिए है। कोई जीव पहिले उत्कृष्ट स्थिति बांध पीछे ताकी आबाधा विषै एक आवली गमाई ताके अनंतर तिस समयप्रबद्धका जो अंतका निषेक था ताका अपकर्षण कीया। तहाँ ताके द्रव्यको (सत्ता के) अंतके एक समयाधिक आवलीमात्र निषेकनिविषै तौ न दीया, अवशेष वर्तमान समय विषै उदय योग्य निषेक तै लगाइ सर्व निषेककनि विषै दीया। ऐसे पहिले अपकर्षण कीया करी। बहुरि ताकै ऊपरिवर्ती अनंतर समय विषै, पूर्वै अपकर्षण किया करतै जो द्रव्य उदयावली (द्वितीयावली) का प्रथम निषेक विषै दीया था ताका उत्कर्षण किया। तब ताके द्रव्यको तिस उत्कर्षण करनेका समय विषै बंध्या जो उत्कृष्ट स्थिति लिये सययप्रबद्ध, ताके आबाधाको उल्लंघ पाइये है जे प्रथमादि निषेक, तिनिविषै, अंतकै समय अधिक आवलीमात्र निषेक छोड़ि अन्य सर्व निषैकनि विषै निक्षेपण करिए है। इहाँ एक समय अधिक आवली करि युक्त जो आबाधा काल तीहिं प्रमाण तौ अतिस्थापना जानना। काहेतै सो कहिए है-जिस द्वितीयावलीका प्रथम निषेकका उत्कर्षण किया सो तो वर्तमान समयतै लगाइ एक-एक समय अधिक आवलीकाल भए उदय आवने योग्य है। अर जिन निषेकनिविषै निक्षेपण किया है, तै वर्तमान समयतै लगाइ बंधी स्थितिका आबाधाकाल भये उदय आवने योग्य है। सो इनि दोऊनिके बीच एक समय अधिक आवलीकरि युक्त आबाधाकाल मात्र अंतराल भया। द्वितीयावलीके प्रथम निषेकका द्रव्यकौ, बीचमें इतने निषेक उल्लंघ ऊपरिके निषेकनि विषै दीया सोइ इहाँ अतिस्थापनाका प्रमाण जानना। बहुरि इहाँ एक समय अधिक आवली करि युक्त जो आबाधाकाल तीहिं करि हीन जो उत्कृष्ट कर्म स्थिति तीहिं प्रमाण उत्कृष्ट निक्षेप जानना। काहे तै सो कहिए है-
एक समय-अधिक आवली मात्र तो अंतके निषेकनिविषै न दीया अर आबाधाकाल विषै निषेक रचना ही नहीं, तातैं उत्कृष्ट स्थितिविषै इतना घटाया। इहाँ इतना जानना-अपकर्षण द्रव्यका नीचले निषेकनिविषै निक्षेपण कीया ताका जो उत्कर्षण होइ तौ जेती बाकी शक्तिस्थिति होइ तहाँ पर्यंत ही उत्कर्षण होइ, ऊपरि न होइ। शक्तिस्थिति कहा सो कहिये है-विवक्षित समय प्रबद्धका जो अंतका निषेक ताकौ तो सर्व ही स्थिति व्यक्तिस्थिति है, बहुरि ताके नीचे नीचेके निषेकनिके क्रमतै एक समय घाटि, दोय समय घाटि, आदि स्थिति व्यक्तिस्थिति है। बहुरि प्रथमादि निषेकनिकै सर्व ही स्थिति शक्तिस्थिति है। सो उत्कर्षण कीया द्रव्यको, जेती शक्तिस्थिति होइ तहाँ पर्यंत ही दीजिये है, बहुरि पूर्वै निक्षेप अतिस्थापना कहा ताका अंकं संदृष्टिकरि स्वरूप दर्शाइये है-संदृष्टि-जैसे पूर्वै समयप्रबद्ध हजार समयकी स्थिति लिये बंध्या। तामें सोलह समय व्यतीत भये अंत निषेकका द्रव्यको अपकर्षणकरि आबाधाके ऊपरि तिस स्थितिके निषेक थे, तिनविषै 17 निषेक (समय अधिक आवली) को छोड़ि अन्य सर्व निषेकनिविषै द्रव्य दीया। बहुरि ताकै अनंतर समय विषै जो तिस अंत निषेकका द्रव्य, जो उत्कर्षण करनेका समय तै लगाय 17 समय विषै उदय आवने योग्य ऐसा द्वितीयावलीका प्रथम निषेक तिसविषै दीया था ताका उत्कर्षण किया, तब तीहिं समय विषै 1000 समय प्रबद्ध प्रमाण स्थितिबंध भया। ताकी 50 समय प्रमाण तो आबाधा है और 950 निषेक हैं। तिनि निषेकनि विषै अंतके 17 निषेक छोड़ अन्य सर्व निषेकनि विषै तिस उत्कर्षण कीया द्रव्यकौ निक्षेपण करिए है। ऐसे इहां वर्तमान समय तै लगाय जाका उत्कर्षण कीया सो तो सतरहवें (17 वें) समय विषै उदय आवने योग्य था, जिस बंध्या समयप्रबद्धको प्रथम निषैकविषै दीया, सो 51 वाँ समय विषै उदय आवने योग्य भया। सो इनिके बीचि अंतराल 33 समय भया। सोई अतिस्थापना जानना। बहुरि 1000 समयकी स्थितिविषै 50 समय आबाधाके और 17 निषेक अंतके घटाय अवशेष 933 निषेकनिविषै द्रव्य दीया सो यहू उत्कृष्ट निक्षेप जानना।-(इसी बातको नीचे यंत्रों - द्वारा स्पष्ट किया गया है)-
(Kosh1_P0355_Fig0021)
2. दृष्टि नं. 2
लब्धिसार / भाषा/65-67
अथवा कोई आचार्यनिके मतकरि निक्षेपणविषै ऐसे निरूपण है-उत्कृष्ट स्थिति बंध बांधा था, ताकी बंधावलीको गमाय पीछे ताका प्रथम निषेकका उत्कर्षणकरि ताके द्रव्यकौ तिस उत्कर्षण करनेके समयविषै बांध्या जो उत्कृष्ट स्थिति लिये समय प्रबद्ध ताका द्वितीय निषेकका आदि दैकरि अंत विषै अतिस्थापनावली मात्र निषेक छोड़ि सर्व निषेकनिविषै निक्षेपण किया तहाँ एक समय अर एक आवली अर बंधी स्थितिका आबाधाकाल इनिकरि हीन उत्कृष्ट स्थिति प्रमाण उत्कृष्ट निक्षेप हो है। इहाँ बंधी जो उत्कृष्ट स्थिति ताविषै आबाधाकालविषै तौ निषेक रचना नाहीं, अर प्रथम निषेकविषै द्रव्य दीया नाहीं, अर अंतविषै अतिस्थापनावली विषै द्रव्य न दीया, तातै पूर्वोक्त प्रमाण उत्कृष्ट निक्षेप जानना। इहाँ पूर्वोक्त प्रकार अंक संदृष्टिकरि कथन जानना ।65। उत्कृष्ट स्थिति लीए जो उत्कर्षण करनेके समय विषय वंध्या समयप्रबद्ध ताकी आबाधाकालका जो अग्र कहिए अंत समय तीहिं सेती लगाय एक समय अधिक आवली मात्र समय पहिलै उदय आवने योग्य ऐसा जो पूर्व सत्ताका निषेक ताका उत्कर्षण करतैं आवलीमात्र जघन्य अतिस्थापना हो है, जातै तिस द्रव्यकौ आबाधा विषै जो एक आवलीमात्र काल रह्या, ताको उल्लंघ करि तिस बंध्या समयप्रबद्धके प्रथमादि निषेकनिविषै, अंतविषै अतिस्थापनावली छोड़ि निक्षेपण करिए है।
अंक संदृष्टिकरि-जैसे 1000 समयकी स्थिति लीए समय प्रबद्ध बांध्या ताका 50 समय आबाधाकाल ताकै अंत समयतै लगाइ 17 समय पहिलै उदय आवने योग्य ऐसा वर्तमान समयतै 34 वाँ समय विषै उदय आवने योग्य पूर्व सत्ताका निषेक ताका उत्कर्षण करि तत्काल बंध्या समय प्रबद्धका आबाधा काल व्यतीत भये पीछे प्रथमादि समय विषै उदय आवने योग्य 150 निषेक तिनिविषै अंतकै 17 निषेक छोड़ि प्रथमादि 933 निषेक विषै निक्षेपण करिए है। इहाँ उत्कर्षण कीया निषेकनिकै और दीये गये प्रथमादि निषेकनिके बीच अंतराल 16 समयका भया; सोई जघन्य अतिस्थापना जानना ।66। तहाँतै उतरि तिसतै पहिलैं उदय आवने योग्य ऐसा अन्य कोई सत्तास्वरूप समय प्रबद्ध संबंधी द्वितीयावलीका प्रथम निषेक जो वर्तमान समयतै आवलीकाल भए पीछे उदय आवने योग्य है, ताका उत्कर्षण होतै, नीचै एक समय अधिक आवलीकरि हीन आबाधा काल प्रमाण उत्कृष्ट अतिस्थापना ही है। समय-अधिक आवलीकरि हीन जो आबाधा ताकौ उल्लंघ ऊपरिके जे निषेक तिनिविषै अंतके अतिस्थापनावली मात्र निषेक छोड़ि अन्य निषेकनिविषै तिस द्रव्यकौ दीजिए है। इहाँ पूर्वोक्त प्रकार अंक संदृष्टि आदिकरि कथन जानि लेना।