छत्र: Difference between revisions
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<p id="1">(1) अर्हन्त के अष्ट प्रातिहार्यों में एक प्रातिहार्य । भगवान् की मूर्ति पर तीन छत्र लगाये जाते हैं । वे उनके तीनों लोकों के स्वामित्व को सूचित करते हैं । ये उनकी रत्नत्रय की प्राप्ति के भी सूचक है । <span class="GRef"> महापुराण 23. 42-47, 24.46,50, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 4.29, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 15.6-7 </span></p> | |||
<p id="2">(2) चक्रवर्ती कै चौदह रत्नों में एक अजीव रत्न । यह वर्षा आदि बाधाओं का निवारक होता है । <span class="GRef"> महापुराण 32.31, 37-83-85, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 11.35 </span></p> | |||
<p id="3">(3) पारिव्राज्य सम्बन्धी एक सूत्रपद । ऐसे उपकरणों का त्यागी मुनि अगले भव में रत्नों से दैदीप्यमान तीन सत्रों से शोभित होता है । <span class="GRef"> महापुराण 39.181 </span></p> | |||
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Revision as of 21:41, 5 July 2020
== सिद्धांतकोष से ==
- चक्रवर्ती के चौदह रत्नों में से एक–देखें शलाका पुरुष - 2।
- भगवान् के आठ प्रातिहार्यों में से एक–देखें अर्हंत - 8।
पुराणकोष से
(1) अर्हन्त के अष्ट प्रातिहार्यों में एक प्रातिहार्य । भगवान् की मूर्ति पर तीन छत्र लगाये जाते हैं । वे उनके तीनों लोकों के स्वामित्व को सूचित करते हैं । ये उनकी रत्नत्रय की प्राप्ति के भी सूचक है । महापुराण 23. 42-47, 24.46,50, पद्मपुराण 4.29, वीरवर्द्धमान चरित्र 15.6-7
(2) चक्रवर्ती कै चौदह रत्नों में एक अजीव रत्न । यह वर्षा आदि बाधाओं का निवारक होता है । महापुराण 32.31, 37-83-85, हरिवंशपुराण 11.35
(3) पारिव्राज्य सम्बन्धी एक सूत्रपद । ऐसे उपकरणों का त्यागी मुनि अगले भव में रत्नों से दैदीप्यमान तीन सत्रों से शोभित होता है । महापुराण 39.181