निह्नव: Difference between revisions
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प.आ./वि./ | मू.आ./284 <span class="PrakritGatha">कुलवयसीलविहूणे सुत्तत्थं सम्मगागमित्ताणं। कुलवयसीलमहल्ले णिण्हवदोसो दु जप्पंतो।284। </span>=<span class="HindiText">कुल, व्रत, शील विहीन मठ आदि का सेवन करने के कारण, कुल, व्रत व शील से महान् गुरु के पास अच्छी तरह पढ़कर भी ‘मैंने व्रती गुरु से कुछ भी नहीं पढ़ा’ ऐसा कहकर गुरु व शास्त्र का नाम छिपाना निह्नव है।</span> स.सि./6/10/327/11 <span class="SanskritText">कुतश्चित्कारणान्नास्ति न वेद्मीत्यादि ज्ञानस्य व्यपलपनं निह्नव:। </span>=<span class="HindiText">किसी कारण से, ‘ऐसा नहीं है, मैं नहीं जानता’ ऐसा कहकर ज्ञान का अपलाप करना निह्नव है। (रा.वा./6/10/2/517/13); (गो.क./जी.प्र.800/979/10)।</span><br> | ||
प.आ./वि./113/261/4<span class="SanskritText"> निह्नवोऽपलाप:। कस्यचित्सकाशे श्रुतमधीत्यन्यो गुरुरित्यभिधानमपलाप:।</span> =<span class="HindiText">अपलाप करना निह्नव है। एक आचार्य के पास अध्ययन करके ‘मेरा गुरु तो अन्य है’ ऐसा कहना अपलाप है। </span> | |||
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Revision as of 21:43, 5 July 2020
== सिद्धांतकोष से ==
मू.आ./284 कुलवयसीलविहूणे सुत्तत्थं सम्मगागमित्ताणं। कुलवयसीलमहल्ले णिण्हवदोसो दु जप्पंतो।284। =कुल, व्रत, शील विहीन मठ आदि का सेवन करने के कारण, कुल, व्रत व शील से महान् गुरु के पास अच्छी तरह पढ़कर भी ‘मैंने व्रती गुरु से कुछ भी नहीं पढ़ा’ ऐसा कहकर गुरु व शास्त्र का नाम छिपाना निह्नव है। स.सि./6/10/327/11 कुतश्चित्कारणान्नास्ति न वेद्मीत्यादि ज्ञानस्य व्यपलपनं निह्नव:। =किसी कारण से, ‘ऐसा नहीं है, मैं नहीं जानता’ ऐसा कहकर ज्ञान का अपलाप करना निह्नव है। (रा.वा./6/10/2/517/13); (गो.क./जी.प्र.800/979/10)।
प.आ./वि./113/261/4 निह्नवोऽपलाप:। कस्यचित्सकाशे श्रुतमधीत्यन्यो गुरुरित्यभिधानमपलाप:। =अपलाप करना निह्नव है। एक आचार्य के पास अध्ययन करके ‘मेरा गुरु तो अन्य है’ ऐसा कहना अपलाप है।
पुराणकोष से
ज्ञानावरण और दर्शनावरण का एक आस्रव । इसमें आत्मा के ज्ञान और दान पर आवरण छा जाता हैं । हरिवंशपुराण 58.92