निह्नव
From जैनकोष
सिद्धांतकोष से
मूलाचार/284 कुलवयसीलविहूणे सुत्तत्थं सम्मगागमित्ताणं। कुलवयसीलमहल्ले णिण्हवदोसो दु जप्पंतो।284। =कुल, व्रत, शील विहीन मठ आदि का सेवन करने के कारण, कुल, व्रत व शील से महान् गुरु के पास अच्छी तरह पढ़कर भी ‘मैंने व्रती गुरु से कुछ भी नहीं पढ़ा’ ऐसा कहकर गुरु व शास्त्र का नाम छिपाना निह्नव है।
सर्वार्थसिद्धि/6/10/327/11 कुतश्चित्कारणान्नास्ति न वेद्मीत्यादि ज्ञानस्य व्यपलपनं निह्नव:। =किसी कारण से, ‘ऐसा नहीं है, मैं नहीं जानता’ ऐसा कहकर ज्ञान का अपलाप करना निह्नव है। ( राजवार्तिक/6/10/2/517/13 ); ( गोम्मटसार कर्मकांड / जीवतत्त्व प्रदीपिका 800/979/10 )।
प.आ./वि./113/261/4 निह्नवोऽपलाप:। कस्यचित्सकाशे श्रुतमधीत्यन्यो गुरुरित्यभिधानमपलाप:। =अपलाप करना निह्नव है। एक आचार्य के पास अध्ययन करके ‘मेरा गुरु तो अन्य है’ ऐसा कहना अपलाप है।
पुराणकोष से
ज्ञानावरण और दर्शनावरण का एक आस्रव । इसमें आत्मा के ज्ञान और दान पर आवरण छा जाता हैं । हरिवंशपुराण - 58.92