मनोरोध: Difference between revisions
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<p> मन का निरोध । इन्द्रियों का निग्रह होने से मन का भी निरोध हो जाता है । इसका निरोध ही वह ध्यान है जिससे कर्मक्षय होकर अनन्त सुख मिला है । महापुराण 20. 179-180</p> | <p> मन का निरोध । इन्द्रियों का निग्रह होने से मन का भी निरोध हो जाता है । इसका निरोध ही वह ध्यान है जिससे कर्मक्षय होकर अनन्त सुख मिला है । <span class="GRef"> महापुराण 20. 179-180 </span></p> | ||
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Revision as of 21:45, 5 July 2020
मन का निरोध । इन्द्रियों का निग्रह होने से मन का भी निरोध हो जाता है । इसका निरोध ही वह ध्यान है जिससे कर्मक्षय होकर अनन्त सुख मिला है । महापुराण 20. 179-180