मनोरोध
From जैनकोष
मन का निरोध । इंद्रियों का निग्रह होने से मन का भी निरोध हो जाता है । इसका निरोध ही वह ध्यान है जिससे कर्मक्षय होकर अनंत सुख मिला है । महापुराण 20. 179-180
मन का निरोध । इंद्रियों का निग्रह होने से मन का भी निरोध हो जाता है । इसका निरोध ही वह ध्यान है जिससे कर्मक्षय होकर अनंत सुख मिला है । महापुराण 20. 179-180