वणिज्: Difference between revisions
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<p> तीर्थंकर वृषभदेव दारा निर्मित तीन वर्णों में दूसरा वर्ण । इसका अपर नाम वैश्य था । ये कृषि, व्यापार और पशुपालन आदि के द्वारा न्यायपूर्वक जीविका करते थे । इस वर्ण को वृषभदेव ने स्वयं यात्रा करके यात्रा करना सिखाया था । जल और स्थल आदि प्रदेशों में यात्रा करके व्यापार करना इस वर्ण की जीविका का मुख्य साधन था । महापुराण 16-183-184, 244, 38.46</p> | <p> तीर्थंकर वृषभदेव दारा निर्मित तीन वर्णों में दूसरा वर्ण । इसका अपर नाम वैश्य था । ये कृषि, व्यापार और पशुपालन आदि के द्वारा न्यायपूर्वक जीविका करते थे । इस वर्ण को वृषभदेव ने स्वयं यात्रा करके यात्रा करना सिखाया था । जल और स्थल आदि प्रदेशों में यात्रा करके व्यापार करना इस वर्ण की जीविका का मुख्य साधन था । <span class="GRef"> महापुराण 16-183-184, 244, 38.46 </span></p> | ||
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Revision as of 21:46, 5 July 2020
तीर्थंकर वृषभदेव दारा निर्मित तीन वर्णों में दूसरा वर्ण । इसका अपर नाम वैश्य था । ये कृषि, व्यापार और पशुपालन आदि के द्वारा न्यायपूर्वक जीविका करते थे । इस वर्ण को वृषभदेव ने स्वयं यात्रा करके यात्रा करना सिखाया था । जल और स्थल आदि प्रदेशों में यात्रा करके व्यापार करना इस वर्ण की जीविका का मुख्य साधन था । महापुराण 16-183-184, 244, 38.46