वणिज्
From जैनकोष
तीर्थंकर वृषभदेव दारा निर्मित तीन वर्णों में दूसरा वर्ण । इसका अपर नाम वैश्य था । ये कृषि, व्यापार और पशुपालन आदि के द्वारा न्यायपूर्वक जीविका करते थे । इस वर्ण को वृषभदेव ने स्वयं यात्रा करके यात्रा करना सिखाया था । जल और स्थल आदि प्रदेशों में यात्रा करके व्यापार करना इस वर्ण की जीविका का मुख्य साधन था । महापुराण 16-183-184, 244, 38.46