वेदना समुद्घात: Difference between revisions
From जैनकोष
m (Vikasnd moved page वेदना समुद्घात to वेदना समुद्घात without leaving a redirect: RemoveZWNJChar) |
(Imported from text file) |
||
Line 1: | Line 1: | ||
<ol> | <ol> | ||
<li><strong class="HindiText" name="1" id="1">वेदना | <li><strong class="HindiText" name="1" id="1">वेदना समुद्घात</strong><br /> | ||
रा.वा./ | रा.वा./1/20/12/77/13 <span class="SanskritText">वातिकादिरोगविषादिद्रव्यसंबन्धसंतापापादितवेदनाकृतो वेदनासमुद्घातः । </span>= <span class="HindiText">वात पित्तदि विकार जनित रोग या विषपान आदि की तीव्रवेदना से आत्म प्रदेशों का बाहर निकलना वेदना समुद्घात है । </span><br /> | ||
ध. | ध.4/1, 3, 2/26/7 <span class="PrakritText">तत्थ वेदणसमुग्घादो णाम अक्खि-सिरोवेदणादीहि जीवाणमुक्कस्सेण सरीरतिगुणविप्फूजणं । </span>= <span class="HindiText">नेत्र वेदना, शिरोवेदना, आदि के द्वारा जीवों के प्रदेशों का उत्कृष्टतः शरीर से तिगुणे प्रमाण विसर्पण का नाम वेदनासमुद्घात है । (ध.7/2, 6, 1/299/8); (ध.11/4, 2, 5, 9/18/7) । </span><br /> | ||
द्र.सं./टी./ | द्र.सं./टी./10/25/3 <span class="SanskritText">तीव्रवेदनानुभवान्मूलशरीरमत्यक्त्वा आत्मप्रदेशानां बहिर्निगमनमिति वेदनासमुद्धातः ।</span> = <span class="HindiText">तीव्र पीड़ा के अनुभव से मूल शरीर न छोड़ते हुए जो आत्मा के प्रदेशों का शरीर से बाहर निकलना सो वेदना समुद्घात है । <br /> | ||
</span></li> | </span></li> | ||
<li><span class="HindiText"><strong name="2" id="2"> वेदना | <li><span class="HindiText"><strong name="2" id="2"> वेदना समुद्घात में प्रदेशों का विस्तार</strong> </span><br /> | ||
ध. | ध.11/4, 2, 5, 9/18/7 <span class="PrakritText">वेयणावसेण जीवपदेसाणं विक्खंभुस्सेहेहि तिगुणविपंजणं वेयणासमुग्घादो णाम । ण च एस णियमो सव्वेसिं जीवपदेसा वेयणाए तिगुणं चेव विपुंजंति त्ति, किंतु सगविक्खंभादो तरतमसरूवेण ट्ठिदवेयणावसेण एगदोपदेसादीहि वि वड्डी होदि । </span>= | ||
<ol> | <ol> | ||
<li class="HindiText"> वेदना के वश से जीव प्रदेशों के विष्कम्भ और उत्सेध की अपेक्षा तिगुने प्रमाण में फैलने का नाम वेदना | <li class="HindiText"> वेदना के वश से जीव प्रदेशों के विष्कम्भ और उत्सेध की अपेक्षा तिगुने प्रमाण में फैलने का नाम वेदना समुद्घात है । (ध.7/2, 6, 1/299/8); (ऊपर वाला लक्षण); (गो.जी./जी.प्र./584/ 1025/8) । </li> | ||
<li class="HindiText"> परन्तु सबके जीव प्रदेश वेदना के वश से तिगुणे ही फैलते हों, ऐसा नियम नहीं है । किन्तु तरतम रूप से स्थित वेदना के वश से अपने विष्कम्भ की अपेक्षा एक दो प्रदेशादिकों से भी वृद्धि होती है । <br /> | <li class="HindiText"> परन्तु सबके जीव प्रदेश वेदना के वश से तिगुणे ही फैलते हों, ऐसा नियम नहीं है । किन्तु तरतम रूप से स्थित वेदना के वश से अपने विष्कम्भ की अपेक्षा एक दो प्रदेशादिकों से भी वृद्धि होती है । <br /> | ||
</li> | </li> | ||
Line 14: | Line 14: | ||
</li> | </li> | ||
<li><span class="HindiText"><strong name="3" id="3"> निगोद जीव को यह सम्भव नहीं</strong> </span><br /> | <li><span class="HindiText"><strong name="3" id="3"> निगोद जीव को यह सम्भव नहीं</strong> </span><br /> | ||
ध. | ध.11/4, 2, 5, 12/21/2 <span class="PrakritText">णिगोदेसुप्पज्जमाणस्स अइतिव्ववेयणाभावेण सरीरतिगुणवेयणसमुग्घादस्स अभावादो । </span>= <span class="HindiText">निगोद जीवों में उत्पन्न होने वाले जीव के अतिशय तीव्र वेदना का अभाव होने से विवक्षित शरीर से तिगुणा वेदना समुद्घात सम्भव नहीं है । <br /> | ||
</span></li> | </span></li> | ||
<li><span class="HindiText"><strong name="4" id="4"> जीव प्रदेशों के खण्डित होने की संभावना</strong> </span><br /> | <li><span class="HindiText"><strong name="4" id="4"> जीव प्रदेशों के खण्डित होने की संभावना</strong> </span><br /> | ||
स्या.मं./ | स्या.मं./9/102/16<span class="SanskritText"> शरीरसंबद्धात्मप्रदेशेभ्यो हि कतिपयात्मप्रदेशानां खण्डितशरीरप्रदेशेऽवस्थानादात्मनः खण्डनम् । तच्चात्र विद्यत एव । अन्यथा शरीरात् पृथग्भूतावयवस्य कम्पोपलब्धिर्न स्यात् । न च खण्डितावयवानुप्रविष्टस्यात्मप्रदेशस्य पृथगात्मत्वप्रसङ्गः, तत्रैवानुप्रवेशात् ।....कथं खण्डितावयवयोः संघट्टनं पश्चाद् इति चेत्, एकान्तेन छेदानभ्युपगमात् । पद्मनालतन्तुवत् छेदस्यापि स्वीकारात् ।</span> =<span class="HindiText"> शरीर से सम्बद्ध आत्म-प्रदेशों में कुछ आत्म प्रदेशों के खण्डित शरीर में रहने की अपेक्षा से आत्मा का खण्डन होता है, अन्यथा तलवार आदि से कटे हुए शरीर के पृथग्भूत अवयवों में कम्पन न देखा जाता । खण्डित अवयवों में प्रविष्ट आत्म प्रदेशों में पृथक् आत्मा का प्रसंग भी नहीं आता है, क्योंकि वे फिर से पहले ही शरीर में लौट आते हैं । <strong>प्रश्न–</strong>आत्मा के अवयव खण्डित हो जाने पर पीछे फिर एक कैसे हो जाते हैं? <strong>उत्तर–</strong>हम उनका सर्वथा विभाग नहीं मानते । कमलनाल के तन्तुओं की तरह आत्मा के प्रदेशों का छेद स्वीकार करते हैं । <br /> | ||
</span></li> | </span></li> | ||
</ol> | </ol> | ||
Line 24: | Line 24: | ||
</span> | </span> | ||
<ul> | <ul> | ||
<li><span class="HindiText"> बद्धायुष्क व अबद्धायुष्क सबको होता है | <li><span class="HindiText"> बद्धायुष्क व अबद्धायुष्क सबको होता है ।–देखें [[ मरण#5.7 | मरण - 5.7 ]]। <br /> | ||
</span></li> | </span></li> | ||
<li><span class="HindiText"> वेदना व मारणान्तिक | <li><span class="HindiText"> वेदना व मारणान्तिक समुद्घात में अन्तर । <br /> | ||
</span></li> | </span></li> | ||
<li><span class="HindiText"> वेदना | <li><span class="HindiText"> वेदना समुद्घात का स्वामित्व ।–देखें [[ क्षेत्र#3 | क्षेत्र - 3 ]]। <br /> | ||
</span></li> | </span></li> | ||
<li><span class="HindiText"> वेदना | <li><span class="HindiText"> वेदना समुद्घात की दिशाएँ व काल स्थिति ।–देखें [[ समुद्घात ]]। </span></li> | ||
</ul> | </ul> | ||
</li> | </li> | ||
</ul> | </ul> | ||
<noinclude> | |||
[[ | [[ वेदना | पूर्व पृष्ठ ]] | ||
[[Category:व]] | [[ वेदनाभय | अगला पृष्ठ ]] | ||
</noinclude> | |||
[[Category: व]] |
Revision as of 21:47, 5 July 2020
- वेदना समुद्घात
रा.वा./1/20/12/77/13 वातिकादिरोगविषादिद्रव्यसंबन्धसंतापापादितवेदनाकृतो वेदनासमुद्घातः । = वात पित्तदि विकार जनित रोग या विषपान आदि की तीव्रवेदना से आत्म प्रदेशों का बाहर निकलना वेदना समुद्घात है ।
ध.4/1, 3, 2/26/7 तत्थ वेदणसमुग्घादो णाम अक्खि-सिरोवेदणादीहि जीवाणमुक्कस्सेण सरीरतिगुणविप्फूजणं । = नेत्र वेदना, शिरोवेदना, आदि के द्वारा जीवों के प्रदेशों का उत्कृष्टतः शरीर से तिगुणे प्रमाण विसर्पण का नाम वेदनासमुद्घात है । (ध.7/2, 6, 1/299/8); (ध.11/4, 2, 5, 9/18/7) ।
द्र.सं./टी./10/25/3 तीव्रवेदनानुभवान्मूलशरीरमत्यक्त्वा आत्मप्रदेशानां बहिर्निगमनमिति वेदनासमुद्धातः । = तीव्र पीड़ा के अनुभव से मूल शरीर न छोड़ते हुए जो आत्मा के प्रदेशों का शरीर से बाहर निकलना सो वेदना समुद्घात है ।
- वेदना समुद्घात में प्रदेशों का विस्तार
ध.11/4, 2, 5, 9/18/7 वेयणावसेण जीवपदेसाणं विक्खंभुस्सेहेहि तिगुणविपंजणं वेयणासमुग्घादो णाम । ण च एस णियमो सव्वेसिं जीवपदेसा वेयणाए तिगुणं चेव विपुंजंति त्ति, किंतु सगविक्खंभादो तरतमसरूवेण ट्ठिदवेयणावसेण एगदोपदेसादीहि वि वड्डी होदि । =- वेदना के वश से जीव प्रदेशों के विष्कम्भ और उत्सेध की अपेक्षा तिगुने प्रमाण में फैलने का नाम वेदना समुद्घात है । (ध.7/2, 6, 1/299/8); (ऊपर वाला लक्षण); (गो.जी./जी.प्र./584/ 1025/8) ।
- परन्तु सबके जीव प्रदेश वेदना के वश से तिगुणे ही फैलते हों, ऐसा नियम नहीं है । किन्तु तरतम रूप से स्थित वेदना के वश से अपने विष्कम्भ की अपेक्षा एक दो प्रदेशादिकों से भी वृद्धि होती है ।
- निगोद जीव को यह सम्भव नहीं
ध.11/4, 2, 5, 12/21/2 णिगोदेसुप्पज्जमाणस्स अइतिव्ववेयणाभावेण सरीरतिगुणवेयणसमुग्घादस्स अभावादो । = निगोद जीवों में उत्पन्न होने वाले जीव के अतिशय तीव्र वेदना का अभाव होने से विवक्षित शरीर से तिगुणा वेदना समुद्घात सम्भव नहीं है ।
- जीव प्रदेशों के खण्डित होने की संभावना
स्या.मं./9/102/16 शरीरसंबद्धात्मप्रदेशेभ्यो हि कतिपयात्मप्रदेशानां खण्डितशरीरप्रदेशेऽवस्थानादात्मनः खण्डनम् । तच्चात्र विद्यत एव । अन्यथा शरीरात् पृथग्भूतावयवस्य कम्पोपलब्धिर्न स्यात् । न च खण्डितावयवानुप्रविष्टस्यात्मप्रदेशस्य पृथगात्मत्वप्रसङ्गः, तत्रैवानुप्रवेशात् ।....कथं खण्डितावयवयोः संघट्टनं पश्चाद् इति चेत्, एकान्तेन छेदानभ्युपगमात् । पद्मनालतन्तुवत् छेदस्यापि स्वीकारात् । = शरीर से सम्बद्ध आत्म-प्रदेशों में कुछ आत्म प्रदेशों के खण्डित शरीर में रहने की अपेक्षा से आत्मा का खण्डन होता है, अन्यथा तलवार आदि से कटे हुए शरीर के पृथग्भूत अवयवों में कम्पन न देखा जाता । खण्डित अवयवों में प्रविष्ट आत्म प्रदेशों में पृथक् आत्मा का प्रसंग भी नहीं आता है, क्योंकि वे फिर से पहले ही शरीर में लौट आते हैं । प्रश्न–आत्मा के अवयव खण्डित हो जाने पर पीछे फिर एक कैसे हो जाते हैं? उत्तर–हम उनका सर्वथा विभाग नहीं मानते । कमलनाल के तन्तुओं की तरह आत्मा के प्रदेशों का छेद स्वीकार करते हैं ।
- अन्य सम्बन्धित विषय
- बद्धायुष्क व अबद्धायुष्क सबको होता है ।–देखें मरण - 5.7 ।
- वेदना व मारणान्तिक समुद्घात में अन्तर ।
- वेदना समुद्घात का स्वामित्व ।–देखें क्षेत्र - 3 ।
- वेदना समुद्घात की दिशाएँ व काल स्थिति ।–देखें समुद्घात ।
- बद्धायुष्क व अबद्धायुष्क सबको होता है ।–देखें मरण - 5.7 ।