समुद्रदत्त: Difference between revisions
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<p id="1"> (1) अयोध्या का एक सेठ । यह पूर्णभद्र और मणिभद्र का पिता था । हरिवंशपुराण 43.148-149 देखें [[ समुद्र#3 | समुद्र - 3]]</p> | <p id="1"> (1) अयोध्या का एक सेठ । यह पूर्णभद्र और मणिभद्र का पिता था । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 43.148-149 </span>देखें [[ समुद्र#3 | समुद्र - 3]]</p> | ||
<p id="2">(2) एक मुनि । ये आराधनाओं की आराधना कर छठे ग्रैवेयक के सुविशाल नामक विमान में अहमिन्द्र हुए थे । हरिवंशपुराण 18.105, 108</p> | <p id="2">(2) एक मुनि । ये आराधनाओं की आराधना कर छठे ग्रैवेयक के सुविशाल नामक विमान में अहमिन्द्र हुए थे । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 18.105, 108 </span></p> | ||
<p id="2">(2) | <p id="2">(2) जम्बूद्वीप के पूर्वविदेहक्षेत्र में पुष्कलावती देश की पुण्डरीकिणी नगरी का एक सेठ । यह इस नगर के राज सेठ कुबेरमित्र की स्त्री धनवती का भाई था । कुबेरमित्र ने एक बहिन कुबेरमित्रा इसे विवाही थी । इसके प्रियदत्ता आदि बत्तीस कन्याएं थीं । <span class="GRef"> महापुराण 46.19-20, 41-42 </span></p> | ||
<p id="4">(4) पुण्डरीकिणी नगरी के सेठ सागरसेन का दूसरा पुत्र । यह सागरदत्त का छोटा भाई था । इसकी बहिन सागरदत्ता थी जो सेठ वैश्रयणदत्त को विवाही गयी थी और इसका विवाह सर्वदयिता के साथ हुआ था । महापुराण 47.195-198</p> | <p id="4">(4) पुण्डरीकिणी नगरी के सेठ सागरसेन का दूसरा पुत्र । यह सागरदत्त का छोटा भाई था । इसकी बहिन सागरदत्ता थी जो सेठ वैश्रयणदत्त को विवाही गयी थी और इसका विवाह सर्वदयिता के साथ हुआ था । <span class="GRef"> महापुराण 47.195-198 </span></p> | ||
Revision as of 21:48, 5 July 2020
(1) अयोध्या का एक सेठ । यह पूर्णभद्र और मणिभद्र का पिता था । हरिवंशपुराण 43.148-149 देखें समुद्र - 3
(2) एक मुनि । ये आराधनाओं की आराधना कर छठे ग्रैवेयक के सुविशाल नामक विमान में अहमिन्द्र हुए थे । हरिवंशपुराण 18.105, 108
(2) जम्बूद्वीप के पूर्वविदेहक्षेत्र में पुष्कलावती देश की पुण्डरीकिणी नगरी का एक सेठ । यह इस नगर के राज सेठ कुबेरमित्र की स्त्री धनवती का भाई था । कुबेरमित्र ने एक बहिन कुबेरमित्रा इसे विवाही थी । इसके प्रियदत्ता आदि बत्तीस कन्याएं थीं । महापुराण 46.19-20, 41-42
(4) पुण्डरीकिणी नगरी के सेठ सागरसेन का दूसरा पुत्र । यह सागरदत्त का छोटा भाई था । इसकी बहिन सागरदत्ता थी जो सेठ वैश्रयणदत्त को विवाही गयी थी और इसका विवाह सर्वदयिता के साथ हुआ था । महापुराण 47.195-198