सर्वरत्न: Difference between revisions
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<p id="1"> (1) चक्रवर्ती के जीवन काल पर्यन्त रहने वाली काल, महाकाल आदि नौ निधियों में एक निधि । निधिपाल देव इसकी रक्षा करता है । इस निधि से महानील, नील तथा पद्मराग आदि अनेक तरह के रत्न प्रकट होते थे । <span class="GRef"> महापुराण 37.82, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 11. 110-111 </span></p> | |||
<p id="2">(2) रुचकगिरि की नैऋत्य दिशा में स्थित एक कूट । यहाँ जयन्ती देवी रहती है । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.726 </span></p> | |||
<p id="3">(3) मानुषोत्तर पर्वत के पूर्वोत्तर कोण में विद्यमान एक कूट । गरुडकुमारों का स्वामी यहाँ रहता है । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 5.608 </span></p> | |||
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Revision as of 21:48, 5 July 2020
== सिद्धांतकोष से == मानुषोत्तर व रुचक पर्वत पर स्थित एक-एक कूट -देखें लोक - 5.10।
पुराणकोष से
(1) चक्रवर्ती के जीवन काल पर्यन्त रहने वाली काल, महाकाल आदि नौ निधियों में एक निधि । निधिपाल देव इसकी रक्षा करता है । इस निधि से महानील, नील तथा पद्मराग आदि अनेक तरह के रत्न प्रकट होते थे । महापुराण 37.82, हरिवंशपुराण 11. 110-111
(2) रुचकगिरि की नैऋत्य दिशा में स्थित एक कूट । यहाँ जयन्ती देवी रहती है । हरिवंशपुराण 5.726
(3) मानुषोत्तर पर्वत के पूर्वोत्तर कोण में विद्यमान एक कूट । गरुडकुमारों का स्वामी यहाँ रहता है । हरिवंशपुराण 5.608