सर्वरत्नमय
From जैनकोष
मेरु की चूलिका से लेकर नीचे तक की छ: पृथिवीकाय रूप परिधियों में चौथी परिधि । इसका विस्तार सोलह हजार पांच सो योजन है । हरिवंशपुराण - 5.304-305
मेरु की चूलिका से लेकर नीचे तक की छ: पृथिवीकाय रूप परिधियों में चौथी परिधि । इसका विस्तार सोलह हजार पांच सो योजन है । हरिवंशपुराण - 5.304-305