हरिषेण: Difference between revisions
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<li><span class="HindiText">पूर्वभव सं. | <li><span class="HindiText">साकेत नगरी के स्वामी वज्रसेन का पुत्र था। दीक्षा धारणकर आयु के अन्त में महाशुक्र स्वर्ग में देव हुआ। (म.पु./74/232-234) यह वर्धमान भगवान् का पूर्व का सातवाँ भव है।-देखें [[ वर्धमान ]]।</span></li> | ||
<li><span class="HindiText">काठियावाड़ के वर्धमानपुर नगरवासी पुन्नाटसंघी आचार्य। कृति वृहत्कथा कोष। समय-ग्रन्थ रचनाकाल शक | <li><span class="HindiText">पूर्वभव सं.2 में अनन्तनाथ भगवान् के तीर्थ में एक बड़ा राजा था। पूर्व भव में स्वर्ग में देव था। (म.पु./67/61) वर्तमान भव में दसवाँ चक्रवर्ती था। विशेष-देखें [[ शलाकापुरुष#2 | शलाकापुरुष - 2]];</span></li> | ||
<li><span class="HindiText">चित्तौड़ वासी अपभ्रंश कवि। कृति-धम्मपरिक्खा। समय-ग्रन्थ रचनाकाल वि. | <li><span class="HindiText">काठियावाड़ के वर्धमानपुर नगरवासी पुन्नाटसंघी आचार्य। कृति वृहत्कथा कोष। समय-ग्रन्थ रचनाकाल शक 853 (ई.931)। (ती./3/65)।</span></li> | ||
<li><span class="HindiText">चित्तौड़ वासी अपभ्रंश कवि। कृति-धम्मपरिक्खा। समय-ग्रन्थ रचनाकाल वि.1044। (ती./4/120)।</span></li> | |||
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<p id="1"> (1) असुरकुमार आदि भवनवासी देवों का ग्यारहवाँ इन्द्र । <span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 14.55 </span></p> | |||
<p id="2">(2) मिथिला नगरी के राजा देवदत्त का पुत्र । नभसेन का यह पिता था । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 17.34 </span></p> | |||
<p id="3">(3) हस्तशीर्षपूर नगर का राजा । इसने भरत-क्षेत्र में उज्जयिनी नगरी के राजा विजय की पुत्री विनयश्री को विवाहा था । <span class="GRef"> महापुराण 71. 442-444, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 60.105-106 </span></p> | |||
<p id="4">(4) धातकीखण्ड द्वीप के विजयार्ध पर्वत की दक्षिणश्रेणी के नन्दपुर नगर का राजा । इसकी रानी श्रीकान्ता तथा पुत्र हरिवाहन था । <span class="GRef"> महापुराण 71.252, 254 </span></p> | |||
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<p id="6">(6) जम्बूद्वीप मैं कोशल देश के साकेत नगर के राजा वज्रसेन और रानी शीलवती का पुत्र । इसने श्रुतसागर मुनि से दीक्षा ले ली थी । आयु के अन्त में मर कर यह महाशुक्र स्वर्ग में देव हुआ । <span class="GRef"> महापुराण 74.230-234 </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 4.121-140, 5.2-24 </span></p> | |||
<p id="7">(7) अवसर्पिणी काल के दुःषमा-सुषमा नामक चौथे काल में उत्पन्न शलाकापुरुष एवं दसवां चक्रवर्ती । यह तीर्थंकर मुनिसुव्रतनाथ के तीर्थ में हुआ था । भीमपुर नगर का राजा पद्नाभ और रानी ऐरा इसके माता-पिता थे । इसकी आयु दस हजार वर्ष तथा शरीर चौबीस धनुष ऊँचा था । इसके पिता को केवलज्ञान और आयुधशाला में चक्र, छत्र, खड्ग एव दण्ड ये चार रत्न तथा श्रीगृह में काकिणी, चर्म और मणि ये तीन रत्न एक साथ प्रकट हुए थे । चक्ररत्न की पूजा करके यह दिग्विजय के लिए उद्यत हुआ ही था कि उसी समय नगर में पुरोहित, गृहपति, स्थपति और सेनापति ये चार रत्न प्रकट हुए तथा विद्याधर इसे विजयार्ध से हाथी, घोड़ा और कन्या-रत्न ले आये थे । इसने सिन्धुनद नगर में हाथी को वश में करके स्त्रियों को भयमुक्त किया था । इस उपलक्ष्य में राजा ने इसे अपनी सौ कन्याएं दी थी । सूर्योदयपुर के राजा शक्रधनु की कन्या जयचन्द्रा को इसने विवाहा था । शतमन्यु के आश्रम में पहुँचकर इसने नागमती की पुत्री को विवाहा था । विजय के पश्चात् अपने गृह नगर लौटकर इसने चिरकाल तक राज्य किया । पश्चात् चन्द्र द्वारा ग्रसित राहु को देखकर इसे वैराग्य उत्पन्न हुआ और यह पुत्र महासेन को राज्य देकर संयमी हो गया । आयु के अन्त में देह त्याग कर यह सर्वार्थसिद्धि में देव हुआ । <span class="GRef"> महापुराण 67. 61-87, </span><span class="GRef"> पद्मपुराण 8.343-347, 370-371, 392-400 </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 60.512, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 18. 101-102, 110 </span></p> | |||
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Revision as of 21:49, 5 July 2020
== सिद्धांतकोष से ==
- साकेत नगरी के स्वामी वज्रसेन का पुत्र था। दीक्षा धारणकर आयु के अन्त में महाशुक्र स्वर्ग में देव हुआ। (म.पु./74/232-234) यह वर्धमान भगवान् का पूर्व का सातवाँ भव है।-देखें वर्धमान ।
- पूर्वभव सं.2 में अनन्तनाथ भगवान् के तीर्थ में एक बड़ा राजा था। पूर्व भव में स्वर्ग में देव था। (म.पु./67/61) वर्तमान भव में दसवाँ चक्रवर्ती था। विशेष-देखें शलाकापुरुष - 2;
- काठियावाड़ के वर्धमानपुर नगरवासी पुन्नाटसंघी आचार्य। कृति वृहत्कथा कोष। समय-ग्रन्थ रचनाकाल शक 853 (ई.931)। (ती./3/65)।
- चित्तौड़ वासी अपभ्रंश कवि। कृति-धम्मपरिक्खा। समय-ग्रन्थ रचनाकाल वि.1044। (ती./4/120)।
पुराणकोष से
(1) असुरकुमार आदि भवनवासी देवों का ग्यारहवाँ इन्द्र । वीरवर्द्धमान चरित्र 14.55
(2) मिथिला नगरी के राजा देवदत्त का पुत्र । नभसेन का यह पिता था । हरिवंशपुराण 17.34
(3) हस्तशीर्षपूर नगर का राजा । इसने भरत-क्षेत्र में उज्जयिनी नगरी के राजा विजय की पुत्री विनयश्री को विवाहा था । महापुराण 71. 442-444, हरिवंशपुराण 60.105-106
(4) धातकीखण्ड द्वीप के विजयार्ध पर्वत की दक्षिणश्रेणी के नन्दपुर नगर का राजा । इसकी रानी श्रीकान्ता तथा पुत्र हरिवाहन था । महापुराण 71.252, 254
(5) तीर्थंकर महावीर के पूर्वभव का जीव । महापुराण 76. 541 देखें महावीर
(6) जम्बूद्वीप मैं कोशल देश के साकेत नगर के राजा वज्रसेन और रानी शीलवती का पुत्र । इसने श्रुतसागर मुनि से दीक्षा ले ली थी । आयु के अन्त में मर कर यह महाशुक्र स्वर्ग में देव हुआ । महापुराण 74.230-234 वीरवर्द्धमान चरित्र 4.121-140, 5.2-24
(7) अवसर्पिणी काल के दुःषमा-सुषमा नामक चौथे काल में उत्पन्न शलाकापुरुष एवं दसवां चक्रवर्ती । यह तीर्थंकर मुनिसुव्रतनाथ के तीर्थ में हुआ था । भीमपुर नगर का राजा पद्नाभ और रानी ऐरा इसके माता-पिता थे । इसकी आयु दस हजार वर्ष तथा शरीर चौबीस धनुष ऊँचा था । इसके पिता को केवलज्ञान और आयुधशाला में चक्र, छत्र, खड्ग एव दण्ड ये चार रत्न तथा श्रीगृह में काकिणी, चर्म और मणि ये तीन रत्न एक साथ प्रकट हुए थे । चक्ररत्न की पूजा करके यह दिग्विजय के लिए उद्यत हुआ ही था कि उसी समय नगर में पुरोहित, गृहपति, स्थपति और सेनापति ये चार रत्न प्रकट हुए तथा विद्याधर इसे विजयार्ध से हाथी, घोड़ा और कन्या-रत्न ले आये थे । इसने सिन्धुनद नगर में हाथी को वश में करके स्त्रियों को भयमुक्त किया था । इस उपलक्ष्य में राजा ने इसे अपनी सौ कन्याएं दी थी । सूर्योदयपुर के राजा शक्रधनु की कन्या जयचन्द्रा को इसने विवाहा था । शतमन्यु के आश्रम में पहुँचकर इसने नागमती की पुत्री को विवाहा था । विजय के पश्चात् अपने गृह नगर लौटकर इसने चिरकाल तक राज्य किया । पश्चात् चन्द्र द्वारा ग्रसित राहु को देखकर इसे वैराग्य उत्पन्न हुआ और यह पुत्र महासेन को राज्य देकर संयमी हो गया । आयु के अन्त में देह त्याग कर यह सर्वार्थसिद्धि में देव हुआ । महापुराण 67. 61-87, पद्मपुराण 8.343-347, 370-371, 392-400 हरिवंशपुराण 60.512, वीरवर्द्धमान चरित्र 18. 101-102, 110