छेदना: Difference between revisions
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<li><span class="HindiText"><strong name="1" id="1"> छेदना सामान्य का लक्षण</strong></span> <br> | <li><span class="HindiText"><strong name="1" id="1"> छेदना सामान्य का लक्षण</strong></span> <br> धवला 14/5,6,513/435/7 <span class="SanskritText">छिद्यते पृथक्क्रियतेऽनेनेति छेदना। </span>=<span class="HindiText">जिसके द्वारा पृथक् किया जाता है उसकी छेदना संज्ञा है। </span></li> | ||
<li><span class="HindiText"><strong name="2" id="2"> छेदना के भेद</strong></span><br> | <li><span class="HindiText"><strong name="2" id="2"> छेदना के भेद</strong></span><br> षट्खण्डागम 14/5,6/ सू.513-514/435<span class="PrakritText"> छेदणा पुण दसविहा।513। णाम ट्ठवणा दवियं सरीरबंधणगुणप्पदेसाय। वल्लरि अणुत्तडेसु य उप्प्इया पण्णभावे य।514।</span>=<span class="HindiText">छेदना दस प्रकार की है।513।–नामछेदना, स्थापनाछेदना, द्रव्यछेदना, शरीरबन्धनगुणछेदना, प्रदेशछेदना, वल्लरिछेदना, अणुछेदना, तटछेदना, उत्पातछेदना, और प्रज्ञाभावछेदना।514।</span></li> | ||
<li><span class="HindiText"><strong name="3" id="3"> छेदना के भेदों के लक्षण</strong> </span><br> | <li><span class="HindiText"><strong name="3" id="3"> छेदना के भेदों के लक्षण</strong> </span><br> धवला 14/5,6,514/435/11 <span class="PrakritText">तत्थ सचित्त-अचित्तदव्वाणि अण्णेहिंतो पुध काऊण सण्णा जाणावेदि त्ति णामच्छेदणा। ट्ठवणा दुविहा सब्भावासब्भावट्ठवणभेदेण। सा वि छेदणा होदि, ताए अण्णेसिं दव्वाणं सरूवावगमादो। दवियं णाम उप्पादट्ठिदिभंगलक्खणं। तं पि छेदणा होदि, दव्वादो दव्वंतरस्स परिच्छेददंसणादो। ण च एसो असिद्धो...दंडादो जायणादीणं परिच्छेदुवलंभादो। पंचण्णं सरीराणं बंधणगुणो वि छेदणा णाम, पण्णाए छिज्जमाणत्तादो, अविभागपडिच्छेदपमाणेण छिज्जमाणत्तादो वा। पदेसो वा छेदणा होदि, उड्ढाहोमज्झादिपदेसेहि सव्वदव्वाणं छेददंसणादो। कुडारादीहि अडइरुक्खादिखंडणं वल्लरिच्छेदो णाम। परमाणुगदएगादिदव्वसंखाए अण्णेसिं दव्वाणं संखावगमो अणुच्छेदो णाम। अथवा पोग्गलागासादीणं णिव्विभागच्छेदो अणुच्छेदो णाम। दो हि वि तडेहि णदीपमाणपरिच्छेदो अथवादव्वाणं सममेव छेदो तडच्छेदो णाम। रत्तीए इंदाउहधूमकेउआदीणमुप्पत्ती पडिमारोहो भूमिकंप-रुहिरवरिसादओ च उप्पाइया छेदणा णाम, एतैरुत्पातै: राष्ट्रभङ्ग नृपपातादितर्कणात् । मदिसुदओहिमणपज्जवकेवलणाणेहि छद्दव्वावगमो पण्णभावच्छेदणा णाम।</span> = | ||
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<li class="HindiText"> सचित्त और अचित्त द्रव्यों को अन्य द्रव्यों से पृथक् करके जो संज्ञा का ज्ञान कराती है वह नाम छेदना है। </li> | <li class="HindiText"> सचित्त और अचित्त द्रव्यों को अन्य द्रव्यों से पृथक् करके जो संज्ञा का ज्ञान कराती है वह नाम छेदना है। </li> | ||
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<li><span class="HindiText"><strong name="4" id="4"> तट वल्लरि व अणुच्छेदना में अन्तर</strong> </span><br> | <li><span class="HindiText"><strong name="4" id="4"> तट वल्लरि व अणुच्छेदना में अन्तर</strong> </span><br> धवला 14/5,6,514/436/7 <span class="PrakritText">ण च पदेसच्छेदे एसो पददि, तस्स बुद्धिकज्जत्तादो। ण वल्लरिच्छेदे पददि, तस्स पउरुसेयत्तादो। णाणुच्छेदे पददि, परमाणुपज्जंतच्छेदाभावादो।</span> =<span class="HindiText">इस (तटच्छेदना) का प्रदेशछेद में अन्तर्भाव नहीं होता, क्योंकि वह बुद्धि का कार्य है। वल्लरिछेदना में भी अन्तर्भाव नहीं होता, क्योंकि वह पौरुषेय होता है। अणुच्छेद में भी अन्तर्भाव नहीं होता, क्योंकि इसका परमाणु पर्यंत छेद नहीं होता।</span></li> | ||
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Revision as of 19:11, 17 July 2020
- छेदना सामान्य का लक्षण
धवला 14/5,6,513/435/7 छिद्यते पृथक्क्रियतेऽनेनेति छेदना। =जिसके द्वारा पृथक् किया जाता है उसकी छेदना संज्ञा है। - छेदना के भेद
षट्खण्डागम 14/5,6/ सू.513-514/435 छेदणा पुण दसविहा।513। णाम ट्ठवणा दवियं सरीरबंधणगुणप्पदेसाय। वल्लरि अणुत्तडेसु य उप्प्इया पण्णभावे य।514।=छेदना दस प्रकार की है।513।–नामछेदना, स्थापनाछेदना, द्रव्यछेदना, शरीरबन्धनगुणछेदना, प्रदेशछेदना, वल्लरिछेदना, अणुछेदना, तटछेदना, उत्पातछेदना, और प्रज्ञाभावछेदना।514। - छेदना के भेदों के लक्षण
धवला 14/5,6,514/435/11 तत्थ सचित्त-अचित्तदव्वाणि अण्णेहिंतो पुध काऊण सण्णा जाणावेदि त्ति णामच्छेदणा। ट्ठवणा दुविहा सब्भावासब्भावट्ठवणभेदेण। सा वि छेदणा होदि, ताए अण्णेसिं दव्वाणं सरूवावगमादो। दवियं णाम उप्पादट्ठिदिभंगलक्खणं। तं पि छेदणा होदि, दव्वादो दव्वंतरस्स परिच्छेददंसणादो। ण च एसो असिद्धो...दंडादो जायणादीणं परिच्छेदुवलंभादो। पंचण्णं सरीराणं बंधणगुणो वि छेदणा णाम, पण्णाए छिज्जमाणत्तादो, अविभागपडिच्छेदपमाणेण छिज्जमाणत्तादो वा। पदेसो वा छेदणा होदि, उड्ढाहोमज्झादिपदेसेहि सव्वदव्वाणं छेददंसणादो। कुडारादीहि अडइरुक्खादिखंडणं वल्लरिच्छेदो णाम। परमाणुगदएगादिदव्वसंखाए अण्णेसिं दव्वाणं संखावगमो अणुच्छेदो णाम। अथवा पोग्गलागासादीणं णिव्विभागच्छेदो अणुच्छेदो णाम। दो हि वि तडेहि णदीपमाणपरिच्छेदो अथवादव्वाणं सममेव छेदो तडच्छेदो णाम। रत्तीए इंदाउहधूमकेउआदीणमुप्पत्ती पडिमारोहो भूमिकंप-रुहिरवरिसादओ च उप्पाइया छेदणा णाम, एतैरुत्पातै: राष्ट्रभङ्ग नृपपातादितर्कणात् । मदिसुदओहिमणपज्जवकेवलणाणेहि छद्दव्वावगमो पण्णभावच्छेदणा णाम। =- सचित्त और अचित्त द्रव्यों को अन्य द्रव्यों से पृथक् करके जो संज्ञा का ज्ञान कराती है वह नाम छेदना है।
- स्थापना दो प्रकार की है–सद्भाव स्थापना और असद्भाव स्थापना। वह भी छेदना है, क्योंकि, उस द्वारा अन्य द्रव्यों के स्वरूप का ज्ञान होता है।
- जो उत्पाद स्थिति और व्यय लक्षणवाला है वह द्रव्य कहलाता है। वह भी छेदना है, क्योंकि एक द्रव्य से दूसरे द्रव्य का ज्ञान होता हुआ देखा जाता है। यह असिद्ध भी नहीं है, क्योंकि, दण्ड से योजनादि का परिज्ञान होता हुआ उपलब्ध होता है।
- पांच शरीरों का बन्धनगुण भी छेदना है, क्योंकि, उसका प्रज्ञा द्वारा छेद किया जाता है। या अविभागप्रतिच्छेद के प्रमाण से उसका छेद किया जाता है।
- प्रदेश भी छेदना होती है, क्योंकि, ऊर्ध्व प्रदेश, अध: प्रदेश और मध्य प्रदेश आदि प्रदेशों के द्वारा सब द्रव्यों का छेद देखा जाता है।
- कुठार आदि द्वारा जंगल के वृक्ष आदि का खण्ड करना वल्लरिछेदना कहलाती है।
- परमाणुगत एक आदि द्रव्यों की संख्या द्वारा अन्य द्रव्यों की संख्या का ज्ञान होना अणुच्छेदना कहलाती है। अथवा पुद्गल और आकाश आदि के निर्विभाग छेद का नाम अणुच्छेदना है।
- दोनों ही तटों के द्वारा नदी के परिणाम का परिच्छेद करना अथवा द्रव्यों का स्वयं ही छेद होना तटच्छेदना है।
- रात्रि में इन्द्रधनुष और धूमकेतु आदि की उत्पत्ति तथा प्रतिमारोध, भूमिकम्प और रुधिर की वर्षा आदि उत्पादछेदना है, क्योंकि इन उत्पादों के द्वारा राष्ट्रभंग और राजा का पतन आदि का अनुमान किया जाता है।
- मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मन:पर्ययज्ञान और केवलज्ञान के द्वारा छह द्रव्यों का ज्ञान होना प्रज्ञाभावछेदना है।
- तट वल्लरि व अणुच्छेदना में अन्तर
धवला 14/5,6,514/436/7 ण च पदेसच्छेदे एसो पददि, तस्स बुद्धिकज्जत्तादो। ण वल्लरिच्छेदे पददि, तस्स पउरुसेयत्तादो। णाणुच्छेदे पददि, परमाणुपज्जंतच्छेदाभावादो। =इस (तटच्छेदना) का प्रदेशछेद में अन्तर्भाव नहीं होता, क्योंकि वह बुद्धि का कार्य है। वल्लरिछेदना में भी अन्तर्भाव नहीं होता, क्योंकि वह पौरुषेय होता है। अणुच्छेद में भी अन्तर्भाव नहीं होता, क्योंकि इसका परमाणु पर्यंत छेद नहीं होता।