अनुत्तर: Difference between revisions
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<p class="SanskritText">धवला पुस्तक 13/5,5,50/283/3 उत्तर प्रतिवचनम्, न विद्यते उत्तरं यस्य श्रुतस्य तदनुत्तरं श्रुतम्। अथवा अधिकमुत्तरम्, न विद्यते | <p class="SanskritText">धवला पुस्तक 13/5,5,50/283/3 उत्तर प्रतिवचनम्, न विद्यते उत्तरं यस्य श्रुतस्य तदनुत्तरं श्रुतम्। अथवा अधिकमुत्तरम्, न विद्यते उत्तरोऽंयसिद्धांतः अस्मादित्यनुत्तर श्रुतम्। </p> | ||
<p class="HindiText">= 1. उत्तर प्रतिवचन का दूसरा नाम है, जिस श्रुत का उत्तर नहीं है वह श्रुत अनुत्तर कहलाता है। अथवा उत्तर शब्द का अर्थ अधिक है, इससे अधिक चूँकि अन्य कोई भी | <p class="HindiText">= 1. उत्तर प्रतिवचन का दूसरा नाम है, जिस श्रुत का उत्तर नहीं है वह श्रुत अनुत्तर कहलाता है। अथवा उत्तर शब्द का अर्थ अधिक है, इससे अधिक चूँकि अन्य कोई भी सिद्धांत नहीं पाया जाता, इसलिए इस श्रुत का नाम अनुत्तर है। 2. कल्पातीत स्वर्गों का एक भेद - देखें [[ स्वर्ग#5.2 | स्वर्ग - 5.2]]।</p> | ||
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<p id="2">(2) यह स्वर्ग से च्युत होकर लंका में राक्षसवंश मे उत्पन्न हुआ । यह माया और पराक्रम से सहित, विद्याबल और | <p id="2">(2) यह स्वर्ग से च्युत होकर लंका में राक्षसवंश मे उत्पन्न हुआ । यह माया और पराक्रम से सहित, विद्याबल और महाकांति का बारी तथा विद्यानुयोग में कुशल था । अर्हद् भक्ति के पश्चात् यही लंका का स्वामी हुआ । <span class="GRef"> पद्मपुराण 5.396-400 </span></p> | ||
<p id="3">(3) शतार स्वर्ग में उत्पन्न भावन वणिक् का पुत्र हरिदास का जीव । <span class="GRef"> महापुराण 5.96-110 </span></p> | <p id="3">(3) शतार स्वर्ग में उत्पन्न भावन वणिक् का पुत्र हरिदास का जीव । <span class="GRef"> महापुराण 5.96-110 </span></p> | ||
<p id="4">(4) नव ग्रैवेयकों के आगे स्थित नौ अनुदिशों के ऊपर अवस्थित पांच विमान । इनके नाम विजय, | <p id="4">(4) नव ग्रैवेयकों के आगे स्थित नौ अनुदिशों के ऊपर अवस्थित पांच विमान । इनके नाम विजय, वैजयंत, जयंत, अपराजित और सर्वार्थसिद्धि है । इनके निवासी देव कल्पातीत कहे जाते हैं । <span class="GRef"> पद्मपुराण 105.170-171, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 3.150, 6.40 </span></p> | ||
<p id="5">(5) | <p id="5">(5) सौधर्मेंद्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । <span class="GRef"> महापुराण 25.133 </span></p> | ||
<p id="6">(6) भरतेश के सिंहासन का नाम । <span class="GRef"> महापुराण 37.154 </span></p> | <p id="6">(6) भरतेश के सिंहासन का नाम । <span class="GRef"> महापुराण 37.154 </span></p> | ||
Revision as of 16:16, 19 August 2020
== सिद्धांतकोष से ==
धवला पुस्तक 13/5,5,50/283/3 उत्तर प्रतिवचनम्, न विद्यते उत्तरं यस्य श्रुतस्य तदनुत्तरं श्रुतम्। अथवा अधिकमुत्तरम्, न विद्यते उत्तरोऽंयसिद्धांतः अस्मादित्यनुत्तर श्रुतम्।
= 1. उत्तर प्रतिवचन का दूसरा नाम है, जिस श्रुत का उत्तर नहीं है वह श्रुत अनुत्तर कहलाता है। अथवा उत्तर शब्द का अर्थ अधिक है, इससे अधिक चूँकि अन्य कोई भी सिद्धांत नहीं पाया जाता, इसलिए इस श्रुत का नाम अनुत्तर है। 2. कल्पातीत स्वर्गों का एक भेद - देखें स्वर्ग - 5.2।
पुराणकोष से
(1) भरतेश द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । महापुराण 24.43
(2) यह स्वर्ग से च्युत होकर लंका में राक्षसवंश मे उत्पन्न हुआ । यह माया और पराक्रम से सहित, विद्याबल और महाकांति का बारी तथा विद्यानुयोग में कुशल था । अर्हद् भक्ति के पश्चात् यही लंका का स्वामी हुआ । पद्मपुराण 5.396-400
(3) शतार स्वर्ग में उत्पन्न भावन वणिक् का पुत्र हरिदास का जीव । महापुराण 5.96-110
(4) नव ग्रैवेयकों के आगे स्थित नौ अनुदिशों के ऊपर अवस्थित पांच विमान । इनके नाम विजय, वैजयंत, जयंत, अपराजित और सर्वार्थसिद्धि है । इनके निवासी देव कल्पातीत कहे जाते हैं । पद्मपुराण 105.170-171, हरिवंशपुराण 3.150, 6.40
(5) सौधर्मेंद्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । महापुराण 25.133
(6) भरतेश के सिंहासन का नाम । महापुराण 37.154