अप्रत्याख्यान: Difference between revisions
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<p class="SanskritText">धवला पुस्तक 13/5,5,95/360/10 ईषत्प्रत्याख्यानमप्रत्याख्यामिति व्युत्पत्तेः अणुव्रतानामप्रत्याख्यानसंज्ञा।</p> | <p class="SanskritText">धवला पुस्तक 13/5,5,95/360/10 ईषत्प्रत्याख्यानमप्रत्याख्यामिति व्युत्पत्तेः अणुव्रतानामप्रत्याख्यानसंज्ञा।</p> | ||
<p class="HindiText">= `ईषत् प्रत्याख्यान अप्रत्याख्यान है' इस व्युत्पत्तिके अनुसार अणुव्रतोंकी अप्रत्याख्यान संज्ञा है।</p> | <p class="HindiText">= `ईषत् प्रत्याख्यान अप्रत्याख्यान है' इस व्युत्पत्तिके अनुसार अणुव्रतोंकी अप्रत्याख्यान संज्ञा है।</p> | ||
<p>( गोम्मट्टसार | <p>( गोम्मट्टसार जीवकांड / गोम्मट्टसार जीवकांड जीव तत्त्व प्रदीपिका| जीव तत्त्व प्रदीपिका टीका गाथा 283/608/14)</p> | ||
<p>2. विषयाकांक्षाके अर्थमें</p> | <p>2. विषयाकांक्षाके अर्थमें</p> | ||
<p class="SanskritText">समयसार / तात्पर्यवृत्ति गाथा 283 रागादि | <p class="SanskritText">समयसार / तात्पर्यवृत्ति गाथा 283 रागादि विषयाकांक्षारूपमप्रत्याख्यानमपि तथैव द्विविधं विज्ञेयं......द्रव्यभावरूपेण।</p> | ||
<p class="HindiText">= रागादि विषयोंकी आकांक्षारूप अप्रत्याख्यान भी दो प्रकारका जानना चाहिए-द्रव्य अप्रत्याख्यान व भाव अप्रत्याख्यान।</p> | <p class="HindiText">= रागादि विषयोंकी आकांक्षारूप अप्रत्याख्यान भी दो प्रकारका जानना चाहिए-द्रव्य अप्रत्याख्यान व भाव अप्रत्याख्यान।</p> | ||
Revision as of 16:17, 19 August 2020
1. संयमासंयमके अर्थमें-
धवला पुस्तक 6/1,9-1,23/43/3 प्रत्याख्यानं संयमः, न प्रत्याख्यानमप्रत्याख्यानमिति देशसंयमः
= प्रत्याख्यान संयमको कहते हैं। जो प्रत्याख्यान रूप नहीं है वह अप्रत्याख्यान है। इस प्रकार `अप्रत्याख्यान' यह शब्द देशसंयमका वाचक है।
( धवला पुस्तक 6/1,9-23/44/3)
धवला पुस्तक 13/5,5,95/360/10 ईषत्प्रत्याख्यानमप्रत्याख्यामिति व्युत्पत्तेः अणुव्रतानामप्रत्याख्यानसंज्ञा।
= `ईषत् प्रत्याख्यान अप्रत्याख्यान है' इस व्युत्पत्तिके अनुसार अणुव्रतोंकी अप्रत्याख्यान संज्ञा है।
( गोम्मट्टसार जीवकांड / गोम्मट्टसार जीवकांड जीव तत्त्व प्रदीपिका| जीव तत्त्व प्रदीपिका टीका गाथा 283/608/14)
2. विषयाकांक्षाके अर्थमें
समयसार / तात्पर्यवृत्ति गाथा 283 रागादि विषयाकांक्षारूपमप्रत्याख्यानमपि तथैव द्विविधं विज्ञेयं......द्रव्यभावरूपेण।
= रागादि विषयोंकी आकांक्षारूप अप्रत्याख्यान भी दो प्रकारका जानना चाहिए-द्रव्य अप्रत्याख्यान व भाव अप्रत्याख्यान।