किंपुरुष: Difference between revisions
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<li><span class="HindiText"><strong> किंपुरूष | <li><span class="HindiText"><strong> किंपुरूष व्यंतरदेव के भेद</strong> </span><br /> | ||
तिलोयपण्णत्ति/6/36 <span class="PrakritGatha"> पुरुसा पुरुसुत्तमसप्पुरुसमहापुरुसपभणामा। अतिपुरुसा तह मरुओ मरुदेवमरुप्पहा जसोवंता।36।</span> =<span class="HindiText">पुरुष, पुरुषोत्तम, सत्पुरुष, महापुरुष, पुरुषप्रभ, अतिपुरुष, पुरु, पुरुदेव, मरुप्रभज्ञ और यशस्वान्, इस प्रकार ये किंपुरुष जाति के देवों के दश भेद हैं। ( त्रिलोकसार/25 )<br /> | तिलोयपण्णत्ति/6/36 <span class="PrakritGatha"> पुरुसा पुरुसुत्तमसप्पुरुसमहापुरुसपभणामा। अतिपुरुसा तह मरुओ मरुदेवमरुप्पहा जसोवंता।36।</span> =<span class="HindiText">पुरुष, पुरुषोत्तम, सत्पुरुष, महापुरुष, पुरुषप्रभ, अतिपुरुष, पुरु, पुरुदेव, मरुप्रभज्ञ और यशस्वान्, इस प्रकार ये किंपुरुष जाति के देवों के दश भेद हैं। ( त्रिलोकसार/25 )<br /> | ||
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<li><span class="HindiText"><strong>* किंपुरुष देव का वर्ण परिवार व अवस्थानादि–देखें [[ व्यंतर#2.1 | व्यंतर - 2.1]]।</strong></span></li> | <li><span class="HindiText"><strong>* किंपुरुष देव का वर्ण परिवार व अवस्थानादि–देखें [[ व्यंतर#2.1 | व्यंतर - 2.1]]।</strong></span></li> | ||
<li><span class="HindiText"><strong>* किंपुरुष व्यपदेश | <li><span class="HindiText"><strong>* किंपुरुष व्यपदेश संबंधी शंका समाधान</strong> </span><BR> | ||
राजवार्तिक/4/11/4/217/21 <span class="SanskritText">क्रियानिमित्ता एवैता: संज्ञा:, ....किंपुरुषान् | राजवार्तिक/4/11/4/217/21 <span class="SanskritText">क्रियानिमित्ता एवैता: संज्ञा:, ....किंपुरुषान् कामयंत इति किंपुरुषा:। ...;तन्न किं कारणम्। उक्तत्वात्। उक्तमेतत्--अवर्णवाद एष देवानामुपरीति। कथम्। न हि ते शुचिवैक्रियकदेहा अशुच्यौदारिकशरीरान् नरान् कामयंते।</span> =<span class="HindiText"><strong>प्रश्न</strong>–कुत्सित पुरुषों की कामना करने के कारण किंपुरुष...आदि कारणों से ये संज्ञाएँ क्यों नहीं मानते? <strong>उत्तर</strong>–यह सब देवों का अवर्णवाद है। ये पवित्र वैक्रियक शरीर के धारक होते हैं वे कभी भी अशुचि औदारिक शरीरवाले मनुष्य आदि की कामना नहीं करते।</span></li> | ||
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<p> इस जाति के | <p> इस जाति के व्यंतर देव । <span class="GRef"> पद्मपुराण 5.153, 13. 59, </span><span class="GRef"> वीरवर्द्धमान चरित्र 14.59 </span></p> | ||
Revision as of 16:21, 19 August 2020
== सिद्धांतकोष से ==
- किंपुरुष देव का लक्षण—
धवला 13/5,5,140/391/8 प्रायेण मैथुनप्रिया: किंपुरुषा:। =प्राय: मैथुन में रूचि रखने वाले किंपुरुषज्ञ कहलाते हैं।
- * व्यंतर देवों का एक भेद है—देखें व्यंतर - 1.2।
- किंपुरूष व्यंतरदेव के भेद
तिलोयपण्णत्ति/6/36 पुरुसा पुरुसुत्तमसप्पुरुसमहापुरुसपभणामा। अतिपुरुसा तह मरुओ मरुदेवमरुप्पहा जसोवंता।36। =पुरुष, पुरुषोत्तम, सत्पुरुष, महापुरुष, पुरुषप्रभ, अतिपुरुष, पुरु, पुरुदेव, मरुप्रभज्ञ और यशस्वान्, इस प्रकार ये किंपुरुष जाति के देवों के दश भेद हैं। ( त्रिलोकसार/25 )
- * किंपुरुष देव का वर्ण परिवार व अवस्थानादि–देखें व्यंतर - 2.1।
- * किंपुरुष व्यपदेश संबंधी शंका समाधान
राजवार्तिक/4/11/4/217/21 क्रियानिमित्ता एवैता: संज्ञा:, ....किंपुरुषान् कामयंत इति किंपुरुषा:। ...;तन्न किं कारणम्। उक्तत्वात्। उक्तमेतत्--अवर्णवाद एष देवानामुपरीति। कथम्। न हि ते शुचिवैक्रियकदेहा अशुच्यौदारिकशरीरान् नरान् कामयंते। =प्रश्न–कुत्सित पुरुषों की कामना करने के कारण किंपुरुष...आदि कारणों से ये संज्ञाएँ क्यों नहीं मानते? उत्तर–यह सब देवों का अवर्णवाद है। ये पवित्र वैक्रियक शरीर के धारक होते हैं वे कभी भी अशुचि औदारिक शरीरवाले मनुष्य आदि की कामना नहीं करते।
- धर्मनाथ भगवान् का एक यक्ष–देखें तीर्थंकर - 5.3।
पुराणकोष से
इस जाति के व्यंतर देव । पद्मपुराण 5.153, 13. 59, वीरवर्द्धमान चरित्र 14.59