योगसार - अजीव-अधिकार गाथा 61: Difference between revisions
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<p><b> अन्वय </b>:- (ते अजीवा:) परस्परं अवकाशं प्रयच्छन्त:, प्रविशन्त:, च मिलन्त: स्वस्वभ ावं कदाचन न मुञ्चन्ति । </p> | <p class="GathaAnvaya"><b> अन्वय </b>:- (ते अजीवा:) परस्परं अवकाशं प्रयच्छन्त:, प्रविशन्त:, च मिलन्त: स्वस्वभ ावं कदाचन न मुञ्चन्ति । </p> | ||
<p><b> सरलार्थ </b>:- धर्म, अधर्म, आकाश, काल एवं पुद्गल - ये पाँचों अजीव द्रव्य एक-दूसरे को जगह/अवगाह देते हुए और एक-दूसरे में प्रवेश करते हुए, तथा एक दूसरे में मिलते हुए भी अपने- अपने स्वभाव को कभी नहीं छोड़ते । </p> | <p class="GathaArth"><b> सरलार्थ </b>:- धर्म, अधर्म, आकाश, काल एवं पुद्गल - ये पाँचों अजीव द्रव्य एक-दूसरे को जगह/अवगाह देते हुए और एक-दूसरे में प्रवेश करते हुए, तथा एक दूसरे में मिलते हुए भी अपने- अपने स्वभाव को कभी नहीं छोड़ते । </p> | ||
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अजीव द्रव्यों की स्वतंत्रता -
अवकाशं प्रयच्छन्त: प्रविशन्त: परस्परम् ।
मिलन्तश्च न मुञ्चन्ति स्व-स्वभावं कदाचन ।।६१।।
अन्वय :- (ते अजीवा:) परस्परं अवकाशं प्रयच्छन्त:, प्रविशन्त:, च मिलन्त: स्वस्वभ ावं कदाचन न मुञ्चन्ति ।
सरलार्थ :- धर्म, अधर्म, आकाश, काल एवं पुद्गल - ये पाँचों अजीव द्रव्य एक-दूसरे को जगह/अवगाह देते हुए और एक-दूसरे में प्रवेश करते हुए, तथा एक दूसरे में मिलते हुए भी अपने- अपने स्वभाव को कभी नहीं छोड़ते ।