योगसार - आस्रव-अधिकार गाथा 110: Difference between revisions
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शुभाशुभोपयोगेन वासिता योग-वृत्तय: ।<br> | शुभाशुभोपयोगेन वासिता योग-वृत्तय: ।<br> | ||
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<p><b> अन्वय </b>:- शुभ-अशुभ-उपयोगेन वासिता: योग-वृत्तय: सामान्येन दुरितास्रव-हेतव: प्रजायन्ते । </p> | <p class="GathaAnvaya"><b> अन्वय </b>:- शुभ-अशुभ-उपयोगेन वासिता: योग-वृत्तय: सामान्येन दुरितास्रव-हेतव: प्रजायन्ते । </p> | ||
<p><b> सरलार्थ </b>:- शुभ तथा अशुभ उपयोग से रंजित अर्थात् शुभाशुभभावों में लगे हुए ज्ञान-दर्शन परिणाम से रंजित जो मन-वचन-कायरूप योगों की प्रवृत्तियाँ हैं, वे सामान्य से पापरूप (पुण्य- पाप) कर्मो के आस्रव का कारण होती हैं । </p> | <p class="GathaArth"><b> सरलार्थ </b>:- शुभ तथा अशुभ उपयोग से रंजित अर्थात् शुभाशुभभावों में लगे हुए ज्ञान-दर्शन परिणाम से रंजित जो मन-वचन-कायरूप योगों की प्रवृत्तियाँ हैं, वे सामान्य से पापरूप (पुण्य- पाप) कर्मो के आस्रव का कारण होती हैं । </p> | ||
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Latest revision as of 10:28, 15 May 2009
आस्रव का सामान्य कारण -
शुभाशुभोपयोगेन वासिता योग-वृत्तय: ।
सामान्येन प्रजायन्ते दुरितास्रव-हेतव: ।।११०।।
अन्वय :- शुभ-अशुभ-उपयोगेन वासिता: योग-वृत्तय: सामान्येन दुरितास्रव-हेतव: प्रजायन्ते ।
सरलार्थ :- शुभ तथा अशुभ उपयोग से रंजित अर्थात् शुभाशुभभावों में लगे हुए ज्ञान-दर्शन परिणाम से रंजित जो मन-वचन-कायरूप योगों की प्रवृत्तियाँ हैं, वे सामान्य से पापरूप (पुण्य- पाप) कर्मो के आस्रव का कारण होती हैं ।