योगसार - आस्रव-अधिकार गाथा 117: Difference between revisions
From जैनकोष
No edit summary |
No edit summary |
||
Line 1: | Line 1: | ||
नय-सापेक्ष आत्मा का कर्तापना - | <p class="Utthanika">नय-सापेक्ष आत्मा का कर्तापना -</p> | ||
<p class="SanskritGatha"> | <p class="SanskritGatha"> | ||
शुभाशुभस्य भावस्य कर्तात्मीयस्य वस्तुत: ।<br> | शुभाशुभस्य भावस्य कर्तात्मीयस्य वस्तुत: ।<br> | ||
Line 6: | Line 5: | ||
</p> | </p> | ||
<p><b> अन्वय </b>:- आत्मा वस्तुत: आत्मीयस्य शुभ-अशुभस्य भावस्य कर्ता (अस्ति)। पुन: व्यवहारत: अन्यस्य भावस्य कर्ता (अस्ति) । </p> | <p class="GathaAnvaya"><b> अन्वय </b>:- आत्मा वस्तुत: आत्मीयस्य शुभ-अशुभस्य भावस्य कर्ता (अस्ति)। पुन: व्यवहारत: अन्यस्य भावस्य कर्ता (अस्ति) । </p> | ||
<p><b> सरलार्थ </b>:- आत्मा निश्चय से अपने शुभ तथा अशुभ भाव/परिणाम का कर्ता है और व्यवहार से पर द्रव्य के भाव का कर्ता है । </p> | <p class="GathaArth"><b> सरलार्थ </b>:- आत्मा निश्चय से अपने शुभ तथा अशुभ भाव/परिणाम का कर्ता है और व्यवहार से पर द्रव्य के भाव का कर्ता है । </p> | ||
<p class="GathaLinks"> | <p class="GathaLinks"> | ||
[[योगसार - आस्रव-अधिकार गाथा 116 | पिछली गाथा]] | [[योगसार - आस्रव-अधिकार गाथा 116 | पिछली गाथा]] |
Latest revision as of 10:30, 15 May 2009
नय-सापेक्ष आत्मा का कर्तापना -
शुभाशुभस्य भावस्य कर्तात्मीयस्य वस्तुत: ।
कर्तात्मा पुनरन्यस्य भावस्य व्यवहारत: ।।११७।।
अन्वय :- आत्मा वस्तुत: आत्मीयस्य शुभ-अशुभस्य भावस्य कर्ता (अस्ति)। पुन: व्यवहारत: अन्यस्य भावस्य कर्ता (अस्ति) ।
सरलार्थ :- आत्मा निश्चय से अपने शुभ तथा अशुभ भाव/परिणाम का कर्ता है और व्यवहार से पर द्रव्य के भाव का कर्ता है ।