योगसार - आस्रव-अधिकार गाथा 117
From जैनकोष
नय-सापेक्ष आत्मा का कर्तापना -
शुभाशुभस्य भावस्य कर्तात्मीयस्य वस्तुत: ।
कर्तात्मा पुनरन्यस्य भावस्य व्यवहारत: ।।११७।।
अन्वय :- आत्मा वस्तुत: आत्मीयस्य शुभ-अशुभस्य भावस्य कर्ता (अस्ति)। पुन: व्यवहारत: अन्यस्य भावस्य कर्ता (अस्ति) ।
सरलार्थ :- आत्मा निश्चय से अपने शुभ तथा अशुभ भाव/परिणाम का कर्ता है और व्यवहार से पर द्रव्य के भाव का कर्ता है ।