चारूदत्त: Difference between revisions
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<p id="1">(1) | <p id="1">(1) शंभवनाथ का प्रथम गणधर । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 60. 346 </span></p> | ||
<p id="2">(2) बलदेव का एक पुत्र । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 48. 66 </span></p> | <p id="2">(2) बलदेव का एक पुत्र । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 48. 66 </span></p> | ||
<p id="3">(3) शकुनि का वीर-पराक्रमी भाई । यह कृष्ण का पक्षधर था । इसके पास एक चौथाई अक्षौहिणी सेना थी । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 50. 72 </span></p> | <p id="3">(3) शकुनि का वीर-पराक्रमी भाई । यह कृष्ण का पक्षधर था । इसके पास एक चौथाई अक्षौहिणी सेना थी । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 50. 72 </span></p> | ||
<p id="4">(4) | <p id="4">(4) चंपा नगरी के एक धनिक वैश्य भानुदत्त और उसकी स्त्री सुभद्रा का पुत्र । यह अपने मामा सर्वार्थ को स्त्री सुमित्रा से उत्पन्न पुत्री मित्रवती से विवाहित हुआ था । चाचा रुद्रदत्त की युक्ति से यह वेश्या कलिंगसेना की पुत्री बसंतसेना से मिला । दोनों परस्पर आसक्त होकर एक साथ रहने लगे । इसने अपनी सारी संपत्ति बसंतसेना की माँ कलिंगसेना को दे दी । निर्धन होने पर कलिंगसेना ने इसे घर से निकाल दिया । यह व्यापार के लिए रत्नद्वीप गया और वहाँ से बहुत-सा धन लेकर लौटा । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 21. 6-127 </span>इसकी गंधर्वसेना नामक एक पुत्री थी । वह गंधर्वशास्त्र में निपुण थी । गंधर्व सेना का निश्चय था कि जो गंधर्वशास्त्र में जीतेगा वही उसका पति होगा । वसुदेव ने उसे जीत लिया और इसने अपनी पुत्री का विवाह वसुदेव के साथ कर दिया । <span class="GRef"> महापुराण 70. 267-304, </span>क्ष0 19. 122-123, 268</p> | ||
Revision as of 16:22, 19 August 2020
(1) शंभवनाथ का प्रथम गणधर । हरिवंशपुराण 60. 346
(2) बलदेव का एक पुत्र । हरिवंशपुराण 48. 66
(3) शकुनि का वीर-पराक्रमी भाई । यह कृष्ण का पक्षधर था । इसके पास एक चौथाई अक्षौहिणी सेना थी । हरिवंशपुराण 50. 72
(4) चंपा नगरी के एक धनिक वैश्य भानुदत्त और उसकी स्त्री सुभद्रा का पुत्र । यह अपने मामा सर्वार्थ को स्त्री सुमित्रा से उत्पन्न पुत्री मित्रवती से विवाहित हुआ था । चाचा रुद्रदत्त की युक्ति से यह वेश्या कलिंगसेना की पुत्री बसंतसेना से मिला । दोनों परस्पर आसक्त होकर एक साथ रहने लगे । इसने अपनी सारी संपत्ति बसंतसेना की माँ कलिंगसेना को दे दी । निर्धन होने पर कलिंगसेना ने इसे घर से निकाल दिया । यह व्यापार के लिए रत्नद्वीप गया और वहाँ से बहुत-सा धन लेकर लौटा । हरिवंशपुराण 21. 6-127 इसकी गंधर्वसेना नामक एक पुत्री थी । वह गंधर्वशास्त्र में निपुण थी । गंधर्व सेना का निश्चय था कि जो गंधर्वशास्त्र में जीतेगा वही उसका पति होगा । वसुदेव ने उसे जीत लिया और इसने अपनी पुत्री का विवाह वसुदेव के साथ कर दिया । महापुराण 70. 267-304, क्ष0 19. 122-123, 268