ज्योतिषदेव: Difference between revisions
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<p class="HindiText">ज्योतिष्मान होने के कारण | <p class="HindiText">ज्योतिष्मान होने के कारण चंद्र-सूर्य आदि ज्योतिषी कहे जाते हैं, जिनको जैन दर्शनकार देवों की एक जाति विशेष मानते हैं। ये सब मिलकर असंख्यात हैं।<br /> | ||
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<li><span class="HindiText"><strong name="1" id="1"> ज्योतिषीदेव का लक्षण</strong> </span><br /> | <li><span class="HindiText"><strong name="1" id="1"> ज्योतिषीदेव का लक्षण</strong> </span><br /> | ||
सर्वार्थसिद्धि/4/12/244/5 <span class="SanskritText">ज्योतिस्स्वभावत्वादेषां | सर्वार्थसिद्धि/4/12/244/5 <span class="SanskritText">ज्योतिस्स्वभावत्वादेषां पंचानामपि ‘ज्योतिष्का इति सामान्यसंज्ञा अन्वर्था। सूर्यादयस्तद्विशेषसंज्ञा नामकर्मोदयप्रत्यया:।</span> =<span class="HindiText">ये सब पाँचों प्रकार के देव ज्योतिर्मय हैं, इसलिए इनकी ज्योतिषी यह सामान्य संज्ञा सार्थक है। तथा सूर्य आदि विशेष संज्ञाएँ विशेष नामकर्म के उदय से उत्पन्न होती हैं। ( तिलोयपण्णत्ति/7/38 ), ( राजवार्तिक/4/12/1/218/8 )।<br /> | ||
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<li name="2" id="2"><span class="HindiText"><strong> ज्योतिषी देवों के भेद</strong> </span><br /> | <li name="2" id="2"><span class="HindiText"><strong> ज्योतिषी देवों के भेद</strong> </span><br /> | ||
तत्त्वार्थसूत्र/4/12 <span class="SanskritText">ज्योतिष्का: | तत्त्वार्थसूत्र/4/12 <span class="SanskritText">ज्योतिष्का: सूर्यचंद्रमसौ ग्रहनक्षत्रप्रकीर्णकतारकाश्च।</span> =<span class="HindiText">ज्योतिषदेव पाँच प्रकार के होते हैं–सूर्य, चंद्र, ग्रह, नक्षत्र और प्रकीर्णक तारे। ( तिलोयपण्णत्ति/7/7 ) ( त्रिलोकसार/303 )।<br /> | ||
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<li name="3" id="3"><span class="HindiText"><strong> ज्योतिषी देवों की शक्ति उत्सेध आदि</strong> </span><br /> | <li name="3" id="3"><span class="HindiText"><strong> ज्योतिषी देवों की शक्ति उत्सेध आदि</strong> </span><br /> | ||
तिलोयपण्णत्ति 7/616-618 <span class="PrakritGatha">आहारो उस्सासो उच्छेहो ओहिणाणसत्तीओ। जीवाणं उप्पत्तीमरणाइं एक्कसमयम्मि।616। आउबंधणभावं दंसणगहणस्स कारणं विविहं। गुणठाणादिपवण्णणभावणलोए व्ब वत्तव्वं।617।</span> =<span class="HindiText">आहार, उच्छ्वास, उत्सेध, अवधिज्ञान, शक्ति, एकसमय में जीवों की उत्पत्ति व मरण, आयु के | तिलोयपण्णत्ति 7/616-618 <span class="PrakritGatha">आहारो उस्सासो उच्छेहो ओहिणाणसत्तीओ। जीवाणं उप्पत्तीमरणाइं एक्कसमयम्मि।616। आउबंधणभावं दंसणगहणस्स कारणं विविहं। गुणठाणादिपवण्णणभावणलोए व्ब वत्तव्वं।617।</span> =<span class="HindiText">आहार, उच्छ्वास, उत्सेध, अवधिज्ञान, शक्ति, एकसमय में जीवों की उत्पत्ति व मरण, आयु के बंधक भाव, सम्यग्दर्शन ग्रहण के विविध कारण और गुणस्थानादिक वर्णन भावनलोक के समान कहना चाहिए।617। विशेष यह है कि ज्योतिषियों की ऊँचाई सात धनुष प्रमाण और अवधिज्ञान का विषय उनसे असंख्यात गुणा है।618।</span><br /> | ||
त्रिलोकसार/341 <span class="PrakritGatha"> चंदिण बारसहस्सा पादा सीयल खरा य सुक्के दु। अड्ढाइज्जसहस्सा तिव्वा सेसा हु मंदकरा।341। </span>=<span class="HindiText"> | त्रिलोकसार/341 <span class="PrakritGatha"> चंदिण बारसहस्सा पादा सीयल खरा य सुक्के दु। अड्ढाइज्जसहस्सा तिव्वा सेसा हु मंदकरा।341। </span>=<span class="HindiText">चंद्रमा और सूर्य इनके बारह-बारह हजार किरणें हैं। तहां चंद्रमा की किरणें शीतल हैं और सूर्य की किरण तीक्ष्ण है। शुक्र की 2500 किरणें हैं। ते उज्ज्वल हैं। अवशेष ज्योतिषी मंदप्रकाश संयुक्त हैं। ( तिलोयपण्णत्ति/7/37,66,90 )।<br /> | ||
नोट–(उपरोक्त अवगाहना आदि के लिए–देखें [[ अवगाहना#2.4 | अवगाहना - 2.4]]; अवधिज्ञान/9/3; जन्म/6; आयु/3,सम्यग्दर्शन/III/3; सत् प्ररूपणा;भवन/1)।<br /> | नोट–(उपरोक्त अवगाहना आदि के लिए–देखें [[ अवगाहना#2.4 | अवगाहना - 2.4]]; अवधिज्ञान/9/3; जन्म/6; आयु/3,सम्यग्दर्शन/III/3; सत् प्ररूपणा;भवन/1)।<br /> | ||
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तिलोयपण्णत्ति/7/61 <span class="PrakritText">सयलिंदाण पडिंदा एक्केक्का होंति ते वि आइच्चा।</span> =<span class="HindiText">उन सब | तिलोयपण्णत्ति/7/61 <span class="PrakritText">सयलिंदाण पडिंदा एक्केक्का होंति ते वि आइच्चा।</span> =<span class="HindiText">उन सब इंद्रों (चंद्रों) के एक-एक प्रतींद्र हेाते हैं और वे प्रतिंद्र सूर्य हैं।<br /> | ||
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तत्त्वार्थसूत्र/4/5 <span class="SanskritText">त्रायस्त्रिंशलोकपालवर्ज्या | तत्त्वार्थसूत्र/4/5 <span class="SanskritText">त्रायस्त्रिंशलोकपालवर्ज्या व्यंतरज्योतिष्का:। </span>=<span class="HindiText">व्यंतर और ज्योतिषदेव त्रायस्त्रिंश और लोकपाल इन दो भेदों से रहित हैं। (सामानिक आदि शेष आठ विकल्प (देखें [[ देव#1 | देव - 1]]) यहाँ भी पाये जाते हैं।) ( त्रिलोकसार/225 )।<br /> | ||
तिलोयपण्णत्ति/7/ गा.प्रत्येक | तिलोयपण्णत्ति/7/ गा.प्रत्येक चंद्र के परिवार में एक सूर्य। (14)। 88 ग्रह। (14)। 28 नक्षत्र। (25)। और 66975 कोड़ाकोड़ी तारे होते हैं। (31)। ( हरिवंशपुराण/6/28-29 ) ( जंबूद्वीपपण्णत्तिसंगहो/12/87-88 ) ( त्रिलोकसार/362 )</span></li> | ||
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<li class="HindiText"> ज्योतिष देवों की अवगाहना–देखें [[ अवगाहना#2 | अवगाहना - 2]]।</li> | <li class="HindiText"> ज्योतिष देवों की अवगाहना–देखें [[ अवगाहना#2 | अवगाहना - 2]]।</li> | ||
<li class="HindiText"> ज्योतिष देवों में मार्गणा, गुणस्थान, जीवसमास आदि के स्वामित्व विषयक 20 प्ररूपणाएँ–देखें [[ सत् ]]। </li> | <li class="HindiText"> ज्योतिष देवों में मार्गणा, गुणस्थान, जीवसमास आदि के स्वामित्व विषयक 20 प्ररूपणाएँ–देखें [[ सत् ]]। </li> | ||
<li class="HindiText"> ज्योतिष देवों | <li class="HindiText"> ज्योतिष देवों संबंधी सत्, संख्या, क्षेत्र, स्पर्शन, काल, अंतर, भाव व अल्पबहुत्व प्ररूपणाएँ–देखें [[ वह वह नाम ]]।</li> | ||
<li class="HindiText"> ज्योतिष देवों कर्मों का | <li class="HindiText"> ज्योतिष देवों कर्मों का बंध उदय सत्त्व–देखें [[ वह वह नाम ]]।</li> | ||
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Revision as of 16:23, 19 August 2020
ज्योतिष्मान होने के कारण चंद्र-सूर्य आदि ज्योतिषी कहे जाते हैं, जिनको जैन दर्शनकार देवों की एक जाति विशेष मानते हैं। ये सब मिलकर असंख्यात हैं।
- ज्योतिषीदेव का लक्षण
सर्वार्थसिद्धि/4/12/244/5 ज्योतिस्स्वभावत्वादेषां पंचानामपि ‘ज्योतिष्का इति सामान्यसंज्ञा अन्वर्था। सूर्यादयस्तद्विशेषसंज्ञा नामकर्मोदयप्रत्यया:। =ये सब पाँचों प्रकार के देव ज्योतिर्मय हैं, इसलिए इनकी ज्योतिषी यह सामान्य संज्ञा सार्थक है। तथा सूर्य आदि विशेष संज्ञाएँ विशेष नामकर्म के उदय से उत्पन्न होती हैं। ( तिलोयपण्णत्ति/7/38 ), ( राजवार्तिक/4/12/1/218/8 )।
- ज्योतिषी देवों के भेद
तत्त्वार्थसूत्र/4/12 ज्योतिष्का: सूर्यचंद्रमसौ ग्रहनक्षत्रप्रकीर्णकतारकाश्च। =ज्योतिषदेव पाँच प्रकार के होते हैं–सूर्य, चंद्र, ग्रह, नक्षत्र और प्रकीर्णक तारे। ( तिलोयपण्णत्ति/7/7 ) ( त्रिलोकसार/303 )।
- ज्योतिषी देवों की शक्ति उत्सेध आदि
तिलोयपण्णत्ति 7/616-618 आहारो उस्सासो उच्छेहो ओहिणाणसत्तीओ। जीवाणं उप्पत्तीमरणाइं एक्कसमयम्मि।616। आउबंधणभावं दंसणगहणस्स कारणं विविहं। गुणठाणादिपवण्णणभावणलोए व्ब वत्तव्वं।617। =आहार, उच्छ्वास, उत्सेध, अवधिज्ञान, शक्ति, एकसमय में जीवों की उत्पत्ति व मरण, आयु के बंधक भाव, सम्यग्दर्शन ग्रहण के विविध कारण और गुणस्थानादिक वर्णन भावनलोक के समान कहना चाहिए।617। विशेष यह है कि ज्योतिषियों की ऊँचाई सात धनुष प्रमाण और अवधिज्ञान का विषय उनसे असंख्यात गुणा है।618।
त्रिलोकसार/341 चंदिण बारसहस्सा पादा सीयल खरा य सुक्के दु। अड्ढाइज्जसहस्सा तिव्वा सेसा हु मंदकरा।341। =चंद्रमा और सूर्य इनके बारह-बारह हजार किरणें हैं। तहां चंद्रमा की किरणें शीतल हैं और सूर्य की किरण तीक्ष्ण है। शुक्र की 2500 किरणें हैं। ते उज्ज्वल हैं। अवशेष ज्योतिषी मंदप्रकाश संयुक्त हैं। ( तिलोयपण्णत्ति/7/37,66,90 )।
नोट–(उपरोक्त अवगाहना आदि के लिए–देखें अवगाहना - 2.4; अवधिज्ञान/9/3; जन्म/6; आयु/3,सम्यग्दर्शन/III/3; सत् प्ररूपणा;भवन/1)।
- ज्योतिषी देवों के इंद्रों का निर्देश
तिलोयपण्णत्ति/7/61 सयलिंदाण पडिंदा एक्केक्का होंति ते वि आइच्चा। =उन सब इंद्रों (चंद्रों) के एक-एक प्रतींद्र हेाते हैं और वे प्रतिंद्र सूर्य हैं।
देखें इंद्र - 5 (ज्योतिषी देवों में दो इंद्र होते हैं।–चंद्र व सूर्य।)
- ज्योतिषी देवों का परिवार
तत्त्वार्थसूत्र/4/5 त्रायस्त्रिंशलोकपालवर्ज्या व्यंतरज्योतिष्का:। =व्यंतर और ज्योतिषदेव त्रायस्त्रिंश और लोकपाल इन दो भेदों से रहित हैं। (सामानिक आदि शेष आठ विकल्प (देखें देव - 1) यहाँ भी पाये जाते हैं।) ( त्रिलोकसार/225 )।
तिलोयपण्णत्ति/7/ गा.प्रत्येक चंद्र के परिवार में एक सूर्य। (14)। 88 ग्रह। (14)। 28 नक्षत्र। (25)। और 66975 कोड़ाकोड़ी तारे होते हैं। (31)। ( हरिवंशपुराण/6/28-29 ) ( जंबूद्वीपपण्णत्तिसंगहो/12/87-88 ) ( त्रिलोकसार/362 )
तिलोयपण्णत्ति/7/ गा. |
देव का नाम |
देवियाँ |
सामानिक पारिषद आत्मरक्ष |
अनीक प्रकीर्णक किल्विष |
आभियोग्य |
||
पट देवी |
प्रत्येक देवी का परिवार |
प्रत्येक दिशा में विमान वाहक |
कुल |
||||
57-63 |
चंद्र |
4 |
4000 |
संख्य. |
संख्य. |
4000 |
16000 |
76-81 |
सूर्य |
4 |
4000 |
संख्य. |
संख्य. |
4000 |
16000 |
87 |
ग्रह |
|
32* |
|
|
2000 |
8000 |
107 |
नक्षत्र |
|
32* |
|
|
1000 |
4000 |
( जंबूद्वीपपण्णत्तिसंगहो/10/6-12 में केवल अभियोगों का निर्देश है और त्रिलोकसार/447-448 में केवल देवियों का निर्देश)
- त्रिलोकसार/449 सव्वणिगिट्ठसुराणा बत्तीसा होंति देवीओ। =सबसे निकृष्ट देवों में 32,32 देवांगनाएँ होती हैं।
- चंद्र सूर्य की पटदेवियों के नाम
तिलोयपण्णत्ति/7/58,76 चंदाभसुसीमाओ पहंकरा अंचिमालिणीताणं।58। जुदिसुदिपहंकराओ सूरपहाअंचि मालिणीओ वि। पत्तेकं चत्तारो दुमणीणं अग्गदेवीओ।76। =चंद्रभा, प्रभंकरा, सुसीमा और अर्चिमालिनी ये उनकी (चंद्र की) अग्रदेवियों के नाम हैं।58। द्युति-श्रुति, प्रभंकरा, सूर्यप्रभा, और अर्चिमालिनी ये चार प्रत्येक सूर्य की अग्रदेवियाँ होती हैं।76। ( त्रिलोकसार/447-448 ) - अन्य संबंधित विषय
- ज्योतिषी देवों की संख्या–देखें ज्योतिषी - 2.3-6।
- ग्रह व नक्षत्रों के भेद व लक्षण–देखें वह वह नाम ।
- ज्योतिषी देवों का शरीर, आहार, सुख, दु:ख, सम्यक्त्व आदि–देखें देव - II.2,3।
- ज्योतिषी देवों में संभव कषाय, वेद, लेश्या, पर्याप्ति आदि–देखें वह वह नाम ।
- ज्योतिषी देव मरकर कहाँ उत्पन्न हो, और कौन-सा गुण या पद पावे–देखें जन्म - 6.11।
- ज्योतिष देवों की अवगाहना–देखें अवगाहना - 2।
- ज्योतिष देवों में मार्गणा, गुणस्थान, जीवसमास आदि के स्वामित्व विषयक 20 प्ररूपणाएँ–देखें सत् ।
- ज्योतिष देवों संबंधी सत्, संख्या, क्षेत्र, स्पर्शन, काल, अंतर, भाव व अल्पबहुत्व प्ररूपणाएँ–देखें वह वह नाम ।
- ज्योतिष देवों कर्मों का बंध उदय सत्त्व–देखें वह वह नाम ।