अनिंद्रिय: Difference between revisions
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[[धवला]] पुस्तक संख्या १/१,१,३३/२४८/८ न सन्तीन्द्रियाणि येषां तेऽनिन्द्रियाः। के ते। अशरीराः सिद्धाः। उक्तं च- <br> | [[धवला]] पुस्तक संख्या १/१,१,३३/२४८/८ न सन्तीन्द्रियाणि येषां तेऽनिन्द्रियाः। के ते। अशरीराः सिद्धाः। उक्तं च- <br> | ||
[[धवला]] पुस्तक संख्या १/१, १, ३३/गा. १४०/२४८ ण वि इंदिय-करणजुदा अवग्गहादीहि गाहया अत्थे। णेव य इंदिय-सोक्खा अणिंदियाणंतणाण-सुहा ।।१४०।। < | <p class="SanskritPrakritSentence">[[धवला]] पुस्तक संख्या १/१, १, ३३/गा. १४०/२४८ ण वि इंदिय-करणजुदा अवग्गहादीहि गाहया अत्थे। णेव य इंदिय-सोक्खा अणिंदियाणंतणाण-सुहा ।।१४०।। </p> | ||
<p class="HindiSentence">= जिनके इन्द्रियाँ नहीं पायी जातीं उन्हें अनीन्द्रिय जीव कहते हैं। <br> <b>प्रश्न</b> - वे कौन हैं? <br> <b>उत्तर</b> - शरीररहित सिद्ध अनिन्द्रिय हैं। कहा भी है - वे सिद्ध जीव इन्द्रियों के व्यापार से युक्त नहीं हैं और अवग्रहादिक क्षायोपशमिक ज्ञान के द्वारा पदार्थों को ग्रहण नहीं करते हैं। उनके इन्द्रिय सुख भी नहीं है, क्योंकि उनका अनन्त ज्ञान व अनन्त सुख अनिन्द्रिय है। </p> | <p class="HindiSentence">= जिनके इन्द्रियाँ नहीं पायी जातीं उन्हें अनीन्द्रिय जीव कहते हैं। <br> <b>प्रश्न</b> - वे कौन हैं? <br> <b>उत्तर</b> - शरीररहित सिद्ध अनिन्द्रिय हैं। कहा भी है - वे सिद्ध जीव इन्द्रियों के व्यापार से युक्त नहीं हैं और अवग्रहादिक क्षायोपशमिक ज्ञान के द्वारा पदार्थों को ग्रहण नहीं करते हैं। उनके इन्द्रिय सुख भी नहीं है, क्योंकि उनका अनन्त ज्ञान व अनन्त सुख अनिन्द्रिय है। </p> | ||
([[गोम्मट्टसार जीवकाण्ड]] / मूल गाथा संख्या /१७४)।<br> | ([[गोम्मट्टसार जीवकाण्ड]] / मूल गाथा संख्या /१७४)।<br> |
Revision as of 14:17, 24 May 2009
- अनिन्द्रियक लक्षण मन के अर्थमें - देखे मन ।
- अनिन्द्रियक लक्षण इन्द्रिय रहित के अर्थ में :
धवला पुस्तक संख्या १/१,१,३३/२४८/८ न सन्तीन्द्रियाणि येषां तेऽनिन्द्रियाः। के ते। अशरीराः सिद्धाः। उक्तं च-
धवला पुस्तक संख्या १/१, १, ३३/गा. १४०/२४८ ण वि इंदिय-करणजुदा अवग्गहादीहि गाहया अत्थे। णेव य इंदिय-सोक्खा अणिंदियाणंतणाण-सुहा ।।१४०।।
= जिनके इन्द्रियाँ नहीं पायी जातीं उन्हें अनीन्द्रिय जीव कहते हैं।
प्रश्न - वे कौन हैं?
उत्तर - शरीररहित सिद्ध अनिन्द्रिय हैं। कहा भी है - वे सिद्ध जीव इन्द्रियों के व्यापार से युक्त नहीं हैं और अवग्रहादिक क्षायोपशमिक ज्ञान के द्वारा पदार्थों को ग्रहण नहीं करते हैं। उनके इन्द्रिय सुख भी नहीं है, क्योंकि उनका अनन्त ज्ञान व अनन्त सुख अनिन्द्रिय है।
(गोम्मट्टसार जीवकाण्ड / मूल गाथा संख्या /१७४)।