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| <p id="1"> (1) वसुदेव के पूर्वभव का जीव । यह मगध देश के एक दरिद्र ब्राह्मण का पुत्र था । इसके गर्भ में आते ही इसके पिता मर गये थे । जन्म होते ही माँ भी मर गयी थी । पालन-पोषण करने वाली मौसी भी इसकी आठ वर्ष की अवस्था में ही चल बसी थी । मामा के घर रहते हुए इसने मामा की पुत्रियों से विवाह करना चाहा था किन्तु उन पुत्रियों ने विवाह न कर इसे घर से निकाल दिया था । इसने वैभारगिरि पर जाकर आत्मघात करना चाहा किन्तु वहाँ तपस्या करने वाले मुनियों से इसने धर्माधर्म का फल सुना और आत्मनिन्दा करते हुए संख्य नामक मुनि से दीक्षा ली तथा तप में लीन हो गया । इसके तप की इन्द्र ने भी देवसभा में प्रशंसा की थी । एक देव ने इसके वैयावृत्ति धर्म की परीक्षा भी ली थी तथा उसकी प्रशंसा करता हुआ ही वह स्वर्ग लौटा था । इसने पैंतीस हजार वर्ष तप किया । अंत में इसने छ: मास के प्रायोपगमन संन्यास को धारण कर अग्रिम भव में लक्ष्मीवान् एवं सौभाग्यवान बनने का निदान किया और मरकर निदान के फलस्वरूप यह महाशुक्र स्वर्ग में देव हुआ । स्वर्ग से चयकर यह वसुदेव हुआ । <span class="GRef"> महापुराण </span>में इसे नन्दी कहा है । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 18. 127-140, 158-175 </span>देखें [[ नन्दी#6 | नन्दी - 6]]</p> | | #REDIRECT [[नंदिषेण]] |
| <p id="2">(2) आचार्य जितदण्ड के परवर्ती एवं स्वामी दीपसेन के पूर्ववर्ती एक आचार्य । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 66. 27 </span></p>
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| <p id="3">(3) विदेहक्षेत्र के गन्धिल देश में पाटली ग्राम के वैश्य नागदत्त और उसकी स्त्री सुमति का तीसरा पुत्र । इसके क्रमश: नन्द और नन्दिमित्र दो बड़े भाई तथा वरसेन और जयसेन दो छोटे भाई और मदनकान्ता तथा श्रीकान्ता दो बहिनें थी । <span class="GRef"> महापुराण </span>6.128-130</p>
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| <p id="4">(4) तीर्थंकर चन्द्रप्रभ के पूर्वभव का जीव । <span class="GRef"> पद्मपुराण 20.19 </span></p>
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| <p id="5">(5) विदेह का एक नृप, अनन्तमति रानी का पति, वरसेन का पिता । <span class="GRef"> महापुराण </span>10.150</p>
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| <p id="6">(6) सुकच्छ देश मे क्षेमपुर नगर के राजा धनपति का पिता । इसने पुत्र को राज सौंपकर अर्हनन्दन गुरु से दीक्षा ले ली । तीर्थंकर प्रकृति का बन्ध करते हुए यह अहमिन्द्र हुआ । <span class="GRef"> महापुराण </span>53. 2, 12-15 </p>
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| <p id="7">(7) जम्बूद्वीप में मेरु पर्वत की उत्तर दिशा में विद्यमान ऐरावत क्षेत्र के पद्मिनीखेट नगर के सागरसेन वैश्य का पुत्र और धनमित्र का सहोदर । <span class="GRef"> महापुराण </span>63.262-264</p>
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| <p id="8">(8) हस्तिनापुर के राजा गंगदेव और रानी नन्दयशा का सातवाँ पुत्र । <span class="GRef"> महापुराण </span>71. 260-263</p>
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| <p id="9">(9) मिथिला नगरी का राजा । इसने तीर्थंकर मल्लिनाथ को आहार दिया था । <span class="GRef"> महापुराण </span>66.50</p>
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| <p id="10">(10) आगामी तीसरा नारायण । <span class="GRef"> महापुराण </span>76.487</p>
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| <p id="11">(11) सातवाँ बलभद्र । भरतक्षेत्र में चक्रपुर नगर के राजा वरसेन और उसकी दूसरी रानी वैजयन्ती का पुत्र । यह सुभौम चक्रवर्ती के छ: सौ करोड़ वर्ष बाद हुआ था । इसकी आयु छप्पन हजार वर्ष की और शारीरिक अवगाहना छब्बीस धनुष थी । भाई के वियोग से यह वैराग्य को प्राप्त हुआ । इसने शिवघोष मुनि से दीक्षा ली तथा तप द्वारा कर्मों का नाशकर मोक्ष प्राप्त किया । <span class="GRef"> महापुराण </span>65.174-178,110-191 पूर्वभव में यह वसुन्धर नाम से सुसीमा नगरी में जन्मा था । सुधर्म गुरु से दीक्षा लेकर यह ब्रह्म स्वर्ग गया था । वहाँ से चयकर यह बलभद्र हुआ । <span class="GRef"> पद्मपुराण 20.229-239 </span></p>
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