उपक्रम: Difference between revisions
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[[धवला]] पुस्तक संख्या १/१,१,१/७२/५ उपक्रम इत्यर्थ मात्मनः उप समीपं क्राम्यति करोतीत्युपक्रमः।< | <p class="SanskritPrakritSentence">[[धवला]] पुस्तक संख्या १/१,१,१/७२/५ उपक्रम इत्यर्थ मात्मनः उप समीपं क्राम्यति करोतीत्युपक्रमः।</p> | ||
<p class="HindiSentence">= जो अर्थको अपने समीप करता है उसे उपक्रम कहते हैं।</p> | |||
([[धवला]] पुस्तक संख्या ९/४,१,४५ (१३४/१०); ([[कषायपाहुड़]] पुस्तक संख्या १/१,१/९/१३/४)<br> | |||
<p class="SanskritPrakritSentence">[[महापुराण]] सर्ग संख्या २/१०३ प्रकृतार्थतत्त्वस्य श्रोतृबुद्धौ समर्पणम्। उपक्रमोऽसौ विज्ञेयस्तथोपोद्धात इत्यपि ।१०३।</p> | |||
<p class="HindiSentence">= प्रकृत-पदार्थ श्रोताओंकी बुद्धिमें बैठा देना उपक्रम है। इसका दूसरा नाम उपोद्घात भी है।</p> | |||
<OL start=2 class="HindiNumberList"> <LI> उपक्रमके भेद </LI> </OL> | |||
ध = १/१,१,१/पृ. पं.<br> | |||
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<OL start=3 class="HindiNumberList"> <LI> प्रक्रमका लक्षण </LI> </OL> | |||
<p class="SanskritPrakritSentence">[[धवला]] पुस्तक संख्या १५/१६/३ प्रकामतीति प्रक्रमः कार्माणपुद्गलप्रचयः।</p> | |||
<p class="HindiSentence">= `प्रक्रामतीति प्रक्रमः' इस निरुक्तिके अनुसार कार्माण पुद्गल प्रचयको प्रक्रम कहा गया है।</p> | |||
<OL start=4 class="HindiNumberList"> <LI> उपक्रम व प्रक्रममें अन्तर </LI> </OL> | |||
<p class="SanskritPrakritSentence">[[धवला]] पुस्तक संख्या १५/४२/४ पक्कम उवक्कमाणं को भेदो। पयडिट्ठिदि-अणुभागेसु ढुक्कमाणपदेसग्गपरूवणं पक्कमो कुणइ, उवक्कमो पुण बंधविदियसमयप्पहुडि संतसरूवेण ट्ठिदकम्मपोग्गलाणं वावारं परूवेदि। तेण अत्थि विसेसो।</p> | |||
<p class="HindiSentence">= प्रश्न-प्रक्रम और उपक्रममें क्या भेद है? उत्तर-प्रक्रम अनुयोगद्वार प्रकृति स्थिति और अनुभागमें आनेवाले प्रदेशाग्रकी प्ररूपणा करता है; परन्तु उपक्रम अनुयोगद्वार बन्धके द्वितीय समयसे लेकर सत्त्वरूपसे स्थिति कर्म-पुद्गलोंके व्यापारकी प्ररूपणा करता है। इसलिये इन दोनोंमें विशेषता है।</p> | |||
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Revision as of 06:34, 26 May 2009
धवला पुस्तक संख्या १/१,१,१/७२/५ उपक्रम इत्यर्थ मात्मनः उप समीपं क्राम्यति करोतीत्युपक्रमः।
= जो अर्थको अपने समीप करता है उसे उपक्रम कहते हैं।
(धवला पुस्तक संख्या ९/४,१,४५ (१३४/१०); (कषायपाहुड़ पुस्तक संख्या १/१,१/९/१३/४)
महापुराण सर्ग संख्या २/१०३ प्रकृतार्थतत्त्वस्य श्रोतृबुद्धौ समर्पणम्। उपक्रमोऽसौ विज्ञेयस्तथोपोद्धात इत्यपि ।१०३।
= प्रकृत-पदार्थ श्रोताओंकी बुद्धिमें बैठा देना उपक्रम है। इसका दूसरा नाम उपोद्घात भी है।
- उपक्रमके भेद
ध = १/१,१,१/पृ. पं.
(Kosh1_P0370_Fig0024)
- प्रक्रमका लक्षण
धवला पुस्तक संख्या १५/१६/३ प्रकामतीति प्रक्रमः कार्माणपुद्गलप्रचयः।
= `प्रक्रामतीति प्रक्रमः' इस निरुक्तिके अनुसार कार्माण पुद्गल प्रचयको प्रक्रम कहा गया है।
- उपक्रम व प्रक्रममें अन्तर
धवला पुस्तक संख्या १५/४२/४ पक्कम उवक्कमाणं को भेदो। पयडिट्ठिदि-अणुभागेसु ढुक्कमाणपदेसग्गपरूवणं पक्कमो कुणइ, उवक्कमो पुण बंधविदियसमयप्पहुडि संतसरूवेण ट्ठिदकम्मपोग्गलाणं वावारं परूवेदि। तेण अत्थि विसेसो।
= प्रश्न-प्रक्रम और उपक्रममें क्या भेद है? उत्तर-प्रक्रम अनुयोगद्वार प्रकृति स्थिति और अनुभागमें आनेवाले प्रदेशाग्रकी प्ररूपणा करता है; परन्तु उपक्रम अनुयोगद्वार बन्धके द्वितीय समयसे लेकर सत्त्वरूपसे स्थिति कर्म-पुद्गलोंके व्यापारकी प्ररूपणा करता है। इसलिये इन दोनोंमें विशेषता है।