• जैनकोष
    जैनकोष
  • Menu
  • Main page
    • Home
    • Dictionary
    • Literature
    • Kaavya Kosh
    • Study Material
    • Audio
    • Video
    • Online Classes
    • Games
  • Share
    • Home
    • Dictionary
    • Literature
    • Kaavya Kosh
    • Study Material
    • Audio
    • Video
    • Online Classes
    • Games
  • Login

जैन शब्दों का अर्थ जानने के लिए किसी भी शब्द को नीचे दिए गए स्थान पर हिंदी में लिखें एवं सर्च करें

कषायपाहुड़

From जैनकोष

 Share 

 साक्षात् भगवान् महावीर से आगत द्वादशांग श्रुतज्ञान के अंतर्गत होने से तथा सूत्रात्मक शैली में निबद्ध होने से दिगंबर आम्नाय में यह ग्रंथ आगम अथवा सूत्र माना जाता है। (ज. धवला/1/ पृ.153-154) में आ.वीरसेन स्वामी ने इस विषय में विस्तृत चर्चा की है। चौदह पूर्वों में से पंचम पूर्व के दसवें वस्तु अधिकार के अंतर्गत ‘पेज्जपाहुड़’ नामक तृतीय पाहुड़ इसका विषय है। पद प्रमाण इस का मूल विषय वि.पू.प्रथम शताब्दी में ज्ञानोच्छेद के भय से युक्त आ.गुणधर देव द्वारा 180 सूत्र गाथाओं में उपसहृत कर दिया गया। सूत्र गाथा परिमाण यह ग्रंथ कर्म्म प्रकृति आदि 15 अधिकारों में विभक्त है।आ.गुणधर द्वारा कथित ये 180 गाथायें आचार्य परंपरा से मुख दर मुख आती हुई आर्यमंक्षु और नागहस्ती को प्राप्त हुईं। आचार्य गुणधर के मुख कमल से विनिर्गत इन गाथाओं के अर्थ को उन दोनों आचार्यों के पादमूल में सुनकर आ.यतिवृषभ ने ई.150-180 में 6000 चूर्ण सूत्रों की रचना की। इन्हीं चूर्ण सूत्रों के आधार पर ई.180 के आसपास उच्चारणाचार्य ने विस्तृत उच्चारणा वृत्ति लिखी, जिसको आधार बनाकर ई.श.5-6 में आ.बप्पदेव ने 60,000 श्लोक प्रमाण एक अन्य टीका लिखी। इन्हीं बप्पदेव से सिद्धांत का अध्ययन करके ई.816 के आस-पास श्री वीरसेन स्वामी ने इस पर 20,000 श्लोक प्रमाण जयधवला नामक अधूरी टीका लिखी जिसे उनके पश्चात् ई.837 में उनके शिष्य आ.जिनसेन ने 40,000 श्लोक प्रमाण टीका लिखकर पूरा किया इस प्रकार इस ग्रंथ का उत्तरोत्तर विस्तार होता गया।
यद्यपि ग्रंथ में आ.गुणधर देव ने 180 गाथाओं का निर्देश किया है, तदपि यहां 180 के स्थान पर 233 गाथायें उपलब्ध हो रही हैं। इन अतिरिक्त 53 गाथाओं की रचना किसने की, इस विषय में आचार्यों तथा विद्वानों का मतभेद है, जिसकी चर्चा आगे की गई है। इन 53 गाथाओं में 12 गाथायें विषय-संबंध का ज्ञापन कराने वाली हैं, 6 अद्धा परिमाण का निर्देश करती हैं और 35 गाथायें संक्रमण वृत्ति से संबद्ध हैं। (ती./2/33), (जै./1/28)।
अतिरिक्त गाथाओं के रचयिता कौन?–श्री वीरसेन स्वामी इन 53 गाथाओं को यद्यपि आचार्य गुणधर की मानते हैं (देखें ऊपर ) तदपि इस विषय में गुणधरदेव की अज्ञता का जो हेतु उन्होंने प्रस्तुत किया है उसमें कुछ बल न होने के कारण विद्वान् लोग उनके अभिमत से सहमत नहीं है और इन्हें नागहस्ती कृत मानना अधिक उपयुक्त समझते हैं। इस संदर्भ में वे निम्न हेतु प्रस्तुत करते हैं।

  1. यदि ये गाथायें गुणधर की होतीं तो उन्हें 180 के स्थान पर 233 गाथाओं का निर्देश करना चाहिये था।

  2. इन 53 गाथाओं की रचनाशैली मूल वाली 180 गाथाओं से भिन्न है।

  3. संबंध ज्ञापक और अद्धा परिमाण वाली 18 गाथाओं पर यतिवृषभाचार्य के चूर्णसूत्र उपलब्ध नहीं हैं।

  4. संक्रमण वृत्तिवाली 35 गाथाओं में से 13 गाथायें ऐसी हैं जो श्वेतांबराचार्य की शिवशर्म सूरि कृत ‘कर्म प्रकृति’ नामक ग्रंथ में पाई जाती हैं, जबकि इनका समय वि.श.5 अथवा ई.श.5 का पूर्वार्ध अनुमित किया जाता है।

  5. ग्रंथ के प्रारंभ में दी गई द्वितीय गाथा में 180 गाथाओं को 15 अधिकारों में विभक्त करने का निर्देश पाया जाता है। यदि वह गाथा गुणधराचार्य की की हुई होती तो अधिकार विभाजन के स्थान पर वहां ‘‘16000 पद प्रमाण कषाय प्राभृत को 180 गाथाओं में उपसंहृत करता हूं’’ ऐसी प्रतिज्ञा प्राप्त होनी चाहिये थी, क्योंकि वे ज्ञानोच्छेद के भय से प्राभृत को उपसंहृत करने के लिए प्रवृत्त हुए थे। (ती./2/34); (जै./1/28-30)।
  6. पूर्व पृष्ठ अगला पृष्ठ
Retrieved from "http://www.jainkosh.org/w/index.php?title=कषायपाहुड़&oldid=92570"
Categories:
  • क
  • द्रव्यानुयोग
  • इतिहास
JainKosh

जैनकोष याने जैन आगम का डिजिटल ख़जाना ।

यहाँ जैन धर्म के आगम, नोट्स, शब्दकोष, ऑडियो, विडियो, पाठ, स्तोत्र, भक्तियाँ आदि सब कुछ डिजिटली उपलब्ध हैं |

Quick Links

  • Home
  • Dictionary
  • Literature
  • Kaavya Kosh
  • Study Material
  • Audio
  • Video
  • Online Classes
  • Games

Other Links

  • This page was last edited on 14 August 2022, at 14:51.
  • Privacy policy
  • About जैनकोष
  • Disclaimers
© Copyright Jainkosh. All Rights Reserved
Powered by MediaWiki