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<p> | <p> जंबूद्वीप के पूर्व विदेहक्षेत्र में स्थित वत्सकावती देश की सुसीमा नगरी का एक विद्वान् । यह राजकुमार प्रहसित का मित्र था । इन दोनों विद्वानों ने ऋद्धिधारी मतिसागर मुनिराज से जीव तत्त्व की चर्चा सुनकर तप ग्रहण कर लिया था । इसने नारायण पद की प्राप्ति का निदान किया आयु के अंत में शरीर छोड़कर दोनों महाशुक्र स्वर्ग में इंद्र और प्रतींद्र हुए । वहाँ से चयकर यह पुंडरीकिणी नगरी में वहाँ के राजा धनंजय और रानी यशस्वती का अतिबल नामक नारायण और प्रहसित इसी राजा की जयसेना रानी से महाबल नामक बलभद्र हुआ । <span class="GRef"> महापुराण 7.70-82, </span>देखें [[ अतिबल#7 | अतिबल - 7]] </p> | ||
Revision as of 16:35, 19 August 2020
जंबूद्वीप के पूर्व विदेहक्षेत्र में स्थित वत्सकावती देश की सुसीमा नगरी का एक विद्वान् । यह राजकुमार प्रहसित का मित्र था । इन दोनों विद्वानों ने ऋद्धिधारी मतिसागर मुनिराज से जीव तत्त्व की चर्चा सुनकर तप ग्रहण कर लिया था । इसने नारायण पद की प्राप्ति का निदान किया आयु के अंत में शरीर छोड़कर दोनों महाशुक्र स्वर्ग में इंद्र और प्रतींद्र हुए । वहाँ से चयकर यह पुंडरीकिणी नगरी में वहाँ के राजा धनंजय और रानी यशस्वती का अतिबल नामक नारायण और प्रहसित इसी राजा की जयसेना रानी से महाबल नामक बलभद्र हुआ । महापुराण 7.70-82, देखें अतिबल - 7