विस्रसोपचय: Difference between revisions
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<p> धवला 14/5, 6, 502/430/11 <span class="PrakritText">को विस्सासुवचओणाम। | <p> धवला 14/5, 6, 502/430/11 <span class="PrakritText">को विस्सासुवचओणाम। पंचण्णं सरीराणं परमाणुपोग्गलाणं जे णिद्धादिगुणेहि तेसु पंचसरीरपोग्गलेसु लग्गा पोग्गला तेसिं विस्सासुवचओ त्ति सण्णा। तेसिं विस्सासुवचयाणं संबंधस्स जो कारणं पंचसरीरपरमाणुपोग्गलगओ णिद्धादिगुणो तस्स वि विस्सासुवचओ त्ति सण्णा, कारणे कज्जुवयारादो।</span> = <span class="HindiText"><strong>प्रश्न–</strong>विस्रसोपचय किसकी संज्ञा है? <strong>उत्तर–</strong>पाँच शरीरों के परमाणुपुद्गलों के मध्य जो पुद्गल स्निग्ध आदि गुणों के कारण उन पाँच शरीरों के पुद्गलों में लगे हुए हैं, उनकी विस्रसोपचय संज्ञा है। उन विस्रसोपचयों के संबंध का पाँच शरीरों के परमाणु पुद्गलगत स्निग्ध आदि गुणरूप जो कारण है उसकी भी विस्रसोपचय संज्ञा है, क्योंकि यहाँ कार्य में कारण का उपचार किया है। </span><br /> | ||
गोम्मटसार | गोम्मटसार जीवकांड व जी.प्र./249/515/15 <span class="SanskritText">जीवादोणंतगुणा पडिपरमाणुम्हि विस्ससोवचया। जीवेण य समबेदा एक्केक्कं पडिसमाणा हु।249। विस्रसा स्वभावेनैव आत्मपरिणामनिरपेक्षतयैव उपचीयंते-तत्तत्कर्मनोकर्म परमाणुस्निग्धरूक्षत्वगुणेन स्कंधतां प्रतिपद्यंते इति विस्रसोपचयाः कर्मनोकर्मपरिणतिरहितपरमाणव इति भावः।</span> =<span class="HindiText"> कर्म या नोकर्म के जितने परमाणु जीव के प्रदेशों के साथ बद्ध हैं, उनमें से एक-एक परमाणु के प्रति जीवराशि से अनंतानंत गुणे विस्रसोपचयरूप परमाणु जीवप्रदेशों के साथ एक क्षेत्रावगाही रूप से स्थित है।249। विस्रसा अर्थात् आत्मपरिणाम से निरपेक्ष अपने स्वभाव से ही उपचीयंते अर्थात् मिलते हैं वे परमाणु विस्रसोपचय हैं। कर्म व नोकर्म रूप से परिणमे बिना जो उनके साथ स्निग्ध व रूक्ष गुण के द्वारा एक स्कंध रूप होकर रहते हैं वे विस्रसोपचय हैं ऐसा भाव है। <br /> | ||
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<li><span class="HindiText"><strong> विस्रसोपचयों में अल्पबहुत्व–</strong>देखें [[ अल्पबहुत्व#3 | अल्पबहुत्व - 3]]। </span></li> | <li><span class="HindiText"><strong> विस्रसोपचयों में अल्पबहुत्व–</strong>देखें [[ अल्पबहुत्व#3 | अल्पबहुत्व - 3]]। </span></li> |
Revision as of 16:36, 19 August 2020
धवला 14/5, 6, 502/430/11 को विस्सासुवचओणाम। पंचण्णं सरीराणं परमाणुपोग्गलाणं जे णिद्धादिगुणेहि तेसु पंचसरीरपोग्गलेसु लग्गा पोग्गला तेसिं विस्सासुवचओ त्ति सण्णा। तेसिं विस्सासुवचयाणं संबंधस्स जो कारणं पंचसरीरपरमाणुपोग्गलगओ णिद्धादिगुणो तस्स वि विस्सासुवचओ त्ति सण्णा, कारणे कज्जुवयारादो। = प्रश्न–विस्रसोपचय किसकी संज्ञा है? उत्तर–पाँच शरीरों के परमाणुपुद्गलों के मध्य जो पुद्गल स्निग्ध आदि गुणों के कारण उन पाँच शरीरों के पुद्गलों में लगे हुए हैं, उनकी विस्रसोपचय संज्ञा है। उन विस्रसोपचयों के संबंध का पाँच शरीरों के परमाणु पुद्गलगत स्निग्ध आदि गुणरूप जो कारण है उसकी भी विस्रसोपचय संज्ञा है, क्योंकि यहाँ कार्य में कारण का उपचार किया है।
गोम्मटसार जीवकांड व जी.प्र./249/515/15 जीवादोणंतगुणा पडिपरमाणुम्हि विस्ससोवचया। जीवेण य समबेदा एक्केक्कं पडिसमाणा हु।249। विस्रसा स्वभावेनैव आत्मपरिणामनिरपेक्षतयैव उपचीयंते-तत्तत्कर्मनोकर्म परमाणुस्निग्धरूक्षत्वगुणेन स्कंधतां प्रतिपद्यंते इति विस्रसोपचयाः कर्मनोकर्मपरिणतिरहितपरमाणव इति भावः। = कर्म या नोकर्म के जितने परमाणु जीव के प्रदेशों के साथ बद्ध हैं, उनमें से एक-एक परमाणु के प्रति जीवराशि से अनंतानंत गुणे विस्रसोपचयरूप परमाणु जीवप्रदेशों के साथ एक क्षेत्रावगाही रूप से स्थित है।249। विस्रसा अर्थात् आत्मपरिणाम से निरपेक्ष अपने स्वभाव से ही उपचीयंते अर्थात् मिलते हैं वे परमाणु विस्रसोपचय हैं। कर्म व नोकर्म रूप से परिणमे बिना जो उनके साथ स्निग्ध व रूक्ष गुण के द्वारा एक स्कंध रूप होकर रहते हैं वे विस्रसोपचय हैं ऐसा भाव है।
- विस्रसोपचय बंध–देखें प्रदेशबंध ।
- विस्रसोपचयों में अल्पबहुत्व–देखें अल्पबहुत्व - 3।