स्पर्श: Difference between revisions
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<li>स्पर्शन नामकर्म का स्पर्श हेतुत्व।-देखें [[ वर्ण#4 | वर्ण - 4]]।</li> | <li>स्पर्शन नामकर्म का स्पर्श हेतुत्व।-देखें [[ वर्ण#4 | वर्ण - 4]]।</li> | ||
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<li id="2.2">[[स्पर्श सामान्य निर्देश#2.2 | क्षेत्र व काल का | <li id="2.2">[[स्पर्श सामान्य निर्देश#2.2 | क्षेत्र व काल का अंतर्भाव द्रव्य स्पर्श में क्यों नहीं होता।]]</li> | ||
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<ul><li>स्पर्शन प्ररूपणा | <ul><li>स्पर्शन प्ररूपणा संबंधी नियम।-देखें [[ क्षेत्र#3 | क्षेत्र - 3]]।</li></ul> | ||
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<li id="3.1">[[स्पर्श विषयक प्ररूपणाएँ#3.1 | सारणियों में प्रयुक्त संकेत सूची।]]</li> | <li id="3.1">[[स्पर्श विषयक प्ररूपणाएँ#3.1 | सारणियों में प्रयुक्त संकेत सूची।]]</li> | ||
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<li id="3.3">[[स्पर्श विषयक प्ररूपणाएँ#3.3 | जीवों के अतीत कालीन स्पर्श की ओघ प्ररूपणा।]]</li> | <li id="3.3">[[स्पर्श विषयक प्ररूपणाएँ#3.3 | जीवों के अतीत कालीन स्पर्श की ओघ प्ररूपणा।]]</li> | ||
<li id="3.4">[[स्पर्श विषयक प्ररूपणाएँ#3.4 | जीवों के अतीत कालीन स्पर्श की आदेश प्ररूपणा।]]</li> | <li id="3.4">[[स्पर्श विषयक प्ररूपणाएँ#3.4 | जीवों के अतीत कालीन स्पर्श की आदेश प्ररूपणा।]]</li> | ||
<li id="3.5">[[स्पर्श विषयक प्ररूपणाएँ#3.5 | अष्ट कर्मों के | <li id="3.5">[[स्पर्श विषयक प्ररूपणाएँ#3.5 | अष्ट कर्मों के चतुबंधकों की ओघ आदेश प्ररूपणा।]]</li> | ||
<li id="3.6">[[स्पर्श विषयक प्ररूपणाएँ#3.6 | मोहनीय सत्कार्मिक | <li id="3.6">[[स्पर्श विषयक प्ररूपणाएँ#3.6 | मोहनीय सत्कार्मिक बंधकों की ओघ आदेश प्ररूपणा।]]</li> | ||
<li id="3.7">[[स्पर्श विषयक प्ररूपणाएँ#3.7 | अन्य प्ररूपणाओं की सूची।]]</li> | <li id="3.7">[[स्पर्श विषयक प्ररूपणाएँ#3.7 | अन्य प्ररूपणाओं की सूची।]]</li> | ||
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== पुराणकोष से == | == पुराणकोष से == | ||
<p id="1">(1) अग्रायणीयपूर्व की पंचम वस्तु के कर्मप्रकृति चौथे प्राभृत का तीसरा योगद्वार । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 10.82, </span>देखें [[ अग्रायणीयपूर्व ]]</p> | <p id="1">(1) अग्रायणीयपूर्व की पंचम वस्तु के कर्मप्रकृति चौथे प्राभृत का तीसरा योगद्वार । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 10.82, </span>देखें [[ अग्रायणीयपूर्व ]]</p> | ||
<p id="2">(2) सम्यग्दर्शन से | <p id="2">(2) सम्यग्दर्शन से संबद्ध आस्तिक्य गुण की पर्याय । <span class="GRef"> महापुराण 9. 123 </span></p> | ||
<p id="3">(3) स्पर्शन | <p id="3">(3) स्पर्शन इंद्रिय का विषय । यह आठ प्रकार का होता है—कर्कश, मृदु, गुरु, लघु, स्निग्ध, रूक्ष, शीत और उष्ण । <span class="GRef"> महापुराण 75. 621 </span></p> | ||
Revision as of 16:40, 19 August 2020
== सिद्धांतकोष से ==
स्पर्शन का अर्थ स्पर्श करना या छूना है। यहाँ इस स्पर्शानुयोग द्वार में जीवों के स्पर्श का वर्णन किया गया है अर्थात् कौन-कौन मार्गणा स्थानगत पर्याप्त या अपर्याप्त जीव किस-किस गुणस्थान में कितने आकाश क्षेत्र को स्पर्श करता है।
- भेद व लक्षण
- स्पर्श गुण का लक्षण।
- स्पर्श नाम कर्म का लक्षण।
- स्पर्शनानुयोग द्वार का लक्षण।
- स्पर्श के भेद
- निक्षेप रूप भेदों के लक्षण।
- अग्नि आदि सभी में स्पर्श गुण।-देखें पुद्गल - 10।
- स्पर्शन नामकर्म का स्पर्श हेतुत्व।-देखें वर्ण - 4।
- स्पर्श नामकर्म की बंध उदय सत्त्व प्ररूपणाएँ।-देखें वह वह नाम ।
- स्पर्श सामान्य निर्देश
- परमाणुओं में परस्पर एकदेश व सर्वदेश स्पर्श।-देखें परमाणु - 3।
- अमूर्त से मूर्त का स्पर्श कैसे संभव है।
- क्षेत्र व काल का अंतर्भाव द्रव्य स्पर्श में क्यों नहीं होता।
- क्षेत्र व स्पर्श में अंतर।-देखें क्षेत्र - 2.2।
- स्पर्श विषयक प्ररूपणाएँ
- स्पर्शन प्ररूपणा संबंधी नियम।-देखें क्षेत्र - 3।
पुराणकोष से
(1) अग्रायणीयपूर्व की पंचम वस्तु के कर्मप्रकृति चौथे प्राभृत का तीसरा योगद्वार । हरिवंशपुराण 10.82, देखें अग्रायणीयपूर्व
(2) सम्यग्दर्शन से संबद्ध आस्तिक्य गुण की पर्याय । महापुराण 9. 123
(3) स्पर्शन इंद्रिय का विषय । यह आठ प्रकार का होता है—कर्कश, मृदु, गुरु, लघु, स्निग्ध, रूक्ष, शीत और उष्ण । महापुराण 75. 621