नमिनाथ: Difference between revisions
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( महापुराण/69/ श्लोक)‒पूर्वभव नं.2 में कौशांबी नगरी के राजा पार्थिव के पुत्र सिद्धार्थ थे।2-4। पूर्वभव नं.1 में अपराजित विमान में अहमिंद्र हुए।16। वर्तमान भव में 21 तीर्थंकर हुए। (युगपत् सर्वभव देखें [[ | (<span class="GRef"> महापुराण/69/ </span>श्लोक)‒पूर्वभव नं.2 में कौशांबी नगरी के राजा पार्थिव के पुत्र सिद्धार्थ थे।2-4। पूर्वभव नं.1 में अपराजित विमान में अहमिंद्र हुए।16। वर्तमान भव में 21 तीर्थंकर हुए। (युगपत् सर्वभव देखें [[ ]]<span class="GRef"> महापुराण/69/71 </span>)। इनका विशेष परिचय‒देखें [[ तीर्थंकर#5 | तीर्थंकर - 5]]। | ||
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Revision as of 13:00, 14 October 2020
== सिद्धांतकोष से == ( महापुराण/69/ श्लोक)‒पूर्वभव नं.2 में कौशांबी नगरी के राजा पार्थिव के पुत्र सिद्धार्थ थे।2-4। पूर्वभव नं.1 में अपराजित विमान में अहमिंद्र हुए।16। वर्तमान भव में 21 तीर्थंकर हुए। (युगपत् सर्वभव देखें [[ ]] महापुराण/69/71 )। इनका विशेष परिचय‒देखें तीर्थंकर - 5।
पुराणकोष से
अवसर्पिणी काल के दु:षमा-सुषमा नामक चौथे काल में उत्पन्न शलाकापुरुष और इक्कीसवें तीर्थंकर । ये जंबूद्वीप में वंग देश की मिथिला नगरी के राजा विजय और रानी वप्पिला के पुत्र थे । ये आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की द्वितीया को रात्रि के पिछले पहर में अश्विनी नक्षत्र में गर्भ में आये तथा आषाढ़ कृष्णा दशमी के दिन स्वाति नक्षत्र के योग में जन्में थे । यह नाम इन्हें देवों ने दिया था । इनकी आयु दस हजार वर्ष, शारीरिक अवगाहना पंद्रह धनुष और कांति स्वर्ण के समान थी । कुमारकाल के अढ़ाई हजार वर्ष बीत जाने पर इन्होंने अभिषेकपूर्वक राज्य किया था । महापुराण 2.133-134, 69. 18-34, पद्मपुराण 1.12, 5.215 हरिवंशपुराण 1.23, वीरवर्द्धमान चरित्र 1.31, 18.107 । हरिवंशपुराण कार ने इनकी आयु पंद्रह हजार वर्ष तथा तीर्थ पाँच लाख वर्ष का कहा है । हरिवंशपुराण 18.5 राज्य करते हुए पाँच हजार वर्ष पश्चात् सारस्वत देवों द्वारा पूजे जाने पर उत्पन्न वैराग्यवंश इन्होंने अपने पुत्र सुप्रभ को राज्याभार सौंपा था तथा देवों द्वारा किये गये दीक्षाकल्याणक को प्राप्त कर ये उत्तरकुरु नाम की पालकी में बैठकर चैत्रवन गये थे । वहाँ इन्होंने आषाढ़ कृष्ण दशमी के दिन अश्विनी नक्षत्र में सायंकाल के समय एक हजार राजाओं के साथ संयम धारण किया था । इनको उसी समय मन:पर्ययज्ञान प्राप्त हो गया था । वीरपुर नगर में राजा दत्त ने इन्हें आहार देकर पंचाश्चर्य प्राप्त किये थे । छद्मस्थ अवस्था के नौ वर्ष बीत जाने पर ये दीक्षावन मे बकुल वृक्ष के नीच बेला का नियम लेकर ध्यानारूढ़ हुए और इन्हें मार्गशीर्ष के शुक्लपक्ष की एकादशी के दिन सायंकाल के समय केवलज्ञान हुआ । इनके संघ में सुप्रभायं सहित सत्रह गणधर, चार सौ पचास समस्त पूर्वों के ज्ञाता, बारह हजार छ: सौ व्रतधारी शिक्षक, एक हजार छ: सौ अवधिज्ञानी, इतने ही केवलज्ञानी, पंद्रह सौ विक्रिया ऋद्धिधारी, बारह सौ पचास परिग्रह रहित मन पर्यय:ज्ञानी और एक हजार वादी थे । कुल मुनि बीस हजार, पैतालीस हजार आर्यिकाएँ, एक लाख श्रावक, तीन लाख श्राविकाएं तथा असंख्यात देव-देवियां और असंख्यात तिर्यंच थे । इन्होंने आर्यक्षेत्र में अनेक स्थानों पर विहार किया था । आयु का एक मास शेष रह जाने पर विहार बंद कर ये सम्मेदगिरि पर आये और एक हजार मुनियों के साथ प्रतिमायोग धारण कर वैशाख कृष्ण चतुर्दशी के दिन रात्रि के अंतिम समय अश्विनी नक्षत्र में मोक्ष गये । देवों ने निर्वाणकल्याणक मनाया था । महापुराण 69.35, 51-69 दूसरे पूर्वभव में ये जंबूद्वीप के भरतक्षेत्र में वत्स देश की कौशांबी नगरी के राजा पार्थिव और उनकी सुंदरी नामक रानी के सिद्धार्थ नामक पुत्र तथा प्रथम पूर्वभव में अपराजित नामक विमान में अहमिंद्र थे । महापुराण 69.2-4, 16 पद्मपुराण 20.14-17, हरिवंशपुराण 60. 155