नमि
From जैनकोष
सिद्धांतकोष से
- पद्मपुराण - 3.306-308 नमि और विनमि ये दो भगवान् आदिनाथ के साले के पुत्र थे। ध्यानस्थ अवस्था में भगवान् से भक्ति पूर्वक राज्य की याचना करने पर धरणेंद्र ने प्रगट होकर इन्हें विजयार्ध की श्रेणियों का राज्य दे दिया और साथ ही कुछ विद्याएँ भी प्रदान की। इन्हीं से ही विद्याधर वंश की उत्पत्ति हुई।‒देखें इतिहास - 7.14‒ महापुराण/18/91-141 ।
- भगवान् वीर के तीर्थ का एक अंतकृत केवली‒देखें अंतकृत् ।
पुराणकोष से
(1) महापुराणकार के अनुसार वृषभदेव के पचहत्तरवें और हरिवंशपुराणकार के अनुसार सतत्तरवें गणधर । महापुराण 2.43, 65, हरिवंशपुराण 12.68 ये वृषभदेव के साले कच्छ राजा के पुत्र थे । वृषभदेव से ध्यानस्थ अवस्था में भोग और उपभोग की सामग्री की याचना करने पर धरणेंद्र ने इन्हें विजयार्ध की दक्षिणश्रेणी का राज्य और दिति तथा अदिति ने सोलह निकायों की अनेक विधाएं प्रदान की थी । महापुराण 18.91-95, 19. 182, 185, 32.180, पद्मपुराण - 3.306-309, हरिवंशपुराण - 9.128 विजयार्ध की उत्तरश्रेणी में विद्यमान मनोहर देश में रत्नपुर नगर के राजा पिंगलगांधार और रानी सुप्रभा की पुत्री विद्युत्प्रभा इनकी पत्नी थी । इनके रवि, सोम, पुरूहूत, अंशुमान्, हरि, जय पुलस्त्य, विजय, मातंग तथा वासव आदि क्रांतिधारी अनेक पुत्र तथा कनकपुंजश्री और कनकमंजरी नामक दो पुत्रियाँ थी । इन्होंने भरतेश की अधीनता स्वीकार की थी और अपनी बहिन सुभद्रा का भरतेश से विवाह कर दिया था । इसके पश्चात् इन्होंने संसार से विरक्त होकर जिनदीक्षा धारण कर ली थी इनके पुत्रों में मातंग के अनेक पुत्र, पौत्र तथा प्रपौत्र हुए । अंत में वे अपनी-अपनी साधना के अनुसार स्वर्ग और मोक्ष गये । महापुराण 32.183, 47.261-263, हरिवंशपुराण - 22.107-110
(2) विजयार्ध पर्वत के निवासी पवनवेग का पुत्र यह जांबवती का हरण कर लेना चाहना था । इसके इस कुविचार को ज्ञातकर जांबव ने इसे मारने के लिए माक्षिकलक्षिता नाम को विद्या भेजी थी किंतु कुमार के मामा किन्नरपुर के राजा यक्षमाली विद्याधर ने उस विद्या को छेद दिया था । अनंतर जंबूकुमार के आक्रमण करने पर इसे वहाँ से भाग जाना पड़ा था । महापुराण 71.370-374
(3) एक यादव नृप । कृष्ण-जरासंध युद्ध में यह समुद्र-विजय की रक्षा-पंक्ति में था । हरिवंशपुराण - 50.121