अब अघ करत लजाय रे भाई: Difference between revisions
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Latest revision as of 02:40, 16 February 2008
(राग काफी कनड़ी - ताल पसतो)
अब अघ करत लजाय रे भाई ।।अब. ।।टेक ।।
श्रावक घर उत्तम कुल आयो, भैंटे श्री जिनराय ।।१ ।।अब. ।।
धन वनिता आभूषन परिग्रह, त्याग करौ दुखदाय ।
जो अपना तू तजि न सकै पर, सेयां नरकन जाय ।।२ ।।अब. ।।
विषय काज क्यौं जनम गुमावै, नरभव कब मिलि जाय ।
हस्ती चढ़ि इंर्धन ढोवे, बुधजन कौन वसाय ।।३ ।।अब. ।।