अचल: Difference between revisions
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<p>1. जीव के अचल प्रदेश (देखें [[ जीव#4 | जीव - 4]]) 2. द्वितीय बलदेव। अपरनाम अचलस्तोक (देखें [[ अचलस्तोक ]])। 3. षष्ठ रुद्र। अपरनाम बल (देखें [[ शलाका पुरुष#7 | शलाका पुरुष - 7]])। 4. भरत क्षेत्र का एक ग्राम (देखें [[ मनुष्य#4 | मनुष्य - 4]])। 5. पश्चिम धातकी खंड का मेरु (देखें [[ लोक#4.2 | लोक - 4.2]])।</p> | <p>1. जीव के अचल प्रदेश (देखें [[ जीव#4 | जीव - 4]]) 2. द्वितीय बलदेव। अपरनाम अचलस्तोक (देखें [[ अचलस्तोक ]])। 3. षष्ठ रुद्र। अपरनाम बल (देखें [[ शलाका पुरुष#7 | शलाका पुरुष - 7]])। 4. भरत क्षेत्र का एक ग्राम (देखें [[ मनुष्य#4 | मनुष्य - 4]])। 5. पश्चिम धातकी खंड का मेरु (देखें [[ लोक#4.2 | लोक - 4.2]])।</p> | ||
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<p id="1">(1) वृषभदेव के चौरासी गणधरों में बाईसवें गणधर । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 12.55-70 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1">(1) वृषभदेव के चौरासी गणधरों में बाईसवें गणधर । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 12.55-70 </span></p> | ||
<p id="2">(2) जंबूद्वीप के भरतक्षेत्र में स्थित मगध देश का एक ग्राम । वसुदेव ने यहाँ वनमाला को प्राप्त किया था । <span class="GRef"> महापुराण 62.325, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 24.25 </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 4. 194 </span></p> | <p id="2">(2) जंबूद्वीप के भरतक्षेत्र में स्थित मगध देश का एक ग्राम । वसुदेव ने यहाँ वनमाला को प्राप्त किया था । <span class="GRef"> महापुराण 62.325, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 24.25 </span><span class="GRef"> पांडवपुराण 4. 194 </span></p> | ||
<p id="3">(3) अंधकवृष्णि और सुभद्रा का छठा पुत्र यह समुद्रविजय, अक्षोभ्य, स्तिमितसागर, हिमवान् और विजय का छोटा भाई तथा धारण, पूरण, अभिचंद्र और वसुदेव का बड़ा भाई था । <span class="GRef"> महापुराण 70.94-96, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 18.12-14 </span></p> | <p id="3">(3) अंधकवृष्णि और सुभद्रा का छठा पुत्र यह समुद्रविजय, अक्षोभ्य, स्तिमितसागर, हिमवान् और विजय का छोटा भाई तथा धारण, पूरण, अभिचंद्र और वसुदेव का बड़ा भाई था । <span class="GRef"> महापुराण 70.94-96, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 18.12-14 </span></p> | ||
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<p>इसकी ऊंचाई सत्तर धनुष और आयु साठ लाख वर्ष थी । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 60.535-536, 540 </span></p> | <p>इसकी ऊंचाई सत्तर धनुष और आयु साठ लाख वर्ष थी । <span class="GRef"> हरिवंशपुराण 60.535-536, 540 </span></p> | ||
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Revision as of 16:51, 14 November 2020
सिद्धांतकोष से
1. जीव के अचल प्रदेश (देखें जीव - 4) 2. द्वितीय बलदेव। अपरनाम अचलस्तोक (देखें अचलस्तोक )। 3. षष्ठ रुद्र। अपरनाम बल (देखें शलाका पुरुष - 7)। 4. भरत क्षेत्र का एक ग्राम (देखें मनुष्य - 4)। 5. पश्चिम धातकी खंड का मेरु (देखें लोक - 4.2)।
पुराणकोष से
(1) वृषभदेव के चौरासी गणधरों में बाईसवें गणधर । हरिवंशपुराण 12.55-70
(2) जंबूद्वीप के भरतक्षेत्र में स्थित मगध देश का एक ग्राम । वसुदेव ने यहाँ वनमाला को प्राप्त किया था । महापुराण 62.325, हरिवंशपुराण 24.25 पांडवपुराण 4. 194
(3) अंधकवृष्णि और सुभद्रा का छठा पुत्र यह समुद्रविजय, अक्षोभ्य, स्तिमितसागर, हिमवान् और विजय का छोटा भाई तथा धारण, पूरण, अभिचंद्र और वसुदेव का बड़ा भाई था । महापुराण 70.94-96, हरिवंशपुराण 18.12-14
(4) भगवान् महावीर के नवम गणधर । हरिवंशपुराण 3.43
(5) अवसर्पिणी काल के दु:षमा-सुषमा नामक चौथे काल में उत्पन्न दूसरा बलभद्र । हरिवंशपुराण 60.290, वीरवर्द्धमान चरित्र 18.101, 111 देखें अचलस्तोक
(6) वसुदेव के भाई अचल का पुत्र । हरिवंशपुराण 48.49
(7) वाराणसी नगरी का एक राजा, गिरिदेवी का पति । पद्मपुराण 41.107
(8) राम की वानरसेना का एक योद्धा । पद्मपुराण 74. 65-66
(9) जंबूद्वीप के पश्चिम विदेह में का एक चक्रवर्ती । इसकी रानी का नाम रत्ना और पुत्र का नाम अभिराम था । पद्मपुराण 85. 102-103
(10) अंतिम संख्यावाची नाम । महापुराण 3.222-227
(11) सिद्ध का एक गुण । इसकी प्राप्ति के लिए ‘‘अचलाय नमः’’ इस पीठिका-मंत्र का जप किया जाता है । महापुराण 40.13
(12) सौधर्मेंद्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । महापुराण 25.128
(13) मथुरा के राजा चंद्रप्रभ और उसकी दूसरी रानी कनकप्रभा का पुत्र । इसने शस्त्रविद्या में विशिखाचार्य को पराजित कर कौशांबी के राजा कोशीवत्स की पुत्री इंद्रदत्ता के साथ विवाह किया था । अंत में इसे मथुरा का राज्य प्राप्त हो गया था । इसने कुछ समय राज्य करने के पश्चात् यश: समुद्र आचार्य से निर्ग्रंथ दीक्षा धारण कर ली थी तथा समाधिमरण करके स्वर्ग प्राप्त किया था । पद्मपुराण 91.19-42
(14) छठा रुद्र । यह वासुपूज्य तीर्थंकर के तीर्थ में हुआ था ।
इसकी ऊंचाई सत्तर धनुष और आयु साठ लाख वर्ष थी । हरिवंशपुराण 60.535-536, 540