अर्हद्भक्ति: Difference between revisions
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<p id="1"> (1) सोलह कारण भावनाओं में दसवीं भावना-जिनेंद्र के प्रति मन, वचन और काय से भावशुद्धिपूर्वक श्रद्धा रखना । <span class="GRef"> महापुराण 63.327, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 34.141 </span></p> | <div class="HindiText"> <p id="1"> (1) सोलह कारण भावनाओं में दसवीं भावना-जिनेंद्र के प्रति मन, वचन और काय से भावशुद्धिपूर्वक श्रद्धा रखना । <span class="GRef"> महापुराण 63.327, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 34.141 </span></p> | ||
<p id="2">(2) राक्षसवंशी राजा । उग्रश्री के पश्चात् लंका का स्वामित्व इसे ही प्राप्त हुआ था । यह माया, पराक्रम, विद्या, बल और कांति का धारी था । <span class="GRef"> पद्मपुराण 5.396-400 </span></p> | <p id="2">(2) राक्षसवंशी राजा । उग्रश्री के पश्चात् लंका का स्वामित्व इसे ही प्राप्त हुआ था । यह माया, पराक्रम, विद्या, बल और कांति का धारी था । <span class="GRef"> पद्मपुराण 5.396-400 </span></p> | ||
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Revision as of 16:51, 14 November 2020
सिद्धांतकोष से
देखें भक्ति - 1।
पुराणकोष से
(1) सोलह कारण भावनाओं में दसवीं भावना-जिनेंद्र के प्रति मन, वचन और काय से भावशुद्धिपूर्वक श्रद्धा रखना । महापुराण 63.327, हरिवंशपुराण 34.141
(2) राक्षसवंशी राजा । उग्रश्री के पश्चात् लंका का स्वामित्व इसे ही प्राप्त हुआ था । यह माया, पराक्रम, विद्या, बल और कांति का धारी था । पद्मपुराण 5.396-400