सम्यग्ज्ञान बिना, तेरो जनम अकारथ जाय: Difference between revisions
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Latest revision as of 02:48, 16 February 2008
सम्यग्ज्ञान बिना, तेरो जनम अकारथ जाय ।।सम्यग्ज्ञान. ।।टेक ।।
अपने सुखमैं मगन रहत नहिं परकी लेत बलाय ।
सीख सुगुरु की एक न मानें भव भवमैं दुख पाय ।।१ ।।सम्य. ।।
ज्यौं कपि आप काठ लीलाकरि, प्रान तजै बिललाय ।
ज्यौं निज मुखकरि जाल मकरिया, आप मरै उलझाय ।।२ ।।सम्य. ।।
कठिन कमायो सब धन ज्वारी, छिनमैं देत गमाय ।
जैसे रतन पायके भोंदू, विलखे आप गमाय ।।३ ।।सम्य. ।।
देव शास्त्र गुरुको निहचैकरि, मिथ्यामत मति ध्याय ।
सुरपति बाँछा राखत याकी, ऐसी नर परजाय ।।४ ।।सम्य. ।।