उत्तमपात्र: Difference between revisions
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<p> श्रमण । ये हिंसा से विरत, परिग्रह-रहित, राग-द्वेष से हीन, तपश्चरण में लीन, सम्यग्दर्शन-ज्ञान और चारित्र से युक्त, तत्त्वों के चिंतन में तत्पर और सुख-दुख में निर्विकारी होते हैं । <span class="GRef"> पद्मपुराण 14. 53-58, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 7.108 </span></p> | <div class="HindiText"> <p> श्रमण । ये हिंसा से विरत, परिग्रह-रहित, राग-द्वेष से हीन, तपश्चरण में लीन, सम्यग्दर्शन-ज्ञान और चारित्र से युक्त, तत्त्वों के चिंतन में तत्पर और सुख-दुख में निर्विकारी होते हैं । <span class="GRef"> पद्मपुराण 14. 53-58, </span><span class="GRef"> हरिवंशपुराण 7.108 </span></p> | ||
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Revision as of 16:52, 14 November 2020
श्रमण । ये हिंसा से विरत, परिग्रह-रहित, राग-द्वेष से हीन, तपश्चरण में लीन, सम्यग्दर्शन-ज्ञान और चारित्र से युक्त, तत्त्वों के चिंतन में तत्पर और सुख-दुख में निर्विकारी होते हैं । पद्मपुराण 14. 53-58, हरिवंशपुराण 7.108